मेरा भाई बजरंग दल से था इसलिए मारा गया: एम्बुलेंस से रातों-रात उसको नीचे फेंक दिया; मां बोली-मरने के बाद बेटे का चेहरा भी नहीं देख पाई

बागपत9 मिनट पहलेलेखक: रक्षा सिंह

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बागपत के 30 साल के प्रदीप शर्मा। 10 साल पहले गांव-गांव में जाकर गैस चूल्हे, स्टोव की रिपेयरिंग करते थे। धार्मिक कार्यक्रमों में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते थे। बाद में बजरंग दल का सदस्य बन गए। सोशल मीडिया पर अपने नाम के आगे बजरंग दल लगा लिया। जहां भी बैठकें होती, वहां प्रदीप पहुंच जाते। नारे लगाते। धर्म की रक्षा के लिए जीने-मरने की बात करते। मेवात के नूंह में पिछले महीने शोभा यात्रा में शामिल होने गए थे। हिंसा भड़क गई। प्रदीप हिंसा में मारे गए।

प्रदीप की मौत ने उनके पिता और मां को तोड़कर रख दिया। वो बात करते-करते रोने लगते हैं। किसी अजनबी के घर आते ही मां कहती है, “मेरे प्रदीप को देखा क्या? मेरा बेटा भूखा होगा, एक बार बात करवा दो। वह अब फोन नहीं करता, पूछता नहीं कि मां रोटी खाई कि नहीं।” हर बार पिता संभालते हैं, लेकिन खुद के आंसू रोक नहीं पाते।

दैनिक भास्कर की टीम प्रदीप शर्मा के घर पहुंची। वहां मां-पिता और भाई मिले। उनसे बात की। प्रदीप के बारे में जाना। उस दिन हुई हिंसा के बारे में जाना। प्रदीप की हत्या के बाद परिवार कैसे तबाह हुआ, उस दर्द को सुना। चलिए, सिलसिलेवार तरीके से बताते हैं…

3 कमरों का घर, पिता गांव-गांव मसाला बेचा करते थे

तस्वीर में प्रदीप का घर है। वो गुरुग्राम में रहता था लेकिन हर 10-15 दिन में माता-पिता से मिलने घर आता रहता था।

तस्वीर में प्रदीप का घर है। वो गुरुग्राम में रहता था लेकिन हर 10-15 दिन में माता-पिता से मिलने घर आता रहता था।

बागपत जिला मुख्यालय से करीब 20 किलोमीटर दूर पांची गांव है। यहीं प्रदीप का तीन कमरों का घर है। इस गांव में सालों से हिंदू-मुस्लिम साथ रहते आए हैं। प्रदीप का घर जिस गली में है, उसकी शुरुआत में मुस्लिमों के घर और दुकानें हैं। सभी मिल-जुलकर ही रहते हैं।

प्रदीप के पिता चंद्रपाल शर्मा पहले गांव-गांव मिर्च-मसालों की फेरी करते थे। उससे जो कमाई होती थी, उसी से वह अपने चार बेटों, दो बेटियों और पत्नी की जरूरतों को पूरा करते थे। 10 साल पहले उन्हें दिक्कत हुई, तो बेटों ने कहा कि हम बड़े हो गए हैं, आप अब यह काम बंद कर दीजिए।

चंद्रपाल ने फेरी करना बंद कर दिया। बड़े बेटे नीटू शर्मा पास के ही एक स्कूल में गाड़ी चलाने लगे। उनसे छोटे प्रदीप गांव-गांव जाकर गैस चूल्हा, स्टोव जैसी चीजें बनाने लगे। प्रदीप इतना कमा लेते थे कि परिवार का खर्च संभाल सकते थे।

चंद्रपाल ने उनकी अमरोहा की दीपा नाम की लड़की से शादी करवा दी। शुरुआती एक महीने में ही पारिवारिक स्थिति खराब हो गई। दीपा और प्रदीप में झगड़े होने लगे। दीपा ससुराल से मायके गई और प्रदीप सहित पूरे परिवार पर दहेज उत्पीड़न का केस कर दिया।

