भास्कर एक्सक्लूसिव-ज्ञानवापी में हिंदू प्रतीक चिह्नों की भरमार: 11 बड़े सबूत बताते हैं मंदिर का स्वरूप बदला गया; सर्वे टीम में 2 मुस्लिम पुरातत्वविद थे

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वाराणसी15 घंटे पहलेलेखक: विजय उपाध्याय

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ज्ञानवापी परिसर में यह वजूस्थल है, जिसका सर्वे कराने की तैयारी है। अभी यह स्थल न्यायालय के आदेश पर सील किया गया है।

काशी के ज्ञानवापी परिसर में विशाल हिंदू मंदिर होने के कई और सबूत सामने आए हैं। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) की रिपोर्ट से यह भी साफ है कि परिसर में मंदिर होने के सबूत छिपाने की कोशिश की गई, फिर भी इन्हें मिटाया नहीं जा सका। इस रिपोर्ट में जीपीआर से हुई जांच के आधार पर एएसआई ने बताया कि तहखाने में 2 मीटर चौड़ा कुआं भी छिपा है।

विवादित इमारत का सर्वे करने वाली टीम में मुस्लिम समुदाय के भी दो पुरातत्वविद (डॉ. इजहार आलम हाशमी, और डॉ. आफताब हुसैन) शामिल थे। ASI ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि वैज्ञानिक अध्ययन, सर्वेक्षण, वास्तुशिल्प, अवशेषों के अध्ययन, कलाकृतियों, शिलालेख, कला और मूर्तियों के आधार पर ऐसा कहा जा सकता है कि मौजूदा संरचना के निर्माण से पहले यहां एक विशाल मंदिर मौजूद था।

11 बड़े प्रमाण… जो गवाही देते हैं कि मंदिर का स्वरूप बदला गया

  1. परिसर में मौजूद रहे विशाल मंदिर में बड़ा केंद्रीय कक्ष था। इसका प्रवेश द्वार पश्चिम से था, जिसे पत्थर की चिनाई से बंद किया है।
  2. केंद्रीय कक्ष के मुख्य प्रवेश द्वार को जानवरों व पक्षियों की नक्काशी और एक सजावटी तोरण से सजाया गया था।
  3. प्रवेश द्वार के ललाट बिम्ब पर बनी नक्काशी को काटा गया है। कुछ हिस्सा पत्थर, ईंट और गारे से ढक दिया गया है।
  4. तहखाने में उत्तर, दक्षिण और पश्चिम के तीन कक्षों के अवशेष को भी देखा जा सकता है, पर कक्ष के अवशेष पूर्व दिशा और उससे भी आगे की ओर हैं। इसका विस्तार सुनिश्चित नहीं हो सका, क्योंकि पूर्व का क्षेत्र पत्थर के फर्श से ढका हुआ है। ज्ञानवापी परिसर में मौजूद मूर्ति के अवशेष
  5. इमारत में पहले से मौजूद संरचना पर उकेरी गई जानवरों की आकृतियां थीं। 17वीं सदी की मस्जिद के लिए ये ठीक नहीं थे, इसलिए इन्हें हटा दिया गया, पर अवशेष हैं।
  6. मस्जिद के विस्तार व स्तंभयुक्त बरामदे के निर्माण के लिए पहले से मौजूद मंदिर के कुछ हिस्सों जैसे खंभे, भित्तिस्तंभ आदि का उपयोग बहुत कम किया है, जिनका उपयोग किया है, उन्हें जरूरत के अनुसार बदला है।
  7. इमारत की पश्चिमी दीवार (पहले से मौजूद रहे मंदिर का शेष भाग) पत्थरों से बनी है और पूरी तरह सुसज्जित की गई है।
  8. उत्तर और दक्षिण हॉल के मेहराबदार प्रवेश द्वारों को अवरुद्ध कर दिया गया है और उन्हें हॉल में बदल दिया गया है। सर्वे के दौरान मिला शिलालेख, जो संस्कृत भाषा से मिलता-जुलता है।
  9. उत्तर दिशा के प्रवेश द्वार पर छत की ओर जाने के लिए बनी सीढ़ियां आज भी प्रयोग में हैं। जबकि छत की ओर जाने वाले दक्षिण प्रवेश द्वार को पत्थर से बंद किया गया है।
  10. रिपोर्ट कहती है, किसी भी इमारत की कला व वास्तुकला न केवल उसकी तारीख बल्कि उसके स्वभाव का भी संकेत देती है। केंद्रीय कक्ष का कर्ण-रथ और प्रति-रथ पश्चिम दिशा के दोनों ओर दिखाई देता है।
  11. सबसे महत्वपूर्ण चिह्न ‘स्वस्तिक’ है। एक अन्य बड़ा प्रतीक शिव का ‘त्रिशूल’ है।

जानिए पिछले 32 साल में कब-क्या हुआ

  • 1991: लॉर्ड विश्वेश्वरनाथ का मुकदमा दाखिल करके पहली बार पूजा पाठ की अनुमति मांगी गई। इस पर जिला अदालत ने सुनवाई की और मामला विचाराधीन ही रहा।
  • 1993: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने यथास्थिति बनाए रखने का आदेश पारित किया।
  • 2018: सुप्रीम कोर्ट ने स्टे ऑर्डर की वैधता छह महीने बताई।
  • 2019: वाराणसी की जिला अदालत ने मामले की सुनवाई फिर शुरू की।
  • 2023: जिला जज की अदालत ने सील वजूखाने को छोड़कर ज्ञानवापी परिसर के सर्वे का आदेश दिया। सर्वे पूरा हुआ और रिपोर्ट अदालत में दाखिल की गई। इसी बीच इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 1991 के लाॅर्ड विश्वेश्वर मामले में स्टे ऑर्डर हटाया। एएसआई से सर्वे कराने और रिपोर्ट निचली अदालत में दाखिल करने का आदेश दिया।
  • 2024: जिला जज की अदालत ने एएसआई की सर्वे रिपोर्ट पक्षकारों को उपलब्ध कराने का आदेश पारित किया।

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ज्ञानवापी सर्वे रिपोर्ट में ASI ने दावा किया कि​​​​​ यहां एक बड़ा हिंदू मंदिर मौजूद था। ASI ने करीब 100 दिन तक ज्ञानवापी का सर्वे किया। 17वीं शताब्दी में जब औरंगजेब का शासन था। उस वक्त ज्ञानवापी स्ट्रक्चर को तोड़ा गया। कुछ हिस्सों को मॉडिफाई किया गया। मूलरूप को प्लास्टर और चूने से छिपाया गया। हिंदू पक्ष का दावा है कि रिपोर्ट में मंदिर होने के 32 सबूत हैं। दीवारों पर कन्नड़, तेलुगु, देवनागरी और ग्रंथ भाषाओं में लेखनी मिली है। दीवारों पर भगवान शिव के 4 में से 3 नाम हैं। पढ़ें पूरी खबर…

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