हर घर वैक्सीन के वॉरियर: मिलिए, लाखों फ्रंटलाइन वर्कर्स के उन प्रतिनिधि चेहरों से जो देश को कोरोना महामारी से सुरक्षित करने में घर की चिंता भी भूले

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  • देश को कोरोना महामारी से बचाने में घर की चिंता भूल चुके लाखों फ्रंटलाइन वर्कर्स के प्रतिनिधि चेहरों से मिलिए।

नई दिल्ली6 घंटे पहलेलेखक: अनिरुद्ध शर्मा

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केंद्र सरकार ने सम्मान में जारी की कॉफी टेबल बुक।

कोविड-19 के खिलाफ जंग में टीकाकरण अभियान का आंकड़ा 100 करोड़ के शिखर को छूने वाला है। इसके लिए फ्रंटलाइन वर्कर्स को न केवल दिन-रात मेहनत करनी पड़ी बल्कि अनेक मौकों पर उन्होंने अपने निजी प्रयास से इस अभियान को सफल बनाने में अहम भूमिका निभाई। स्वास्थ्य मंत्रालय व यूनीसेफ ने सेंटीनल ऑफ स्वॉइल (धरती के प्रहरी) नाम से एक कॉफी टेबल बुक तैयार की है। भास्कर आपके लिए उनमें से कुछ चुनिंदा किरदारों की कहानी लेकर आया है-

राजस्थान के मुकेश मेंदा

दूर-दराज के गांवों में नाव से कंधे पर वैक्सीन का बक्सा लटकाकर टीकाकरण करने पहुंचे
राजस्थान के बांसवाड़ा जिले में अनेक आदिवासी बहुल इलाके ऐसे हैं जहां नाव ही पहुंच सकती है। यहां अंतिम गांव तक डॉ. मुकेश मेंदा कंधे पर वैक्सीन का बॉक्स रख नाव से पहुंचे। लोगों के मन में टीके पर भ्रांतियां थीं। उन्होंने लोगों को समझाया। मेंदा बताते हैं कि जब महिलाएं भी वैक्सीनेशन सेंटर पर पहुंचने लगीं तो लगा कि अब हम सफल हो गए।

मध्य प्रदेश की हर्षाली पुरोहित

पीले चावल घर के दरवाजों पर रखकर लोगों को टीकाकरण केंद्र के लिए आमंत्रित किया
हर्षाली मध्य प्रदेश के झाबुआ जिले के नरसिंहरूंडा गांव में राष्ट्रीय किशोर स्वास्थ्य कार्यक्रम में वॉलंटियर हैं। अपने गांव में टीकाकरण के प्रति बेरुखी देख उन्होंने गांव में हर घर के बाहर पीले चावल रख लोगों को आमंत्रित करना शुरू किया। धीरे-धीरे लोग आंगनबाड़ी केंद्र आने लगे। आज पूरे गांव को टीका लग चुका है। हर्षाली कहती हैं, गर्व है कि गांव के लिए कुछ किया।

तमिलनाडु के पीके पेरुमल

लोगों को जागरूक करने के लिए बाइक पर लगा लिए पोस्टर और खरीदा लाउडस्पीकर
चेन्नई के मछली बाजार के पीके पेरुमल मछली बाजार में लोगों को बिना मास्क लगाए और बिना हाथ साफ किए भीड़ लगाए देखते। वह कुछ करना चाहते थे। उन्होंने बाइक पर कोविड जागरूकता वाले पोस्टर लगवाए और लाउडस्पीकर खरीद लिया। वे रोज सुबह से शाम तक भीड़ भरे इलाकों में माइक से मास्क लगाने, टीका लगवाने की अपील करते।