पिता चाहते थे प्रदीप दुकान संभाले, पर वह बजरंग दल के लिए समर्पित थे
प्रदीप धार्मिक कामों में विशेष रुचि लेने लगे, जहां भी धार्मिक आयोजन होता, वहां प्रदीप मौजूद होते। दूसरी तरफ उन्होंने गुरुग्राम के बादशाहपुर में बर्तन की दुकान खोल ली। इस दुकान के लिए प्रदीप ने करीब 50-50 हजार रुपए दो बार कर्ज लिए। इस कर्ज को वह हर दिन 500-600 रुपए करके चुकाते थे।

करीब 2 साल पहले प्रदीप की मुलाकात बजरंग दल के पदाधिकारियों से हुई। वह उनसे प्रभावित हुए और दल में शामिल हो गए। इसके बाद प्रदीप खुद भी अपने आस-पास के लोगों को अपने साथ जोड़ने लगे। संगठन ने उनकी मेहनत को देखा और समझा। उन्हें बागपत और गुरुग्राम का जिला संयोजक बना दिया।

प्रदीप के पिता हमेशा से चाहते थे कि वो बजरंग दल से जुड़ी चीजें छोड़कर अपनी दुकान पर ध्यान दे। लेकिन, प्रदीप बजरंग दल के लिए समर्पित थे।

प्रदीप के पिता हमेशा से चाहते थे कि वो बजरंग दल से जुड़ी चीजें छोड़कर अपनी दुकान पर ध्यान दे। लेकिन, प्रदीप बजरंग दल के लिए समर्पित थे।

चंद्रपाल चाहते थे कि प्रदीप अपनी दुकान के लिए ज्यादा वक्त दे। संगठन के लिए इधर-उधर दौड़-भाग कम करे। लेकिन प्रदीप संगठन को लेकर एकदम समर्पित थे। छोटे भाई हैपी को दुकान पर बैठाकर वह अक्सर मीटिंग के लिए निकल जाते थे।

चंद्रपाल को अपने बेटे के वैवाहिक जीवन की भी चिंता थी। इसलिए उन्होंने दीपा को मनाया। उसका परिवार तैयार हो गया। तय हुआ कि 17 जुलाई को दीपा प्रदीप के घर आएंगी। उसके पहले 15 जुलाई को प्रदीप ने गांव में ही भंडारा किया। दो दिन बाद दीपा घर आई, तो वह प्रदीप के साथ रहने गुरुग्राम चली गई।

एक दिन पहले ही घर से शोभायात्रा में शामिल होने गया था
हरियाणा में एक इलाका है ‘नूंह’। यह मेवात जिले का हिस्सा है। मेवात राजस्थान और यूपी के बॉर्डर पर है। मुस्लिम बाहुल्य इलाका है। यह इलाका आर्थिक और सामाजिक रूप से पिछड़ा हुआ है, लेकिन सांप्रदायिक हिंसा या दंगे आज तक यहां नहीं हुए थे।

तारीख 31 जुलाई 2023. बजरंग दल ने तय किया कि यहां यात्रा ब्रजमंडल जलाभिषेक यात्रा निकाली जाएगी। बजरंग दल ने इसे लेकर प्रचार किया। जुनैद और नासिर की हत्या के आरोपी मोनू मानेसर ने भी वीडियो डालकर यात्रा में शामिल होने की बात कही। बिट्टू बजरंगी ने भी वीडियो पोस्ट करते हुए लोगों से कहा कि जीजा आ रहे हैं, स्वागत की तैयारी पूरी रखना।

तय कार्यक्रम के अनुसार इस शोभा यात्रा को नल्हड़ के शिव मंदिर से करीब 35 किलोमीटर दूर फिरोजपुर झिरका के झिर मंदिर और फिर वहां से 30 किलोमीटर दूर पुनहाना के कृष्ण मंदिर पहुंचना था। प्रदीप भी इस यात्रा में शामिल था।

वह एक दिन पहले ही पांची गांव से गया था। दोपहर तक भंडारा और जलाभिषेक चला। उस वक्त तक लोग आते रहे। डीजे बजते रहे। यहां से यात्रा झिर मंदिर के लिए रवाना हुई। इस यात्रा में प्रदीप के जैसे सैकड़ों युवा कार्यकर्ता, बच्चे और महिलाएं शामिल थीं।

हम अस्पताल से अस्पताल भटकते रहे, लेकिन प्रदीप नहीं मिला
दोपहर 12 बजकर 30 मिनट पर यात्रा झिर मंदिर के लिए रवाना होने लगी। लोग बसों में और कारों में बैठने लगे। सब लोग करीब 2 किलोमीटर ही चले होंगे कि उन पर पत्थरबाजी शुरू हो गई। यात्रा में अफरा-तफरी मच गई। लोग इधर-उधर भागने लगे। प्रदीप भी भागे। आगे उन्हें कुछ लोगों ने पकड़ लिया।

