नक्सलियों से संबंध के मामले में पूर्व प्रोफेसर साईबाबा बरी: उम्रकैद की सजा रद्द, उन्हें 2014 में गिरफ्तार किया गया था

मुंबई13 मिनट पहले

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बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर बेंच ने पहले भी 14 अक्टूबर 2022 को साईबाबा को बरी किया था। सुप्रीम कोर्ट ने अगले ही दिन इस फैसले पर रोक लगा दी थी। (फाइल फोटो)

बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर बेंच ने नक्सलियों से कथित संबंध रखने के शक में गिरफ्तार किए गए दिल्ली यूनिवर्सिटी (DU) के पूर्व प्रोफेसर जीएन साईबाबा और 5 अन्य आरोपियों को बरी कर दिया। कोर्ट ने उनकी उम्रकैद की सजा रद्द कर दी है। उन्हें दोषसिद्धि के खिलाफ अपील करने की इजाजत भी दी गई है। जस्टिस विनय जोशी और जस्टि वाल्मिकी एसए मेनेजेस की बेंच ने मंगलवार को यह फैसला सुनाया।

दो जजों की इस बेंच ने साईबाबा की अपील पर दोबारा सुनवाई की है। ऐसा इसलिए क्योंकि हाईकोर्ट ने इन्हें पहले भी बरी किया था, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इस आदेश को रद्द कर दिया था। इस पर साईबाबा ने दोबारा अपील की थी।

पूर्व प्रोफेसर जीएन साईंबाबा शारीरिक रूप से दिव्यांग हैं। उनपर माओवादी संगठन रिवोल्यूशनरी डेमोक्रेटिक फ्रंट के साथ संबंध होने के आरोप लगे थे।

पूर्व प्रोफेसर जीएन साईंबाबा शारीरिक रूप से दिव्यांग हैं। उनपर माओवादी संगठन रिवोल्यूशनरी डेमोक्रेटिक फ्रंट के साथ संबंध होने के आरोप लगे थे।

आरोपी नरोटे की मौत हो चुकी है
इस केस में साईबाबा के अलावा 5 अन्य आरोपी हेम मिश्रा, महेश तिर्की, विजय तिर्की, नारायण सांगलीकर, प्रशांत राही और पांडु नरोटे थे। नरोटे की पहले ही मौत हो चुकी है। साई बाबा फिलहाल जेल में बंद हैं। उन्हें मई 2014 में गिरफ्तार किया गया था। वे DU के राम लाल आनंद कॉलेज में अंग्रेजी पढ़ाते थे। गढ़चिरौली के सेशन कोर्ट ने मार्च 2017 में साईबाबा और अन्य आरोपियों को दोषी ठहराया था।

जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी के छात्र हेम मिश्रा की गिरफ्तारी के बाद साईबाबा का नाम भी सामने आया था। हेम का दावा था कि वे छत्तीसगढ़ के अबूझमाड़ के जंगलों में छिपे हुए नक्सलियों और प्रोफेसर के बीच एक कूरियर के रूप में काम कर रहे थे।

अक्टूबर 2022 में भी हाईकोर्ट ने बरी किया था
14 अक्टूबर 2022 को बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर बेंच ने साईबाबा को बरी कर दिया था। कोर्ट ने कहा था कि तुरंत साईबाबा को जेल से रिहा कर दिया जाए। हाईकोर्ट से जीएन साईबाबा के बरी होने के बाद महाराष्ट्र सरकार की ओर से तुषार मेहता जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की बेंच में गए।

मेहता ने कहा- टेक्निकल आधार पर साईबाबा को रिहा किया गया है। वे अगर जेल से बाहर आते हैं तो देश के लिए ये खतरनाक होगा। साईबाबा का माओवादियों से कनेक्शन है। जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि अर्जेंट सुनवाई के लिए आप चीफ जस्टिस के पास जाइए, हम रिहाई पर रोक नहीं लगा सकते हैं।

सुप्रीम कोर्ट ने साईबाबा की रिहाई पर रोक लगाई
सुप्रीम कोर्ट ने अगले ही दिन 15 अक्टूबर को साईबाबा को बॉम्बे हाईकोर्ट से बरी किए जाने के फैसले पर रोक लगा दी थी। जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस बेला एम त्रिवेदी की बेंच ने कहा था कि मामले में विस्तृत सुनवाई की जरूरत है, इसलिए अभी साईबाबा जेल से बाहर नहीं निकल पाएंगे।

सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान साईबाबा की ओर से पेश सीनियर एडवोकेट आर बसंत ने कहा था कि पूर्व प्रोफेसर 8 साल से जेल में बंद हैं। उनकी उम्र 55 साल है और उनके शरीर का 90% हिस्सा काम नहीं करता है। साईबाबा व्हीलचेयर पर चलते हैं, इसलिए उन्हें जेल में अब न रखा जाए। इस पर कोर्ट ने कहा था कि आतंकी और नक्सली गतिविधि में शामिल होने के लिए शरीर की नहीं ब्रेन की जरूरत होती है।

2017 में गढ़चिरौली कोर्ट ने दोषी पाया था
महाराष्ट्र के गढ़चिरौली कोर्ट ने 2017 में साईबाबा और पांच अन्य को आरोपियों को UAPA और भारतीय दंड संहिता के तहत दोषी ठहराया। साईबाबा और चार अन्य को आजीवन कारावास की सजा और एक को दस साल की कैद की सजा सुनाई गई थी। गढ़चिरौली कोर्ट के फैसले के खिलाफ साईबाबा ने बॉम्बे हाईकोर्ट में अपील दायर की।

बॉम्बे हाईकोर्ट में पेशी के दौरान पत्नी वसंथा के साथ जीएन साईबाबा।

बॉम्बे हाईकोर्ट में पेशी के दौरान पत्नी वसंथा के साथ जीएन साईबाबा।

माओवाद से कनेक्शन के आरोप में गिरफ्तारी
2013 में महाराष्ट्र के गढ़चिरौली में पुलिस ने माओवाद से जुड़े महेश तिर्की, पी. नरोटे और हेम मिश्रा को गिरफ्तार किया। इन्हीं तीनों से पूछताछ के बाद जीएन साईबाबा के खिलाफ पुलिस कोर्ट गई। माओवाद से कनेक्शन के आरोप में 9 मई 2014 को दिल्ली आवास से साईबाबा को गिरफ्तार किया गया। 2015 में साईबाबा के खिलाफ UAPA के तहत केस दर्ज कर कार्यवाही शुरू की गई।

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