SC में चुनावी फ्रीबीज के खिलाफ दायर याचिका पर सुनवाई: मांग- लुभावने वादों पर प्रतिबंध लगे, इनसे संविधान का उल्लंघन होता है

नई दिल्ली3 मिनट पहले

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सुप्रीम कोर्ट में गुरुवार (21 मार्च) को राजनीतिक दलों की फ्रीबीज (मुफ्त सुविधाएं देने के ऐलान) के खिलाफ दायर जनहित याचिका (PIL) में सुनवाई होगी। जनहित याचिका दायर करने वाले अश्विनी उपाध्याय की ओर से पेश सीनियर एडवोकेट विजय हंसारिया ने दलील दी कि याचिका पर लोकसभा चुनाव से पहले सुनवाई की जरूरत है।

याचिका में कहा गया है कि मतदाताओं से अनुचित राजनीतिक लाभ हासिल करने के लिए लुभावने उपायों पर पूरी तरह बैन लगाया जाना चाहिए, क्योंकि वे संविधान का उल्लंघन करते हैं। याचिका में मांग की गई है कि चुनाव आयोग को इस मामले में उचित कदम उठाने चाहिए।

सुप्रीम कोर्ट ने इस याचिका का संज्ञान लिया। CJI डी वाई चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की पीठ ने 20 मार्च को कहा, ”यह जरूरी है और हम इस मामले पर कल सुनवाई जारी रखेंगे।” SC ने पहले कहा था, ‘चुनाव प्रचार के दौरान राजनीतिक दलों की तरफ से फ्रीबीज के मामले पर बहस की जरूरत है।’

याचिका में किया गया है इन बातों का जिक्र
वकील अश्विनी कुमार उपाध्याय की दायर याचिकाओं में से एक में भारत के चुनाव आयोग को चुनाव चिन्हों को जब्त करने और उन राजनीतिक दलों का पंजीकरण रद्द करने का निर्देश देने की मांग की गई है, जिन्होंने सार्वजनिक धन से तर्कहीन मुफ्त सुविधाओं का वादा किया था।

याचिका में दावा किया गया था कि राजनीतिक दल गलत लाभ के लिए मनमाने ढंग से अतार्किक मुफ्त देने का वादा करते हैं। यह मतदाताओं को अपने पक्ष में लुभाने के लिए रिश्वतखोरी और गलत प्रभाव डालने के समान है।

साथ ही दावा किया गया है कि चुनाव से पहले जनता की राशि से ऐसे वादे करना वोटर्स को गलत तरीके से से प्रभावित कर सकते हैं। ये स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव की जड़ें हिला सकता है और चुनाव प्रक्रिया की शुद्धता को खराब करने के अलावा समान अवसर को बाधित कर सकता है।

यह अनैतिक व्यवहार सत्ता में बने रहने के लिए सरकारी खजाने की कीमत पर मतदाताओं को रिश्वत देने जैसा है। लोकतांत्रिक सिद्धांतों और प्रथाओं को बनाए रखने के लिए इससे बचा जाना चाहिए।

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सुप्रीम कोर्ट ने 6 अक्टूबर को फ्रीबीज मुद्दे (चुनाव से पहले की जाने वाली घोषणाओं) पर दायर याचिकाओं पर सुनवाई की। सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ता से कहा कि हाईकोर्ट में याचिका क्यों नहीं लगाई? शीर्ष कोर्ट ने याचिकाकर्ता को ये भी निर्देश दिया कि पार्टियों को दिए मेमो में मध्य प्रदेश के चीफ मिनिस्टर ऑफिस की जगह राज्य सरकार लिखें। साथ ही राज्य सरकार को मुख्य सचिव के जरिए रिप्रजेंट करें। पूरी खबर पढ़ें

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