प्रदीप के सबसे छोटे भाई हैपी हमें एक वीडियो दिखाते हुए कहते हैं कि भइया को किसी धारदार हथियार से सिर पर मारा गया। उनका कपड़ा खून से भीग गया। वह नजदीक के ही एक हॉस्पिटल गए तो वहां पट्टी की गई। वह पट्टी लगाकर वहीं बैठे थे। उनकी हालत इतनी खराब नहीं थी। लेकिन तभी कुछ लोग उनके पास गए। उन्होंने भइया को गालियां दी, उनके सिर पर लगी पट्टी को खींचकर हटा दिया। उस वक्त तक भइया ठीक थे।

तस्वीर नूंह हिंसा की है। हिंसा में 200 से ज्यादा लोग घायल हो गए थे।

तस्वीर नूंह हिंसा की है। हिंसा में 200 से ज्यादा लोग घायल हो गए थे।

हैपी बताते हैं, ”मुझसे बड़े और प्रदीप से छोटे भाई दीपक उस वक्त गुरुग्राम में थे। टीवी पर हिंसा की खबर देखी, तो प्रदीप को फोन करने लगे। प्रदीप का फोन नहीं उठ रहा था। रात में तो उनका फोन स्विच ऑफ हो गया। गुरुग्राम में घर के पड़ोस में एक डॉक्टर रहते हैं। उन्होंने दीपक को बताया कि प्रदीप को चोट लगी है।

दीपक भइया ने मुझे फोन किया और रोने लगे। रोते हुए कहा कि मम्मी-पापा को मत बताना, जो पैसा हो उसे लेकर चले आओ। मैं करीब 7 हजार रुपए लेकर वहां पहुंचा। 1 अगस्त को कर्फ्यू था। हम एक अस्पताल से दूसरे अस्पताल भटकते रहे लेकिन भैया मिल नहीं रहे थे। पता चला कि चोट ज्यादा थी इसलिए गुरुग्राम भेज दिया गया है।”

प्रदीप जिस एम्बुलेंस में गया उससे उसे रात में सड़क पर फेंक दिया गया
हैपी हमें एक और वीडियो दिखाते हैं। वह दावा करते हैं कि भइया को जब वहां से गुरुग्राम हॉस्पिटल ले जाया जा रहा था तो रास्ते में कुछ लोगों ने एम्बुलेंस रोकी और भइया को नीचे फेंक दिया। वह चाहते थे कि इनका इलाज न हो पाए। वीडियो में जहां प्रदीप को फेंका गया, कुछ घंटों नाद पुलिस ने वहीं से उसे उठाया था। पुलिस ने उसे गुरुग्राम अस्पताल में भर्ती कराया। वहां हम पहुंचे, तो डॉक्टरों ने कहा कि हालत बहुत खराब है, इन्हें दिल्ली के सफदरगंज हॉस्पिटल लेकर जाइए।

हम भइया को लेकर सफदरगंज हॉस्पिटल भागे। ICU में भर्ती किया। भइया का सिर पूरी तरह से फट गया था। फिर भी हमें उम्मीद थी कि वो ठीक हो जाएंगे। लेकिन ऐसा हुआ नहीं। कुछ देर बाद ही उनकी मौत हो गई।”

हैपी यह बताते हुए भावुक हो जाते हैं। कहते हैं, ”उस दिन हिंसा की वजह से कई लोग वहां भर्ती थे। किसी को ठीक से इलाज नहीं मिल पा रहा था। भइया को भी वक्त पर इलाज मिला होता तो वह आज हमारे साथ होते।”

मरने के बाद अपने बेटे का चेहरा भी नहीं देख पाई मां

प्रदीप की मां अब भी उसके वापस लौटने की आस लगाए बैठी हैं। हर आने-जाने वाले से वो अपने बेटे के बारे में ही पूछती हैं।

प्रदीप की मां अब भी उसके वापस लौटने की आस लगाए बैठी हैं। हर आने-जाने वाले से वो अपने बेटे के बारे में ही पूछती हैं।

