भास्कर ओपिनियन-राजस्थान: कांग्रेस के लिए प्रियंका वही कर रही हैं जो कभी भाजपा के लिए वसुंधरा करती थीं

10 मिनट पहलेलेखक: नवनीत गुर्जर, नेशनल एडिटर, दैनिक भास्कर

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राजस्थान में कांग्रेस लगातार बड़ी सभाएं कर रही है। ये सभाएं राहुल गांधी की नहीं, बल्कि प्रियंका गांधी की है। हालाँकि कांग्रेस ने प्रियंका को फ़्रंट फुट पर लाने में कई साल की देरी कर दी लेकिन कहा जा सकता है कि जब जागे, तभी सवेरा या देर आए, दुरुस्त आए।

प्रियंका की सभा में वहाँ भारी भीड़ भी जुट रही है। इन सभाओं में लुभावने वादे भी किए जा रहे हैं और लोगों को ये वादे अच्छे भी लग रहे हैं। भला, मुफ़्त की रेवड़ी किसे ख़राब लगती है? कुल मिलाकर प्रियंका राजस्थान में ख़ासकर, महिलाओं को लुभाने में वही भूमिका निभा रही हैं जो कभी भाजपा की तरफ़ से वसुंधरा राजे निभाती थीं।

राजस्थान के झुंझुनूं जिले में 25 अक्टूबर को प्रियंका गांधी ने कांग्रेस की ओर से घोषणाएं कीं।

राजस्थान के झुंझुनूं जिले में 25 अक्टूबर को प्रियंका गांधी ने कांग्रेस की ओर से घोषणाएं कीं।

बुधवार को प्रियंका की सभा में दो प्रमुख घोषणाएं की गईं। पहली महिला मुखियाओं को हज़ार रुपए साल दिए जाएँगे। दूसरी पाँच सौ रुपए में गैस सिलेंडर। महिला मुखिया वाली घोषणा में मुखिया वाला पेंच है। इसका अर्थ क्या समझा जाए? घर की बड़ी महिला या जिस घर में पुरुष मुखिया नहीं हो, महिला ही मुखिया के तौर पर घर चला रही हो? घोषणा की कॉपी फ़िलहाल इस बारे में मौन है।

जहां तक भाजपा का सवाल है, राजस्थान में उसकी ताबड़तोड़ सभाएं अभी शुरू नहीं हो सकी हैं। भाजपा यहाँ ‘एक बार तू, एक बार मैं’ वाली परम्परा को अपने पक्ष में मानकर चल रही है। सही भी है, राज्य में मौजूदा विधायकों के खिलाफ भारी एंटी इनकम्बेंसी है लेकिन सरकार या कांग्रेस के खिलाफ माहौल वैसा नहीं दिखाई देता जैसा हर बार की सरकारों के खिलाफ हुआ करता है।

प्रियंका गांधी की सभा में बड़ी संख्या में महिलाएं भी पहुंचीं।

प्रियंका गांधी की सभा में बड़ी संख्या में महिलाएं भी पहुंचीं।

चुनावों में जीत कई एंगल से तय होती है। आपके चुनावी वादे और टिकटों का बँटवारा इस बारे में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं। कोई लहर या आँधी ही हो तो बात और है वर्ना सही लोगों को टिकट देना बहुत कुछ तय करता है।

वैसे राजस्थान ही नहीं, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में भी फ़िलहाल कोई लहर या आँधी तो दिखाई नहीं देती। जो भी जीतेगा, वो चुनावी पैंतरों से ही जीतेगा। किस नेता को लोग ज़्यादा पसंद कर रहे हैं और वह पार्टी उस नेता की किन मौक़ों पर कितनी सभाएं करवा पा रही है, बहुत कुछ इस बात पर भी निर्भर करता है।

देखना यह है कि तीन दिसंबर को परिणाम जब आएँगे, तब कौन किस पर भारी रहता है! फ़िलहाल तीनों ही राज्यों के परिणामों के बारे में कुछ भी कहना अतिशयोक्ति ही होगा।