भास्कर एक्सप्लेनर: जानिए कैसे वापस लिए जाएंगे तीनों कानून, संसद सत्र के शुरुआती 3 दिन में पूरा हो सकता है प्रोसेस

एक घंटा पहलेलेखक: आबिद खान

पिछले एक साल से किसान आंदोलन की वजह बने तीनों नए कृषि कानून केंद्र सरकार ने वापस ले लिए हैं। शुक्रवार को देश के नाम अपने संबोधन में प्रधानमंत्री मोदी ने यह बड़ा ऐलान किया है।

प्रधानमंत्री ने कहा है कि अगले संसद सत्र में कानूनों को वापिस लेने की प्रक्रिया शुरू की जाएगी। एक्सपर्ट्स के मुताबिक, संसद सत्र शुरू होने के बाद कम से कम 3 दिन में ये प्रक्रिया पूरी हो सकती है। संसद सत्र 29 नवंबर से शुरू होना है। यानी आज से 12 दिन बाद कानून वापसी की प्रक्रिया पूरी हो सकती है।

समझते हैं, कोई भी कानून वापस कैसे होता है? सरकार को संसद सत्र में क्या प्रक्रिया अपनानी पड़ेगी? क्या सुप्रीम कोर्ट के जरिए भी कानून वापस लिए जा सकते हैं? तीनों कृषि कानून क्या है? सरकार उन्हें क्यों लेकर आई थी और किसान क्यों विरोध कर रहे थे?…

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कैसे वापस होंगे कृषि कानून?

संविधान एक्सपर्ट विराग गुप्ता के मुताबिक, किसी भी कानून को वापस लेने की प्रक्रिया भी उसी तरह होगी, जिस तरह से कोई नया कानून बनाया जाता है।

  • सबसे पहले सरकार संसद के दोनों सदनों में इस संबंध में बिल पेश करेगी।
  • संसद के दोनों सदनों से ये बिल बहुमत के आधार पर पारित किया जाएगा।
  • बिल पारित होने के बाद राष्ट्रपति के पास जाएगा। राष्ट्रपति उस पर अपनी मुहर लगाएंगे।
  • राष्ट्रपति की मुहर के बाद सरकार नोटिफिकेशन जारी करेगी।
  • नोटिफिकेशन जारी होते ही कृषि कानून रद्द हो जाएंगे।

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सुप्रीम कोर्ट के जरिए भी सरकार वापस ले सकती है कानून

कृषि कानूनों पर सुप्रीम कोर्ट में भी मामला विचाराधीन है। सरकार अगर चाहे तो वैकल्पिक तौर पर सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा देकर भी इन कानूनों को रद्द करने के लिए अपनी सहमति दे सकती है। उसके बाद सुप्रीम कोर्ट के न्यायिक आदेश से भी कानून रद्द हो सकते हैं।

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तीनों कृषि कानून और उनके विरोध की वजह भी जान लीजिए

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सरकार का तर्क

सरकार का कहना है कि वो किसानों की उपज को बेचने के लिए विकल्प बढ़ाना चाहती है। इस कानून के जरिए किसान मंडियों के बाहर भी निजी खरीदारों को अपनी उपज को ऊंचे दामों पर बेच पाएंगे।

किसानों का तर्क

कानून में बड़े कॉर्पोरेट खरीदारों को खुली छूट दी गई है। यही खुली छूट आने वाले वक्त में मंडियों की प्रासंगिकता को खत्म कर देगी। किसानों का कहना था कि अगर मंडी समस्या में कमी है, तो उसे दूर कीजिए। लेकिन कानूनों में कहीं भी मंडी व्यवस्था को ठीक करने की बात नहीं कही गई है।

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सरकार का तर्क

किसानों और निजी कंपनियों के बीच में कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग का रास्ता खुलेगा। आप की जमीन को एक निश्चित राशि पर कोई ठेकेदार किराये पर लेगा और अपने हिसाब से फसल का उत्पादन कर बाजार में बेचेगा।

किसानों का तर्क

कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग से किसान बंधुआ मजदूर बन जाएंगे। अनपढ़ किसान कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग की शर्तों में उलझ जाएंगे। साथ ही अगर किसान और ठेकेदार के बीच कोई विवाद होता है तो उसमें किसान का पक्ष कमजोर होगा, क्योंकि ठेकेदार महंगा से महंगा वकील कर केस लड़ सकता है।

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कृषक उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सरलीकरण)

सरकार का तर्क

कृषि उपज जमा करने के लिए निजी निवेश को छूट होगी, किसान सही दाम होने पर ही फसल बेचेंगे। यानी किसान अपनी फसल स्टोर कर रख सकेंगे और दाम सही होने पर ही बेच सकेंगे।

किसानों का तर्क

इससे जमाखोरी और कालाबाजारी का बढ़ावा मिलेगा। ज्यादातर किसानों के पास फसल को स्टोर करने की जगह नहीं होती। साथ ही किसानों को अगली फसल के लिए कैश की भी जरूरत होती है। कृषि उपज जमा करने के लिए निजी निवेश को छूट देने से सरकार को पता नहीं चलेगी कि किसके पास कितना स्टॉक है और कहां है?

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