सुप्रीम कोर्ट में लिंगदोह कमेटी की सिफारिश को चुनौती: छात्र संघ चुनाव लड़ने पर लगी पाबंदी हटाने की मांग; केंद्र और UGC से जवाब मांगा

  • Hindi News
  • National
  • Supreme Court On Lyngdoh Committee Recommendation | Asks Centre And UGC File Response

नई दिल्ली39 मिनट पहले

  • कॉपी लिंक

लिंगदोह कमेटी की सिफारिश के खिलाफ अगली सुनवाई 10 अप्रैल को होगी।

सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार (12 फरवरी) को लिंगदोह कमेटी की सिफारिश के खिलाफ दायर याचिका पर सुनवाई की। इस याचिका में मांग की गई है कि स्टूडेंट्स के एक से ज्यादा बार छात्र संघ चुनाव लड़ने पर लगी पाबंदी को हटाया जाए, क्योंकि यह मनमानी और छात्रों के साथ भेदभाव है।

लिंगदोह समिति की सिफारिश 6.5.6 के खिलाफ उत्तराखंड के रहने वाले नवीन प्रकाश नौटियाल और अन्य ने याचिका लगाई थी। जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस केवी विश्वनाथन ने केंद्र सरकार और यूनिवर्सिटी ग्रांट कमीशन (UGC) को नोटिस भेजकर जवाब मांगा है। अगली सुनवाई 10 अप्रैल को होगी।

क्या है लिंगदोह कमेटी की रिपोर्ट का नियम 6.5.6
सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने यूनिवर्सिटी, कॉलेज और दूसरे शैक्षणिक संस्थानों में होने वाले छात्र संघ चुनावों को लेकर लिंगदोह पैनल बनाया था। सिफारिशें देने के लिए पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त जेएम लिंगदोह को अध्यक्ष बनाया गया था। इस कमेटी ने 26 मई 2006 को अपनी रिपोर्ट सौंपी थी।

इसमें यह भी कहा गया है कि एक उम्मीदवार को पदाधिकारी पद के लिए चुनाव लड़ने का एक मौका मिलेगा, और कार्यकारी सदस्य के पद के लिए चुनाव लड़ने के दो अवसर मिलेंगे।

पैनल के गठन के पीछे का उद्देश्य छात्र राजनीति से आपराधिकता और धनबल को दूर करना था। इसलिए रिपोर्ट में शामिल सिफारिशों को 22 सितंबर 2006 के बाद से होने वाले छात्र संघ चुनावों के लिए सभी कॉलेजों और विश्वविद्यालयों पर लागू कर दिया गया।

याचिकाकर्ता ने कहा- ये नियम मनमाना है
याचिकाकर्ता की ओर से पेश वकील प्रशांत भूषण ने कहा कि विशेष सिफारिश के बारे में कोई कारण नहीं बताया गया, न ही कोई चर्चा की गई। इस तरह का प्रावधान पूरी तरह से मनमाना और भेदभावपूर्ण है। याचिका में नियम 6.5.6 को गलत बताया गया, क्योंकि यह संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन करता है। यह भी कहा गया कि सिफारिश दोहरी शर्तों को पूरा नहीं करती।

ये खबर भी पढ़ें…

राज्यों में डिप्टी CM की नियुक्ति असंवैधानिक नहीं

सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को कहा कि राज्यों में डिप्टी CM की नियुक्ति संविधान के खिलाफ नहीं है। यह सिर्फ एक ओहदा है, जो वरिष्ठ नेताओं को दिया जाता है। इस पद पर नियुक्त व्यक्ति को कोई अतिरिक्त फायदा भी नहीं मिलता। बेंच ने कहा- सरकार में पार्टियों के गठबंधन या अन्य वरिष्ठ नेताओं को अधिक महत्व देने के लिए यह प्रक्रिया अपनाई जाती है। पढ़ें पूरी खबर…

खबरें और भी हैं…