पूर्व आर्मी चीफ ने ऑटोबायोग्राफी में बताई गलवान की कहानी: लिखा-16 जून 2020 को जिनपिंग भूल नहीं पाएंगे, हमने दिखाया था- बस, बहुत हो गया

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नई दिल्ली24 मिनट पहले

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जनरल मनोज मुकुंद नरवणे 31 दिसंबर 2019 से 30 अप्रैल 2022 तक सेना प्रमुख के रूप में कार्यरत थे।

16 जून, चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग का जन्मदिन है और वे इसे जल्दी नहीं भूल पाएंगे, क्योंकि 2020 में इसी दिन 20 साल में पहली बार चीन और उसकी पीपुल्स लिबरेशन आर्मी को सबसे घातक मुठभेड़ का सामना करना पड़ा था।

यह कहना है पूर्व आर्मी चीफ जनरल मनोज मुकुंद नरवणे का। नरवणे ने अपनी ऑटोबायोग्राफी ‘फोर स्टार्स ऑफ डेस्टिनी’ में 2020 में गलवान वैली में भारतीय सेना और चीन की आर्मी के बीच हुई हिंसक झड़प के बारे कई बातें लिखी हैं। उनकी ऑटोबायोग्राफी जनवरी 2024 में लॉन्च होगी।

उन्होंने इस किताब में लिखा है कि चीन ने छोटे पड़ोसियों को डराने-धमकाने के लिए वुल्फ वॉरियर कूटनीति और सलामी-स्लाइसिंग रणनीति अपनाई। लेकिन गलवान में भारतीय सेना ने चीन और दुनिया को दिखा दिया कि बस, अब बहुत हो गया।

जून 2020 में भारतीय सेना और PLA के बीच हुई इस झड़प में भारत के 20 जवान शहीद हुए थे। लेकिन इससे पहले हमारी सेना ने PLA के भी 40 से ज्यादा सैनिकों को मौत के घाट उतार दिया था।

पूर्व आर्मी चीफ एमएम नरवणे की ऑटोबायोग्राफी जनवरी 2024 में लॉन्च होगी।

पूर्व आर्मी चीफ एमएम नरवणे की ऑटोबायोग्राफी जनवरी 2024 में लॉन्च होगी।

गलवान झड़प के समय नेपाल और भूटान को भी डरा रहा था चीन
नरवणे ने लिखा है कि गलवान झड़प के समय चीन नेपाल और भूटान जैसे छोटे पड़ोसियों को डराने-धमकाने के लिए हर जगह भेड़िया-योद्धा कूटनीति और सलामी-स्लाइसिंग रणनीति अपना रहा था, जबकि दक्षिण चीन सागर में लगातार दावे बढ़ा रहा था।

वुल्फ-वॉरियर डिप्लोमेसी शब्द एक प्रकार की मुखर कूटनीति के लिए इस्तेमाल किया जाता है। जबकि सलामी स्लाइसिंग एक रणनीति है जिसका इस्तेमाल किसी जमीन के हिस्से को टुकड़े-टुकड़े करके कब्जा करने के लिए किया जाता है।

नरवणे की ऑटोबायोग्राफी में गलवान झड़प की पूरी कहानी…
गलवान घाटी के पेट्रोलिंग प्वाइंट-14 (PP-14) में चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी ने अपने दो टेंट हटाने से इनकार कर दिया था, जिसके बाद गलवान झड़प शुरू हुई। दुश्मन के इनकार के बाद भारतीय सेना ने उसी जगह अपने टेंट लगाने का फैसला किया था। अब पढ़ें, नरवणे की किताब में लिखी झड़प की पूरी कहानी…

