CJI बोले-दिल्ली सरकार और LG विवाद कोर्ट क्यों आना चाहिए: याचिकाकर्ता से कहा- आप दबाव क्यों डाल रहे; DCPCR ने फंड रोकने पर याचिका लगाई थी

दिल्ली2 घंटे पहले

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सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को एक याचिका की सुनवाई करते हुए दिल्ली राज्य सरकार और LG के बीच तनातनी को लेकर सख्ती बरती है। कोर्ट ने कहा कि इनसे जुड़ा कोई भी विवाद सुप्रीम कोर्ट ही क्यों आना चाहिए।

सुप्रीम कोर्ट ने यह बात बाल अधिकार संरक्षण आयोग (DCPCR) की उस याचिका की सुनवाई के दौरान कही। इसमें DCPCR ने अपने फंड को कथित तौर पर रोके जाने को लेकर सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था।

मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा, क्या हो रहा है, दिल्ली सरकार और उपराज्यपाल के बीच हर विवाद सुप्रीम कोर्ट ही क्यों आ रहा है।

इस पर सीनियर एडवोकेट शंकरनारायणन ने कहा कि आयोग द्वारा दायर याचिका दिल्ली सरकार और LG के बीच अब तक शीर्ष अदालत में आए अन्य विवादों से थोड़ी अलग है।

कोर्ट रूम मे इस तरह हुई बहस

  • शंकरनारायणन: यह एक आयोग है और आयोग का पैसा रोक दिया गया है।
  • CJI: शीर्ष अदालत ने व्यापक संवैधानिक मुद्दों से संबंधित याचिकाओं पर विचार किया है। अब आप हाईकोर्ट जाएं।
  • शंकरनारायणन: आयोग के फंड को रोका नहीं जा सकता। राज्य के छह करोड़ बच्चों को यह कैसे बताया जा सकता है कि आयोग के पास एक पैसा भी नहीं आएगा।
  • CJI: इसीलिए उच्च न्यायालय हैं। आप दिल्ली उच्च न्यायालय पर दबाव क्यों डाल रहे हैं?
  • CJI: दिल्ली सरकार और उपराज्यपाल के बीच हर दो दिन में यहां बात हो रही है। बस मार्शल योजना बंद कर दी गई और हमें अनुच्छेद 32 के तहत एक याचिका मिली है। हमें यहां (अनुच्छेद) 32 के तहत याचिका पर विचार क्यों करना चाहिए?

सुप्रीम कोर्ट ने कहा था- दिल्ली सरकार की सलाह पर काम करेंगे LG
सुप्रीम कोर्ट ने इसी साल मई में फैसला दिया था कि दिल्ली में सरकारी अफसरों पर चुनी हुई सरकार का ही कंट्रोल रहेगा। 5 जजों की संविधान पीठ ने एक राय से कहा- पब्लिक ऑर्डर, पुलिस और जमीन को छोड़कर उप राज्यपाल बाकी सभी मामलों में दिल्ली सरकार की सलाह और सहयोग से ही काम करेंगे।

AAP सरकार सुप्रीम कोर्ट क्यों पहुंची थी?
पहला मामला: दिल्ली में विधानसभा और सरकार का कामकाज तय करने के लिए राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली सरकार (GNCTD) अधिनियम, 1991 है। केंद्र सरकार ने 2021 में इसमें बदलाव कर दिया। कहा गया- विधानसभा के बनाए किसी भी कानून में सरकार का मतलब उपराज्यपाल होगा। सरकार किसी भी फैसले में LG की राय जरूर लेगी।

दूसरा मामला: दिल्ली में जॉइंट सेक्रेट्री और इस रैंक से ऊपर के अफसरों के ट्रांसफर और पोस्टिंग के अधिकारों के मुद्दे पर सरकार और उपराज्यपाल के बीच टकराव था। दिल्ली सरकार उपराज्यपाल का दखल नहीं चाहती थी। इन दोनों मामलों को लेकर आम आदमी पार्टी (AAP) सरकार सुप्रीम कोर्ट पहुंची।

सुप्रीम कोर्ट ने क्या फैसला दिया है?

