दिव्यांग लड़कियों का आक्रोश: नकली पैर दिखाने के लिए पैंट उतारना, व्हील चेयर से पुरुषों का हमें गोद में उठाना मंजूर नहीं

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  • नकली टांगें दिखाने के लिए पैंट उतारकर हम पुरुषों को व्हील चेयर पर नहीं उठाने देते

9 मिनट पहलेलेखक: निशा सिन्हा

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  • दृष्टिबाधितों के लिए भी ब्रेल लिपि में लिखे संदेशों को जगह-जगह पर लगाया जाना जरूरी
  • दिव्यांगों को लेकर सेंसेटिव होने के साथ ही सुविधाओं को बढ़ाने की जरूरत

यात्रा के दौरान चेकिंग पॉइंट्स पर कई तरह के अपमानजनक अनुभवों से दिव्यांग लड़कियों को गुजरना पड़ता है। ट्रैवल के दौरान कुछ चेकिंग पॉइंट्स पर प्रोस्थेटिक लेग उतारने को कहा जाता है। कई बार बिना पैंट उतारे यह कर पाना संभव नहीं होता, खासकर जब एक पैर या घुटने से ऊपर तक पैर नहीं हो। यात्रा के दौरान कई बार यात्रा के दौरान कई बार हेल्पर व्हील चेयर से उठाने या उस पर बिठाने के लिए दिव्यांग लड़कियों को गोद में उठाते हैं। लड़कियों को इस समय झेंप महसूस होती है।

दृष्टि बाधित लोगों को यात्रा के दौरान तकलीफें झेलनी पड़ती हैं। उनके लिए जगह-जगह ब्रेल लिपि में सूचनाएं लिखी होनी चाहिए।

दृष्टि बाधित लोगों को यात्रा के दौरान तकलीफें झेलनी पड़ती हैं। उनके लिए जगह-जगह ब्रेल लिपि में सूचनाएं लिखी होनी चाहिए।

हेल्पर के छूने और उठाने का तरीका सही नहीं होने पर खुद की अक्षमता पर मन कचोटता है। इन्हीं कारणों से घर से बाहर निकलने का मन नहीं करता। दिव्यांगों की यह भी पीड़ा है कि रोड क्रॉस करने के दौरान इनके लिए अलग से सिग्नल नहीं है।

पैरा-साइकलिस्ट तान्या डागा कहती हैं कि दिव्यांगों के मामले में भारतीय समाज बहुत पिछड़ा है।

पैरा-साइकलिस्ट तान्या डागा कहती हैं कि दिव्यांगों के मामले में भारतीय समाज बहुत पिछड़ा है।

पैरा-साइकलिस्ट तान्या डागा का दर्द
जम्मू-कश्मीर से कन्याकुमारी तक 2800 किमी की यात्रा 24 दिनों में पूरा करने वाली पैरा-साइकलिस्ट तान्या डागा कहती हैं कि दिव्यांगों के मामले में भारतीय समाज बहुत पिछड़ा है। एयर ट्रैवल का मेरा अनुभव भी दुखद रहा है। एयरपोर्ट पर सामान उठाने के लिए हेल्पर होते हैं, लेकिन अक्सर मेरा हैंड बैग, ट्रैवल बैग और एसिस्टिव एड बैग (दिव्यांगों की मदद करने वाले सामान ) उठाने वाले ग्राउंड वर्कर टोकते हैं कि मैं किसी को साथ लेकर क्यों नहीं चलती। ऐसे पल मुझे अपनी कमियों का अहसास कराते हैं।

मेरी एक फ्रेंड व्हील चेयर का इस्तेमाल करती है। ऐसी असुविधाओं के कारण ही वह पिछले 5 साल से सफर नहीं कर पाई। जहां तक एयरपोर्ट पर प्रोस्थेटिक लेग खोलने की बात है, तो कानूनन इसे खोल कर जांच करने का दबाव नहीं बनाया जा सकता है। बिना नकली पैर उतारे भी जांच संभव है। कई बार इस पर मेरी बहस हुई है, लेकिन मैंने कभी नकली पैर नहीं खोला। इसके लिए ट्राउजर निकालनी पड़ेगी, जो मुझे मंजूर नहीं।

हमारे देश में भी दिव्यांगों के लिए रैम्प वाली कई बसों की जरूरत है।

हमारे देश में भी दिव्यांगों के लिए रैम्प वाली कई बसों की जरूरत है।

सुधा चंद्रन का कहना हर दिव्यांग आवाज उठाए
आम लोगों को लगता है कि केवल सेलिब्रिटी की ही बात सुनी जाती है, लेकिन ऐसा नहीं है। यह कहना है दिव्यांग एक्ट्रेस सुधा चंद्रन का। सरकार दिव्यांगों को लेकर सेंसेटिव है। ऐसे में आम लोगाें को उन तक अपनी तकलीफों से जुड़ी बातों को पहुंचाना होगा। सेवाओं को लेकर हमारा फीडबैक बहुत मायने रखता है। किसी भी तरह की दिक्कत होने पर चुपचाप सह लेने से हल नहीं निकलता। कई बार बड़े पदों पर बैठे लोगाें को इन दिक्कतों का अंदाजा नहीं हाेता, जिसका सामना दिव्यांग रोज करते हैं।

