वन नेशन-वन इलेक्शन से ममता बनर्जी को दो प्रॉब्लम: एक राष्ट्र के अर्थ पर सवाल किया, बोलीं- पहले ये पहेली हल होनी चाहिए

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कोलकाता51 मिनट पहले

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ममता ने पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में बनी वन नेशन-वन इलेक्शन कमेटी को लिखे लेटर में ये बातें कहीं हैं।

पश्विम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने वन नेशन-वन इलेक्शन से असहमति जताई है। ममता ने कहा- संवैधानिक मुद्दे पर वह नेशन की परिभाषा से पूरी तरह संतुष्ट नहीं हैं। इससे दो समस्याएं हैं।

पहली ये, कि सांस्कृतिक और ऐतिहासिक महत्व पर वन नेशन का कांसेप्ट समझ आता है लेकिन संवैधानिक मसलों पर इसकी व्याख्या कैसे की जाएगी, इस पर उन्हें संदेह है।

इसके अलावा जब हमारे देश में हर राज्य की विधानसभा चुनावों और आम चुनावों के चक्र में इतना अंतर है तो, इसे एक साथ कैसे लाएंगे। ममता ने आगे कहा, कि जब तक यह अवधारणा कहां से आई इसकी पहेली हल नहीं हो जाती, तब तक वन नेशन पर सहमति जता पाना मुश्किल है।

ममता ने पैनल को लेटर लिखा, बोलीं- वैचारिक मतभेद
ममता ने पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में बनी वन नेशन-वन इलेक्शन कमेटी को लिखे लेटर में ये बातें कहीं हैं। दरअसल कमेटी ने इस मुद्दे पर सभी राज्यों से सुझाव मांगे हैं।

पैनल को लिखे लेटर में ममता ने कहा कि 1952 में केंद्र और राज्यों के चुनाव एक साथ कराए गए थे। कुछ सालों तक यह प्रथा चली। बाद में यह टूट गई। मुझे खेद है मैं आपके द्वारा तैयार किए गए वन नेशन-वन इलेक्शन के कॉन्सेप्ट से सहमत नहीं हो सकती।

उन्होंने कहा कि समिति के प्रस्ताव से सहमत होने में कई बुनियादी वैचारिक कठिनाइयाँ हैं और इसकी अवधारणा स्पष्ट नहीं है।

ममता बोलीं- राज्यों में जनता का विश्वास टूटेगा
TMC नेता ने आगे कहा- जो राज्य आम चुनाव के साथ इलेक्शन नहीं कराना चाहते हैं। उन्हें केवल समानता के लिए समय से पहले चुनाव के लिए मजबूर नहीं किया जाना चाहिए।

इससे जनता का विश्वास टूटेगा जिन्होंने पहले ही एक तय समय के लिए अपने विधानसभा उम्मीदवार को चुन लिया है।

वन नेशन वन इलेक्शन को लेकर अब तक 2 बैठकों के बारे में पढ़िए …

दिल्ली के जोधपुर ऑफिसर्स हॉस्टल में पहली बैठक हुई थी। पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में कमेटी के 8 मेंबर इसमें शामिल हुए थे।

दिल्ली के जोधपुर ऑफिसर्स हॉस्टल में पहली बैठक हुई थी। पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में कमेटी के 8 मेंबर इसमें शामिल हुए थे।

23 सितंबर: एक देश, एक चुनाव के लिए केंद्र सरकार की बनाई हाई लेवल कमेटी की पहली बैठक 23 सितंबर को हुई थी। इसमें फैसला लिया गया था कि एक साथ चुनाव के मुद्दे पर मान्यता प्राप्त राष्ट्रीय और क्षेत्रीय दलों के विचार लिए जाएंगे। इस मुद्दे पर सुझाव देने के लिए लॉ कमीशन को भी बुलाया जाएगा।

24 अक्टूबर: दूसरी बैठक दिल्ली के जोधपुर हॉस्टल में हुई थी। इसमें लॉ कमीशन के अध्यक्ष जस्टिस ऋतु राज अवस्थी ने कहा था- एक देश एक चुनाव पर अभी रिपोर्ट तैयार नहीं है। फिलहाल रिपोर्ट पर काम चल रहा है। कानूनी और संवैधानिक पहलुओं पर चर्चा की गई थी।

दूसरी बैठक भी दिल्ली के जोधपुर हॉस्टल में हुई थी। बैठक के बाद बाहर निकलते हुए रामनाथ कोविंद।

दूसरी बैठक भी दिल्ली के जोधपुर हॉस्टल में हुई थी। बैठक के बाद बाहर निकलते हुए रामनाथ कोविंद।

2 सितंबर 2023 को कमेटी बनी थी
वन नेशन वन इलेक्शन को लेकर पूर्व राष्ट्रपति की अध्यक्षता में कमेटी बनी। इसमें गृह मंत्री अमित शाह और पूर्व सांसद गुलाम नबी आजाद समेत 8 मेंबर बनाए गए। केंद्रीय कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल कमेटी के स्पेशल मेंबर बनाए गए। इस कमेटी में अधीर रंजन का भी नाम था, लेकिन उन्होंने शाह को लेटर लिखकर कहा था कि मैं इस समिति में काम नहीं करूंगा, क्योंकि ये धोखा देने के लिए बनाई गई है।

क्या है वन नेशन वन इलेक्शन
भारत में फिलहाल राज्यों के विधानसभा और देश के लोकसभा चुनाव अलग-अलग समय पर होते हैं। वन नेशन वन इलेक्शन का मतलब है कि पूरे देश में एक साथ ही लोकसभा और विधानसभाओं के चुनाव हों। यानी मतदाता लोकसभा और राज्य के विधानसभाओं के सदस्यों को चुनने के लिए एक ही दिन, एक ही समय पर या चरणबद्ध तरीके से अपना वोट डालेंगे।

आजादी के बाद 1952, 1957, 1962 और 1967 में लोकसभा और विधानसभा के चुनाव एक साथ ही होते थे, लेकिन 1968 और 1969 में कई विधानसभाएं समय से पहले ही भंग कर दी गईं। उसके बाद 1970 में लोकसभा भी भंग कर दी गई। इस वजह से एक देश-एक चुनाव की परंपरा टूट गई।

वन नेशन, वन इलेक्शन के समर्थन में PM मोदी
मई 2014 में जब केंद्र में मोदी सरकार आई, तो कुछ समय बाद ही एक देश और एक चुनाव को लेकर बहस शुरू हो गई। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी खुद कई बार वन नेशन, वन इलेक्शन की वकालत कर चुके हैं। संविधान दिवस के मौके पर एक बार प्रधानमंत्री मोदी ने कहा था- आज एक देश-एक चुनाव सिर्फ बहस का मुद्दा नहीं रहा। ये भारत की जरूरत है। इसलिए इस मसले पर गहन विचार-विमर्श और अध्ययन किया जाना चाहिए।

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