भास्कर ओपिनियन- इंडिया: विपक्षी गठबंधन में एकता के लिए भारी मशक्कत

1 घंटे पहलेलेखक: नवनीत गुर्जर, नेशनल एडिटर, दैनिक भास्कर

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राजद नेता तेजस्वी यादव इन दिनों चर्चा में हैं। आजकल बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार कम बोलते हैं, इसलिए शायद तेजस्वी ज़्यादा बोलते हैं। उन्होंने हाल में कहा कि विपक्षी गठबंधन में कोई मतभेद नहीं है, भाजपा विपक्षी एकता से घबरा गई है। हो सकता है तेजस्वी ही सही हों, क्योंकि राम मंदिर के उद्घाटन में तो विपक्ष की तरफ़ से कोई नहीं जा रहा है। इस एक मुद्दे पर तो उन सब में ज़बर्दस्त एकता है। हालाँकि विपक्ष के तमाम नेता अच्छी तरह जानते हैं कि विपक्षी गठबंधन में एकता के लिए उन्हें जी- तोड़ मेहनत करनी पड़ रही है।

इस बीच पिछले शनिवार को हुई मीटिंग में कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे को विपक्षी गठबंधन ‘इंडिया’ का भी अध्यक्ष चुन लिया गया। वैसे उनके कांग्रेस अध्यक्ष रहते हाल में दो राज्य राजस्थान और छत्तीसगढ़ को पार्टी गँवा चुकी है, ऐसे में विपक्षी गठबंधन का भी उन्हें सर्वेसर्वा बना देने से क्या फ़र्क़ आएगा, फ़िलहाल कहा नहीं जा सकता।

विपक्षी गठबंधन की मुंबई में हुई मीटिंग में 28 राजनैतिक दलों के नेताओं ने हिस्सा लिया था।

विपक्षी गठबंधन की मुंबई में हुई मीटिंग में 28 राजनैतिक दलों के नेताओं ने हिस्सा लिया था।

पिछले दिनों हुई बैठक में विपक्षी गठबंधन के संयोजक का नाम भी तय किया जाना था। इसके लिए बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के नाम का प्रस्ताव आया था। बताया जा रहा है कि नीतीश कुमार ने संयोजक बनने से इनकार कर दिया था। लेकिन आधिकारिक रूप से इस बारे में कोई जानकारी नहीं दी गई।

बैठक के बाद शरद पवार ने कहा कि यह सही है कि संयोजक के लिए नीतीश कुमार का नाम सामने आया था लेकिन फ़िलहाल इस बारे में कोई निर्णय नहीं हो पाया है। इस बारे में निर्णय सभी 28 दलों की मौजूदगी में लिया जाएगा।

दरअसल, इस बैठक में पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बेनर्जी, समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव और शिवसेना यू के अध्यक्ष उद्धव ठाकरे मौजूद नहीं थे। यही वजह है कि विपक्षी गठबंधन के इन तीन महत्वपूर्ण दलों की अनुपस्थिति में यह निर्णय लेना उचित नहीं समझा गया।

खरगे के नाम पर निर्णय शायद इसलिए ले लिया गया क्योंकि ममता बेनर्जी उनका नाम पहले ही भावी प्रधानमंत्री के रूप में रख चुकी थीं। नीतीश कुमार वैसे भी यह पद लेकर किसी विवाद में पड़ना नहीं चाहते। उधर मायावती ने अलग ही राग छेड़ दिया है। उन्होंने ऐलान कर दिया है कि उनकी पार्टी लोकसभा चुनाव अकेले ही लड़ेगी। वे किसी तरह के गठबंधन के पक्ष में नहीं हैं। मायावती अगर विपक्षी गठबंधन में शामिल होतीं तो उत्तर प्रदेश में कांग्रेस और समाजवादी पार्टी दोनों को फ़ायदा हो सकता था। गठबंधन को इससे हाथ धोना पड़ेगा।

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