उदयपुर का नारायण सेवा संस्थान दिव्यांगों को कृत्रिम अंग लगाने का काम कर रहा है।

उदयपुर का नारायण सेवा संस्थान दिव्यांगों को कृत्रिम अंग लगाने का काम कर रहा है।

मेडिकल सर्टिफिकेट बनाने की जिम्मेदारी एनजीओ को
दिव्यांगों के लिए कृत्रिम अंगों बनाने वाली गैर-सरकारी संस्था उदयपुर स्थित नारायण सेवा संस्थान के अध्यक्ष प्रशांत अग्रवाल बताते हैं कि कई सकारात्मक बदलाव हुए है, लेकिन अभी लंबा सफर तय करना है। अमेरिका में दिव्यांगों के लिए रैंप वाली लो फ्लोर बसें चलती है। बिना किसी की मदद लिए दिव्यांग व्हील चेयर लेकर इसमें आ-जा सकता है। हमारे यहां सभी सरकारी संस्थानों में रैम्प मौजूद नहीं है। कुछ सरकारी ऑफिस तीसरी मंजिल पर होती है। ऐसी बिल्डिंग में लिफ्ट न होने पर दिव्यांगों को सीढ़ियां से ऊपर जाना पड़ता है। यह कष्टदायक है।

‘सुगम्य भारत’ की योजना के तहत हर तरह के विकलांगों के लिए व्यवस्था किए जाने की जरूरत है। दृष्टि बाधित लोगों को भी यात्रा के दौरान तकलीफों का सामना करना पड़ता है। इनके लिए जगह-जगह पर ब्रेल लिपि में लिखे संदेश होने चाहिए। ऐसे टाइल्स लगाए जाने चाहिए, जिसे टच करने से पता चल जाए कि बाईं ओर जाना है या दाईं ओर। मैंने कई साल पहले सरकार से अपील की थी कि दिव्यांगों के लिए मेडिकल सर्टिफिकेट बनाने की जिम्मेदारी उन गैर-सरकारी संस्थाओं को दी जाए, जो इस क्षेत्र में काम कर रहे हैं। इससे दिव्यांगों की तकलीफें आसान होगी।

दिल्ली मेट्रो में दिव्यांगों के लिए सीट आरक्षित हैं।

दिल्ली मेट्रो में दिव्यांगों के लिए सीट आरक्षित हैं।

दिव्यांगों के मामले में दिल्ली मेट्रो अच्छा उदाहरण
दिव्यांगों के लिए दिल्ली मेट्रो की ओर से विशेष सुविधाएं दी गई है। दूसरे ट्रांसपोर्ट सिस्टम के लिए यह एक मॉडल बन सकता है। दिल्ली मेट्रो रेल कॉरपोरेशन के कॉरपोरेट कम्युनिकेशंस हेड अनुज दयाल के अनुसार हमारे 286 स्टेशन पर दिव्यांग यात्रियों की सुविधा के लिए पर्याप्त व्हील चेयर मौजूद है। इन चेयर्स को हेल्पर्स की मदद से ट्रेन के अंदर ले जा सकते हैं। ट्रेन में आरक्षित सीटों की व्यवस्था है।

दृष्टि बाधित लोगों के लिए स्टेशन पर टैक्स्टाइल पाथ बनाए गए हैं। इस पर छड़ी के सहारे चलना आसान होता होता है। इसके साथ ही स्टेशन पर इनके लिए अलग टॉयलेट्स हैं। साल 2001 की जनगणना के अनुसार 2 करोड़ 10 लाख लोग विकलांगता से जूझ रहे हैं। यह कुल जनसंख्या का 2.1 % है।

दिव्यांगों के लिए प्राइवेट कैब में सुविधाएं होनी चाहिए।

दिव्यांगों के लिए प्राइवेट कैब में सुविधाएं होनी चाहिए।

काश हमारे देश में भी यह होता

  • चेकिंग पॉइंट्स पर अच्छी तकनीक वाले स्कैनर लगाने की जरूरत। यह खुद मूव करते हुए पूरी बॉडी की जांच कर लेता है।
  • सीआईएसएफ जांचकर्मियों को सेंसेटिव बनाने की जरूरत है। कइयों को पता नहीं कि प्रोस्थेटिक लेग उताने के लिए ट्राउजर खोलना पड़ेगा।
  • निजी और सरकारी कार्यालयों में रैम्प की व्यवस्था हो।
  • सरकार की ओर से आधुनिक सुविधा से लैस ऑटोमैटिक व्हील चेयर की व्यवस्था की जाए।
  • विकसित देशों में दिव्यांगों के लिए सिग्नल पर अलग से लाइट होती है।

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