सुप्रीम कोर्ट में LMV लाइसेंस को लेकर सुनवाई शुरू: कोर्ट तय करेगा- क्या LMV ड्राइविंग लाइसेंस धारक ट्रांसपोर्ट व्हीकल चला सकता है

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नई दिल्ली23 मिनट पहले

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इस सुनवाई में तय किया जाना है कि क्या LMV चलाने का लाइसेंस रखने वाले शख्स को 7,500 kg से कम वजन वाले ट्रांसपोर्ट व्हीकल को चलाने की इजाजत होगी।

सुप्रीम कोर्ट में बुधवार को लाइट मोटर व्हीकल (LMV) लाइसेंस से जुड़े एक मामले की सुनवाई दोबारा शुरू हुई। इस केस में यह तय किया जाना है कि क्या LMV चलाने का लाइसेंस रखने वाले शख्स को 7,500 kg से कम वजन वाले ट्रांसपोर्ट व्हीकल को चलाने की इजाजत होगी।

दरअसल इस सवाल के चलते कई विवाद खड़े हो रहे हैं। इंश्योरेंस कंपनियां ऐसे क्लेम के पेमेंट पर सवाल उठा रही हैं, जिसमें LMV लाइसेंस धारकों के ट्रांसपोर्ट व्हीकल चलाने से एक्सीडेंट हुआ हो। मामले में पिछली सुनवाई 16 अप्रैल को हुई थी।

केंद्र की तरफ से अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी ने कहा था कि मोटर व्हीकल एक्ट 1998 में संशोधन के लिए सुझाव लगभग तैयार हैं, उन्हें सिर्फ संसद में पेश किया जाना है। इसे संसद के शीत सत्र में पेश किया जा सकता है। इसके बाद चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अगुआई वाली सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की बेंच ने इस मामले की सुनवाई करना तय किया।

इस बेंच में जस्टिस ऋषिकेश रॉय, पीएस नरसिम्हा, पंकज मिथल और मनोज मिश्रा शामिल हैं। बेंच ने कहा कि उन्होंने इस मामले को कुछ समय पहले ही सुना है, इसलिए संसद में इस एक्ट के संशोधनों के पारित होने का इंतजार किए बिना इस पर सुनवाई करेंगे।

2017 के एक मामले से उठा सवाल
पिछली सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने कहा था कि 2017 में मुकुंद देवांगन बनाम ओरिएंटल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड मामले में दिए गए सुप्रीम कोर्ट के फैसले को केंद्र ने स्वीकार किया था और फैसले के साथ तालमेल बिठाने के लिए नियमों में बदलाव किए गए थे। ऐसे में अब इसे लेकर केंद्र सरकार का मत जानना जरूरी है।

मुकुंद देवांगन केस में सुप्रीम कोर्ट की तीन जजों की बेंच ने फैसला सुनाया था कि ऐसे ट्रांसपोर्ट व्हीकल, जिनका कुल वजन 7,500 किलोग्राम से ज्यादा नहीं है, उन्हें LMV यानी लाइट मोटर व्हीकल की परिभाषा से बाहर नहीं कर सकते हैं।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि देश में लाखों ड्राइवर देवांगन मामले के फैसले के आधार पर काम कर रहे हैं। यह कोई संवैधानिक मामला नहीं है। यह पूरी तरह से कानूनी मामला है। और यह सिर्फ कानून का सवाल नहीं है, बल्कि कानून के सामाजिक प्रभाव का भी सवाल है। हमें ये देखना होगा कि इससे लोगों के सामने कड़ी मुश्किलें खड़ी न हों। हम संविधान बेंच में सामाजिक नीति के मामलों पर फैसला नहीं सुना सकते हैं।

जुलाई 2023 में संवैधानिक बेंच ने शुरू की था मामले पर सुनवाई
पिछले साल 18 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक बेंच ने इस कानूनी सवाल से जुड़ीं 76 याचिकाओं पर सुनवाई शुरू की थी। प्रमुख याचिका बजाज अलायंस जनरल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड की तरफ से दाखिल की गई थी।

मोटर व्हीकल एक्ट 1998, अलग-अलग तरीकों के वाहनों के लिए ड्राइविंग लाइसेंस देने के अलग-अलग प्रावधान करता है। यह मामला 8 मार्च 2022 को जस्टिस यू यू ललित (अब रिटायर्ड) की अगुआई वाली तीन जजों की बेंच की तरफ से बड़ी बेंच को सौंपा गया था। बेंच ने कहा था कि मुकुंद देवांगन फैसले में सुप्रीम कोर्ट की तरफ से कानून के कुछ प्रावधानों पर ध्यान नहीं दिया गया था और विवादित मुद्दे पर पुनर्विचार करने की आवश्यकता है।

16 अप्रैल को सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई टाल दी थी
इससे पहले 16 अप्रैल को बेंच ने इस मामले की सुनवाई टाल दी थी। बेंच ने कहा था कि 15 अप्रैल 2024 के एक नोटिफिकेशन में मंत्रालय ने इस कानून में प्रस्तावित बदलावों की डिटेल दी है। आगामी लोकसभा चुनावों को देखते हुए अटॉर्नी जनरल की मांग है कि इस सुनवाई को जुलाई के आखिरी हफ्ते तक के लिए टाल दें, ताकि केंद्र सरकार नई चुनी गई संसद के सामने मोटर व्हीकल एक्ट 1998 में संशोधन का प्रस्ताव रख सके।

कोर्ट ने कहा कि इन संशोधनों का कोई प्रभाव होगा या नहीं यह अगली सुनवाई के दौरान तय किया जाएगा। इसके पहले सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से सवाल पूछा था कि क्या कानून में बदलाव की जरूरत है ताकि इस कानूनी सवाल को हल किया जा सके कि क्या एक व्यक्ति जिसके पास हल्के मोटर वाहन का ड्राइविंग लाइसेंस है, वह एक निश्चित वजन के परिवहन वाहन को कानूनी रूप से चला सकता है।

कोर्ट ने इस कानूनी सवाल पर अटॉर्नी जनरल की सहायता भी मांगी थी। कोर्ट ने कहा था कि ये नीति से जुड़े मुद्दे हैं जो लाखों लोगों के रोजगार पर असर डालते हैं, इसलिए सरकार को इस मामले पर नए सिरे से विचार करने की जरूरत है। इस मामले को नीति स्तर पर उठाया जाना चाहिए।