  • पूर्वी लद्दाख बॉर्डर पर विवाद मई 2020 में शुरू हुआ था। तब PP-15 और PP-17A समेत कई जगहों पर फ्लैग लेवल मीटिंग जारी थीं। इन जगहों पर सैनिक सहमत दूरी पर पीछे हट गए थे, जिससे खूनी संघर्ष की संभावना कम हो गई थी।
  • हालांकि PP-14 पर, जब भी हमने PLA से तंबू हटाने के लिए कहा, वे अपना रुख बदलते रहे। हमें इसकी जांच करने के लिए कुछ और वक्त की जरूरत थी कि कहीं यह हमारे सीनियर्स की बातचीत के दायरे से बाहर तो नहीं है।
  • PLA की अकड़ से यह साफ हो गया कि उनका ये टेंट हटाने का कोई इरादा नहीं था। इसका मुकाबला करने के लिए हमने भी उसी जगह अपने तंबू लगाने का फैसला किया। जब भारतीय सेना के जवान टेंट लगाने गए तो चीनी सैनिकों ने हमला कर दिया।
  • 16 बिहार के कमांडिंग ऑफिसर (CO) कर्नल संतोष बाबू ने हालात काबू में करने की कोशिश की। वे सैनिकों की एक छोटी पार्टी के साथ आगे बढ़े, लेकिन चीन की सेना झुकने के मूड में नहीं थी और उन्होंने संतोष बाबू की पार्टी पर भी हमला कर दिया।
चीन में 17 अक्टूबर 2022 को CCP की 20वीं मीटिंग से पहले गलवान झड़प के इस वीडियो को जिनपिंग सरकार की उपलब्धि के तौर पर दिखाया गया।

चीन में 17 अक्टूबर 2022 को CCP की 20वीं मीटिंग से पहले गलवान झड़प के इस वीडियो को जिनपिंग सरकार की उपलब्धि के तौर पर दिखाया गया।

  • इसके बाद मामला फ्री फॉर ऑल हो गया। अंधेरा होते ही दोनों तरफ से एक्स्ट्रा फोर्स तैनात कर दी गई। रात भर मुठभेड़ जारी रही। हथियारबंद होने के बावजूद, किसी ने भी गोलीबारी नहीं की, बल्कि डंडों का इस्तेमाल किया। एक-दूसरे पर पत्थर फेंके या लुढ़काए।
  • बेहतर कनेक्टिविटी और चीनी सरकार से मदद मिलने के कारण, चीन की सेना बख्तरबंद गाड़ियों से सैनिकों को आगे बढ़ा रही थी, जिससे गलवान घाटी में पहले से मौजूद PLA सैनिक और ताकतवर हो गए।
  • नरवणे ने 16 जून की रात 1:30 बजे उत्तरी सेना के तत्कालीन कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल वाईके जोशी को फोन करके कहा- सेना को जवाबी कार्रवाई करते हुए PLA को सबक सिखाना चाहिए। लेकिन जब दिन निकला तो हालात हमारे अनुकूल नहीं मिले।
  • कुछ जवान जो रात में वापस नहीं आ सके थे या जो बिछड़ गए थे, वे वापस आने लगे। हाथापाई में घायल होने से पांच की मौत हो गई थी। अगली सुबह, जैसे ही लोगों की गिनती की गई, हमें एहसास हुआ कि कई लोग लापता थे।
  • झड़प के बाद जब तनावपूर्ण बातचीत शुरू हुई, तो हमारे कई लड़के जो भटक गए थे या जिन्हें पीएलए ने बिना खाना-दवा दिए हिरासत में रखा था, वे बेस पर लौट आए। हालांकि, उनमें से 15 ने चोटों और हाइपोथर्मिया के कारण दम तोड़ दिया। यह मेरे पूरे करियर के सबसे दुखद दिनों में से एक था।

नरवणे ने कहा- 20 लोगों को खोने की बात सहन करना मुश्किल था
पूर्व आर्मी चीफ नरवणे ने लिखा है कि 15 जून 2020 को गलवान घाटी की झड़प भारत और चीन के बीच दशकों का सबसे गंभीर सैन्य संघर्ष थी। इस सबसे घातक टकराव की कहानी अगले दिन पता चल सकी। हम ऐसे पेशे में हैं जहां मौत हमेशा कोने में छिपी रहती है। हर गश्ती या घात आपका आखिरी हमला हो सकता है।

नरवणे ने कहा- एक कंपनी और बटालियन कमांडर के तौर पर मेरी यूनिट को हताहतों का सामना करना पड़ा था। मैं विपरीत परिस्थितियों या बुरी खबरों का सामना करने में हमेशा शांत रहता था। फिर भी, एक दिन में 20 लोगों को खोना, इसे सहन करना मुश्किल था।

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