भास्कर ओपिनियन- अब मंत्रियों की बारी: जूनियर के मंत्रिमंडल में शामिल होने को कौन तैयार, कौन नहीं?

4 मिनट पहलेलेखक: नवनीत गुर्जर, नेशनल एडिटर, दैनिक भास्कर

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तीन राज्यों में अब मंत्रिमंडल के विस्तार की प्रतीक्षा है। कौन मंत्री बनेगा,कौन नहीं, इस बारे में लोग भले ही क़यास पर क़यास लगा रहे हों लेकिन मीडिया में किसी तरह की कोई संभावना नहीं जताई जा रही है। कारण एक ही है कि मुख्यमंत्रियों के नामों के बारे में मीडिया की तमाम संभावनाएँ कचरे की टोकरी में डाल दी गईं थीं और जो नाम किसी ने कभी सोचा भी नहीं था, मोदी ने उन्हीं नामों को मुख्यमंत्री के रूप में आगे रखा।

यही वजह है कि अब तो कुछ भाजपा नेता मीडिया से यह अनुरोध करते पाए गए कि हमारा नाम संभावित मंत्री में मत लिखिए। बड़ी कसौटी होती थी कि किसके कितने नाम सही निकलेंगे, लेकिन अब मीडिया को इस झंझट से भी मुक्ति मिल गई।

कहने को मंत्री पद पाने के लिए कई नेता नए कुर्ते सिलवाए बैठे हुए हैं लेकिन किसका नंबर लगेगा, किसका नाम कटेगा, यह कोई नहीं जानता। मध्यप्रदेश में इंदौर वाले कैलाशजी एकदम तैयार बैठे हैं लेकिन अपने जूनियर के मंत्रिमंडल में शामिल होना उनके लिए कितना मुफ़ीद होगा, और केंद्र उन्हें इस झंझट में किस हद तक डालेगा, यह भविष्य बताएगा।

कैलाश विजयवर्गीय के लिए अपने जूनियर के मंत्रिमंडल में शामिल होना कितना मुफीद होगा?

कैलाश विजयवर्गीय के लिए अपने जूनियर के मंत्रिमंडल में शामिल होना कितना मुफीद होगा?

राजस्थान में भी यही हाल है। बड़े- बड़े नेता विधायक बने बैठे हैं। पहली बार के विधायक को मुख्यमंत्री बना दिया गया है। ऐसे में उनके हाथ के नीचे काम करना वरिष्ठों के लिए मुश्किल होगा। यही वजह है कि केंद्र को मंत्रियों की सूची तैयार करने में ज़्यादा वक्त लग रहा है। इतना तो मुख्यमंत्री तय करने भी नहीं लगा था।

जहां तक शिवराज सिंह चौहान का सवाल है, वे दिल्ली न जाने और पार्टी से कुछ न माँगने की कल तक रट लगाए बैठे थे लेकिन दिल्ली से एक बुलावा आते ही झट ले दिल्ली चले गए और वहाँ से बयान भी दे दिया कि जो ज़िम्मेदारी पार्टी देगी, ख़ुशी से उसे पूरा करेंगे। और कोई चारा भी नहीं था।

फ़िलहाल सुना है कि उन्हें दक्षिण के राज्यों में भेजा जाएगा। वे लगभग तैयार भी हो गए हैं। दरअसल, पार्टी चाहती है कि मध्यप्रदेश से वे दूर रहें ताकि यहाँ की नई सरकार उनकी छाया से मुक्ति पा जाए। हालाँकि शिवराज ऐसा चाहते तो नहीं हैं लेकिन मजबूरी है, वे कर भी क्या सकते हैं?

यही हाल राजस्थान में पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे का भी होगा, ऐसा लगता है। वैसे उनके बारे में पार्टी स्तर पर अभी कुछ तय नहीं किया गया है लेकिन नई सरकार से उन्हें भी दूर रखने के पूरे इंतज़ाम तो किए ही जाएँगे।