भत्ता बिन गुजारा कैसे: तलाक के बाद न देना पड़े मुआवजा, इसलिए गलत पता लिखवा रहे पति, या हो जाते हैं गायब

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नई दिल्ली13 मिनट पहलेलेखक: दीप्ति मिश्रा

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हाल ही में इलाहाबाद हाईकोर्ट में एक मामले की सुनवाई हुई, जिसमें गुजारा भत्ता देने से बचने के लिए एक शख्स गायब हो गया। उसे खोजने के लिए बनी पुलिस टीम भी उसका कुछ पता नहीं लगा पाई। इस दौरान कोर्ट में यह भी पता चला कि 575 से अधिक महिलाओं को अदालत के आदेश के बावजूद एलिमनी नहीं मिली।

ज्यादातर मामले वाराणसी और प्रयागराज जिलों के हैं। वैसे यह स्थिति कई राज्यों में है। तलाक की चाह में पति एलिमनी पर हामी तो भर देते हैं, लेकिन डाइवोर्स मिलते ही गायब हो जाते हैं। दैनिक भास्कर की वुमन टीम ने ये टटोला कि तलाक के बाद मेंटेनेंस क्लेम करने वाली कितनी महिलाओं को उनका हक मिल पाता है।

हक में फैसला, फिर भी न्याय नहीं
शादी की 25वीं सालगिरह की तैयारियां चल रही थीं। दो बेटे थे जिनकी उम्र 18 और 20 साल थी। मेरी फैमिली हर एंगल से परफेक्ट नजर आती थी, लेकिन सेलिब्रेशन से कुछ रोज पहले मेरे पति अपनी नई पत्नी को घर ले आए। मैं कुछ रिएक्ट करती, उससे पहले ही वो दोनों बेटों और अपनी नई पत्नी के साथ घर छोड़कर चले गए। जाते-जाते धोखे से तलाक के पेपर्स पर साइन भी करवा लिया। मैंने अदालत का दरवाजा खटखटाया।

गुजरात हाईकोर्ट ने मेरे हक में फैसला भी सुनाया, लेकिन मुझे अब तक न्याय नहीं मिला। हाईकोर्ट के आदेश के बावजूद 14 साल से गुजारा भत्ता पाने के लिए लड़ रही हूं। यह कहना है गुजरात के वडोदरा की कोकिला बेन का। कोकिला बेन इकलौती नहीं हैं, जो गुजारा भत्ता के लिए एड़ियां रगड़ रही हैं। ऐसे ढेरों मामले हैं।

क्या कहता है कानून?
सुप्रीम कोर्ट के अधिवक्ता डॉ. सर्वम ऋतम खरे बताते हैं कि देश में महिलाओं के लिए गुजारा भत्ता यानी मेंटेनेंस क्लेम करने के लिए 3 कानून हैं।

  • सीआरपीसी की धारा 125 के तहत पत्नी अपने पति से तलाक लिए बिना गुजारा भत्ता ले सकती है। धारा 125 में पत्नी, माता-पिता और संतान के भरण पोषण के लिए आदेश का प्रावधान है।
  • हिंदू मैरिज एक्ट-1955 की धारा 24 और 25 के तहत कोई भी महिला अपने पति से मुआवजा मांग सकती है। अगर कानूनी प्रक्रिया के दौरान अदालत को लगता है कि पत्नी के पास आय का साधन नहीं है, जिससे वह अपना गुजारा कर सके या कानूनी लड़ाई लड़ सके, तब अदालत ही तलाक प्रक्रिया के दौरान धारा 24 के तहत गुजारा भत्ता दिला सकती है, जबकि धारा 25 के तहत तलाक के फैसले के साथ ही तय हो जाता है कि पति को स्थायी गुजारा भत्ता यानी एलिमनी कितनी और कैसे और कब देनी है।
  • ‘प्रोटेक्शन ऑफ वुमन फ्रॉम डोमेस्टिक वॉयलेंस एक्ट 2005’ के तहत भी महिलाएं गुजारा भत्ता ले सकती हैं। यह धारा 125 की तरह ही काम करती है।

पति भी मांग सकते हैं कमाऊ पत्नी से गुजारा भत्ता
माना जाता है कि तलाक की मांग पत्नी करे या पति, दोनों ही हालातों में मुआवजे की हकदार पत्नी ही होती है, लेकिन ऐसा नहीं है। बदलते वक्त के साथ ही अदालतों के रुख में बदलाव आया। कड़कड़डूमा कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता मनीष भदौरिया के मुताबिक अगर कोई पुरुष अपना खर्च नहीं उठा सकता है तो वह अपनी कमाऊ पत्नी से गुजारे भत्ते की मांग कर सकता है।

उन्होंने बताया कि देश में महिला और पुरुष के लिए अलग-अलग कानून नहीं है। हिंदू मैरिज एक्ट-1955 की धारा 24 और 25 के तहत प्रावधान है कि पति-पत्नी दोनों एक-दूसरे से गुजारा भत्ता मांग सकते हैं।