गुजरात की कुसुमबेन देवजीभाई

टीका लगाने के फोटो-वीडियो अपने वाॅट्सएप स्टेटस पर अपलोड कर लोगों को प्रेरित किया
गुजरात के दांतीवाड़ा में नर्स कुसुमबेन देवजीभाई ने पहले दिन 100 लोगों को टीका लगाने की तैयारी की थी, मगर शाम तक केवल 6 लोग पहुंचे। कुसुम ने सभी 6 लोगों के फोटो-वीडियो अपने वाॅट्सएप स्टेटस पर डाले। यह पूरे कस्बे में वायरल हो गए। फिर अभियान ने जोर पकड़ लिया और बड़ी संख्या में लोग टीकाकरण केंद्र आने लगे।

केरल की अश्वथी मुरली : कम्युनिटी रेडियो के जरिए आदिवासी समुदाय को उनकी भाषा में टीके के लिए प्रेरित किया
केरल के वायनाड जिले में 18 फीसदी आदिवासी रहते हैं, इनमें पानियार समुदाय के आदिवासी सबसे पिछड़े हैं। इस इलाके में रेडियो के सिवाय किसी भी सूचना के किसी भी स्रोत की पहुंच नहीं है। ऐसे में अश्वथी मुरली ने कम्युनिटी रेडियो मट्‌टोली के जरिए बाहरी दुनिया से इस समुदाय के बीच सेतु का काम किया। उन्होंने स्थानीय पानिया भाषा में इस समुदाय को कोविड टीकाकरण के बारे में जागरूक किया।

सबसे पहले अश्वथी ने खुद टीका लगवाया और जब लोगों ने देखा कि उन्हें कुछ नहीं हुआ है तो उन्हें बात समझ आने लगी। उन्होंने सारी बातें कम्युनिटी रेडियो के माध्यम से की। वह बताती हैं कि जब समुदाय की लड़की अपनी भाषा में ही बात बताती है तो उसे समझना व भरोसा करना बहुत आसान होता है, इसके बाद लोग किसी दबाव या मजबूरी में नहीं, बल्कि दिल से बात मानते हैं। ऐसा ही हुआ, इस इलाके के अधिकांश लोगों ने टीका लगवा लिया है।
गुजरात के प्रवीण एस बारिया : अपने माता-पिता के अंतिम संस्कार से घर जाने की बजाय सीधे एंबुलेंस सेवा की ड्यूटी पर पहुंचे
गुजरात की 108 एंबुलेंस सेवा के ड्राइवर प्रवीण एस बारिया ने कोविड-19 महामारी के दौरान अपने माता-पिता को खो दिया। जब उनका अंतिम संस्कार हुआ तो उसके बाद घर आने की बजाय सीधे वे अपनी ड्यूटी पर पहुंचे क्योंकि फोन पर बिना रुके कॉल पर कॉल आ रही थीं। इसी तरह, अन्य एंबुलेंस ड्राइवर नासिर मलिक को जब परिजन भर्राए गले से अपने परिजनों को सौंपते थे, जब उन्हें अपने पेशे के महत्व का अहसास हुआ। उन्होंने सैकड़ों मरीजों को अस्पताल पहुंचाया। रास्ते में वही मरीजों के केयरटेकर होते थे और वही उन्हें सांत्वना देते थे कि वे जल्द ठीक होकर वापस लौटेंगे।

दिल्ली के देवाशीष देसाई : एम्स में कई शिफ्टों में लगातार ड्यूटी देते रहे क्योंकि कोई रिलीवर ही नहीं था
एम्स (दिल्ली) के मेडिसिन डिपार्टमेंट के रेजीडेंट डॉक्टर देवाशीष देसाई को महामारी के दूसरी लहर के दौरान अप्रैल-मई में लगातार कई शिफ्टों में ड्यूटी निभानी पड़ी क्योंकि कोई मरीजों के बोझ के चलते कोई रिलीवर ही मौजूद नहीं था। मरीजों को दाखिल करने के बाद उनके पास उनका कोई अपना तीमारदार के रूप में मौजूद नहीं रहता था, इसलिए न केवल उनकी दवाई बल्कि उनके खाने-पीने का खयाल रखना पड़ता था। उन्हें भावनात्मक रूप से भी सहारा देना होता था।

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