  • पुलिस, कानून-व्यवस्था और प्रॉपर्टी को छोड़कर दिल्ली में प्रशासन पर नियंत्रण चुनी हुई सरकार का होना चाहिए।
  • चुनी हुई सरकार के पास अफसरों पर नियंत्रण की ताकत ना हो, अधिकारी मंत्रियों को रिपोर्ट करना बंद कर दें या फिर उनके निर्देशों का पालन ना करें तो जवाबदेही के नियम के मायने नहीं रह जाएंगे।
  • राज्य के मामलों में केंद्र का इतना दखल ना हो कि नियंत्रण उसी के हाथ में चला जाए।
  • दिल्ली का किरदार अनूठा है, वह दूसरे केंद्र शासित प्रदेशों जैसी नहीं है। दिल्ली भले ही पूर्ण राज्य ना हो, लेकिन इसके पास कानून बनाने के अधिकार हैं।

कोर्ट के फैसले का प्रभाव क्या होगा?
दिल्ली सरकार अधिकारियों की पोस्टिंग और ट्रांसफर अपने हिसाब से कर सकेगी। सरकार को हर फैसले के लिए उपराज्यपाल की मंजूरी भी नहीं लेनी होगी। LG को राज्य सरकार की सलाह माननी पड़ेगी। जिन मुद्दों पर केंद्र के कानून नहीं हैं, उन पर दिल्ली सरकार कानून बना सकेगी।

इस फैसले के बाद केंद्र के पास क्या विकल्प हैं?
केंद्र अब रिव्यू पिटीशन दाखिल कर सुप्रीम कोर्ट को फैसले की समीक्षा के लिए कह सकता है। अगर फैसला तब भी कायम रखा जाता है तो केंद्र क्यूरेटिव पिटीशन दाखिल कर सकती है। यानी वह नए सिरे से इन मामलों पर अपनी दलीलें रख सकती हैं। केंद्र के पास एक और रास्ता है। वह संसद में कानून लाकर कोर्ट का फैसला बदल सकता है। हालांकि नया कानून कानून बन जाता है तो उसे भी सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी जा सकती है।

सुप्रीम कोर्ट ने 18 जनवरी को फैसला सुरक्षित रखा था
इस केस की सुनवाई सुप्रीम कोर्ट की 5 जजों की संविधान पीठ कर रही थी। CJI डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस एमआर शाह, जस्टिस कृष्ण मुरारी, जस्टिस हिमा कोहली और जस्टिस पीएस नरसिम्हा इसमें शामिल थे। बेंच ने 18 जनवरी को सुनवाई पूरी कर फैसला सुरक्षित रखा था। संवैधानिक बेंच को यह केस 6 मई 2022 को रेफर किया गया था।

दिल्ली में सरकार और उपराज्यपाल के बीच विवाद की टाइमलाइन

  • आप सरकार और उपराज्यपाल के बीच अधिकारों की लड़ाई 2015 में दिल्ली हाईकोर्ट पहुंची थी। हाईकोर्ट ने अगस्त 2016 में राज्यपाल के पक्ष में फैसला सुनाया था।
  • आप सरकार ने इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील की। 5 मेंबर वाली संविधान बेंच ने जुलाई 2016 में आप सरकार के पक्ष में फैसला सुनाया। कोर्ट ने कहा कि CM ही दिल्ली के एग्जीक्यूटिव हेड हैं। उपराज्यपाल मंत्रिपरिषद की सलाह और सहायता के बिना स्वतंत्र रूप से काम नहीं कर सकते हैं।
  • इसके बाद सर्विसेज यानी अधिकारियों पर नियंत्रण जैसे कुछ मामलों को सुनवाई के लिए दो सदस्यीय रेगुलर बेंच के सामने भेजा गया। फैसले में दोनों जजों की राय अलग थी।
  • जजों की राय में मतभेद के बाद यह मामला 3 मेंबर वाली बेंच के पास गया। उन्होंने केंद्र की मांग पर पिछले साल जुलाई में इसे संविधान पीठ के पास भेज दिया।
  • संविधान बेंच ने जनवरी में 5 दिन इस मामले पर सुनवाई की और 18 जनवरी को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था।
  • 11 मई को सुप्रीम कोर्ट ने अफसरों पर कंट्रोल का अधिकार दिल्ली सरकार को दे दिया। साथ ही कहा कि उपराज्यपाल सरकार की सलाह पर ही काम करेंगे।