3 अगस्त। प्रदीप के घर के आस-पास के इलाके को छावनी में तब्दील कर दिया गया। पुलिस के अतिरिक्त फोर्स तैनात कर दी गई। अधिकारियों को हिंसा का डर था। लेकिन अब तक प्रदीप के माता-पिता को कुछ पता नहीं था। पिता बताते हैं कि घर के बाहर लड़कों ने कुर्सियां लगाना शुरू कर दिया। हमें कुछ समझ नहीं आ रहा था कि ऐसा क्यों कर रहे हैं।

…तभी प्रदीप की बॉडी घर पर आई। हमने बस एक झलक ही अपने बच्चे का चेहरा देख पाया। पिता कहते हैं कि बेटे की मौत की खबर उसकी मां को बताने की हिम्मत नहीं थी। जैसे-तैसे लड़कों ने मां को बताया। वो बेहोश हो गई। परिवार ने मां की बीमारी के चलते प्रदीप का चेहरा मां को नहीं दिखाया। उन्हें डर था कि कहीं मां को कुछ हो ना जाए।

घर पर कोई मुस्लिम दुख जताने नहीं आया, सब डरे हुए थे उसी वक्त बजरंग दल के कई पदाधिकारी मौके पर पहुंचने लगे। बीजेपी विधायक समेत कई नेता भी पहुंचे। उन्होंने आश्वासन दिया कि परिवार को मदद की जाएगी। गांव में ही कई मुस्लिम परिवार के लोग थे, लेकिन वह उस दिन नहीं आए। उन्हें डर था कि कहीं उनके जाने पर स्थिति खराब न हो जाए। प्रशासन ने जल्दबाजी दिखाते हुए प्रदीप का अंतिम संस्कार करवा दिया।

प्रदीप की मौत के करीब एक महीने बाद हम घर गए तो उनकी मां अंगूरी देवी रोने लगीं। उनके पहले शब्द थे, “मेरे बेटे को जानते हो, उसको फोन लगा दो। मेरी बात करवा दो। मेरा बेटा भूखा होगा, बात करवा दो बिटिया।” इतना कहते हुए वह रोने लगती हैं। हमने उन्हें ढांढस बंधाया, लेकिन बेटे के लिए उनको रोता देखकर हमारी भी आंखें भर आईं।

बगल खड़े हैपी कहते हैं, ”जब से भइया चले गए तब से मां का दिमाग काम ही नहीं कर रहा है। सब अक्सर उन्हें इस तरफ की भीड़-भाड़ में जाने से मना करते थे, लेकिन उन्होंने कभी बात नहीं मानी। वहां भीड़ ने भी किसी आम इंसान को नहीं मारा। भाई को चिह्नित करके मारा गया, क्योंकि वो बजरंग दल से जुड़े थे। अगर, वो बजरंग दल में नहीं होते तो बच जाते।

हमारा बेटा चला गया, हम चाहते हैं कि उसे इंसाफ मिले
पिता चंद्रपाल से हमने पूछा कि क्या कोई सरकारी मदद मिली है? वह कहते हैं कि हमें अब तक कोई मदद नहीं मिली। नेता और अधिकारी सबने मदद का आश्वासन दिया है। लेकिन, किसी ने कोई मदद नहीं की। बजरंग दल के पदाधिकारी आए थे, उन्होंने थोड़ी मदद की है और आगे भी मदद करने की बात कही है।

प्रदीप के परिवार का कहना है कि हमारा बेटा तो चला गया। साथ ही अबतक सरकार की तरफ से कोई मदद नहीं मिल पाई है।

प्रदीप के परिवार का कहना है कि हमारा बेटा तो चला गया। साथ ही अबतक सरकार की तरफ से कोई मदद नहीं मिल पाई है।

हम अपने बेटे के लिए इंसाफ चाहते हैं। हम कोई हिंसा नहीं चाहते। जिन्होंने मेरे बेटे को मारा, ऊपर वाला उनका हिसाब करेगा। हम चाहते हैं कि सरकार हमारी कुछ मदद करे। हम गरीब हैं। प्रदीप हमारा सहारा था। वही चला गया। सरकार अगर छोटे बेटे को कहीं नौकरी पर रखे दे तो हम एहसान मानेंगे। इतना कहकर चंद्रपाल रोने लगते हैं।

  • यह तो थी नूंह हिंसा में मारे गए प्रदीप शर्मा की बात। कुछ और खबर आप नीचे दिए लिंक पर पढ़ सकते हैं…

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