सिंह-कौर सरनेम सिखों की पहचान के लिए जरूरी नहीं: गुरुद्वारा कमेटी इलेक्शन को चुनौती दी थी; जम्मू कश्मीर हाईकोर्ट ने याचिका खारिज की

श्रीनगर9 मिनट पहले

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अखनूर DGPC के चुनाव लड़ने वाले शख्स ने यह याचिका जम्मू कश्मीर हाईकोर्ट में दायर की थी।

जम्मू और कश्मीर हाईकोर्ट का कहना है कि सिख धर्म के व्यक्ति की पहचान के लिए उसके सरनेम में ‘सिंह’ या ‘कौर’ होना जरूरी नहीं है। दरअसल, जस्टिस वसीम सादिक नरगल की बेंच अखनूर गुरुद्वारा प्रबंधक समिति (डीजीपीसी) के चुनाव को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई कर रही थी। वैधानिक अपीलीय प्राधिकारी से याचिका खारिज होने के बाद याचिकाकर्ता हाईकोर्ट पहुंचा था।

याचिकाकर्ता ने अखनूर में DGPC का चुनाव लड़ा और हार गया। इसने चुनाव रिजल्ट को चुनौती दी थी। उसका कहना था कि चुनाव में कुछ गैर-सिख मतदाताओं को वोटर लिस्ट में जोड़ा गया था। इन वोटर्स के सरनेम में ‘सिंह’ या ‘कौर’ नहीं था।

याचिका में यह भी कहा गया कि गैर-सिखों को शामिल करने से पूरी चुनाव प्रक्रिया खराब हो गई है और उन्होंने डुप्लिकेट एंट्रीज और मृत वोटर्स के वोट डालने की भी बात कही थी।

ऐसे कई लोग जो जिनका सरनेम सिंह या कौर नहीं- जस्टिस नरगल
जस्टिस वसीम सादिक नरगल ने जम्मू-कश्मीर सिख गुरुद्वारा और धार्मिक बंदोबस्ती अधिनियम, 1973 का जिक्र करते हुए कहा- “याचिकाकर्ता का तर्क 1973 के अधिनियम में निर्धारित परिभाषा के उलट है। इसे स्वीकार नहीं किया जा सकता। न ही यह कानून की नजर में टिकाऊ है। ऐसे बहुत से लोग हैं, जिनके सरनेम में सिंह या कौर नहीं है, लेकिन फिर भी उन्हें सिख के रूप में पहचाना जाता है, क्योंकि वे सिख धर्म का प्रचार करते हैं।

याचिकाकर्ता ने आधारहीन तथ्याें के आधार पर अपील की
कोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ता ने दावों और आपत्तियों के लिए निर्धारित समय सीमा के दौरान मतदाता सूची को लेकर कोई आपत्ति नहीं उठाई थी। यह भी देखा गया कि पूरी चुनाव प्रक्रिया में शामिल होने के बाद ऐसे मुद्दों को उठाने की अनुमति नहीं थी।

जस्टिस नरगल ने कहा – यह एक अनोखा मामला है, जहां अपीलकर्ता आपत्तियां दर्ज करने और चुनाव में भाग लेने का मौका लेने में असफल रहा। असफल होने पर वह झूठी याचिका दायर करके पलट गया। इसलिए याचिका आधारहीन बताते हुए खारिज कर दिया गया।

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