महिला वकील और नर्स को देना पड़ा मुआवजा
वरिष्ठ अधिवक्ता मनीष भदौरिया ने बताया कि मेरे पास अब तक इस तरह के दो मामले आए हैं। पहला- साल 2007 में तीस हजारी कोर्ट में प्रैक्टिस कर रही महिला वकील सुरुचि गुप्ता (बदला हुआ नाम) ने तलाक की अर्जी लगाई। सुरुचि के पति की एक फैक्ट्री थी, जिसमें गत्ते का काम होता था। पति ने अपनी फैक्ट्री बंद कर पत्नी से मुआवजे की मांग की। आखिर में अदालत ने सुरुचि को 3,000 रुपए प्रतिमाह गुजारा भत्ता देने का आदेश दिया।

दूसरा मामला दिल्ली के एलएनजेपी अस्पताल की चीफ नर्स दीपिका (बदला हुआ नाम) का था। दीपिका ने तलाक के लिए अर्जी दी तो पति अदालत में मुआवजे की मांग करने लगा। दीपिका को भी अपने पति को मेंटनेंस देना पड़ा था।

एलिमनी लेने में कहां फंसता है पेंच?
भदौरिया के मुताबिक, अदालत की ओर से तलाक के साथ ही मुआवजा राशि तय कर दी जाती है। इसके बाद लोग गुजारा भत्ता देने से बचने के लिए तरह-तरह की जुगत भिड़ाते हैं। कुछ लोग अदालत में रिवीजन या अपील कर देते हैं, जिसके चलते लंबा वक्त लग जाता है। कुछ लोग अदालत में अपना गलत एड्रेस लिखवाते हैं। इससे अदालत का नोटिस सालों साल उन तक नहीं पहुंचता है। ऐसे में सही पता ढूंढने की जिम्मेदारी महिला पर आ जाती है, जिसमें वक्त लग जाता है।

वहीं ऐसे लोगों की संख्या भी कम नहीं है, जो तलाक प्रक्रिया शुरू होते ही अपनी प्रॉपर्टी अपने रिश्तेदारों के नाम कर देते हैं, ताकि उन्हें पत्नी को हिस्सा न देना पड़े। ऐसे मामलों में अगर पत्नी कोर्ट में ये साबित कर देती है कि ये प्रॉपर्टी बाद में ट्रांसफर की गई है तो अदालत उसमें से महिला को हिस्सा दिलाती है।

महिलाएं ऐसे ले सकती हैं अपना हक
एडवोकेट खरे बताते हैं कि अगर अदालत के आदेश के बावजूद किसी महिला को गुजारा भत्ता नहीं मिल पा रहा है तो ​महिला एग्जीक्यूशन पिटीशन फाइल कर सकती है। इस पिटीशन के तहत अदालत देखती है कि कोर्ट के आदेश का पालन हुआ या नहीं? अगर नहीं हुआ तो अदालत पति को बुलाकर गुजारा भत्ता दिलाने की प्रक्रिया पूरी कराती है।

खर्च नहीं देने पर पति के खिलाफ अरेस्ट वारंट जारी किया जाता है। पति की गिरफ्तारी भी हो सकती है। फिर भी भत्ता न दिए जाने पर अदालत कुर्की वारंट जारी करती है, जिसके तहत व्यक्ति की संपत्ति बेचकर महिला को मुआवजा दिया जाता है। अगर पति खर्च भी नहीं दे रहा है और अदालत में पेश भी नहीं हो रहा है तो उसे भगोड़ा घोषित कर दिया जाता है।

मुआवजा राशि कम कराने को सुप्रीम कोर्ट पहुंचते हैं पति
अधिवक्ता डॉ. सर्वम ऋतम खरे बताते हैं कि मेंटेनेंस रिकवरी के ज्यादातर मामले हाईकोर्ट में ही निपट जाते हैं। सुप्रीम कोर्ट में रिकवरी के मामले न के बराबर आते हैं। सुप्रीम कोर्ट में पुरुष गुजारा भत्ता कम करने की गुहार लेकर आते हैं। उनका कहना है कि अदालत में मेंटेनेंस क्लेम से जुड़े मामलों की सुनवाई तेजी से होती है ताकि किसी महिला को बेसिक जरूरतों के लिए परेशान न होना पड़े।

तीन माह 13 दिन का खाना-पीना देता है पति
स्पेशल मैरिज एक्ट के तहत मुस्लिम शादियों में अलग से एलिमनी का नियम तो नहीं, लेकिन गुजर-बसर के लिए कुछ भत्ता देने का नियम है। इस बारे में दिल्ली के गरीब नवाज फाउंडेशन के चेयरपर्सन मौलाना अंसार रजा बताते हैं कि मुस्लिम समुदाय में तलाक के बाद महिला को मेहर में तय की गई राशि देनी होती है।

अगर निकाह के वक्त मेहर में खास रकम तय नहीं हुई थी तो पति को तीन माह 13 दिन के खाने-पीने का खर्च देना होता है। मेहर किसी भी महिला का हक होता है, लेकिन महिला चाहे तो मेहर की रकम माफ भी कर सकती है।

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