देश में सितंबर से शुरू हो सकती है जनगणना: पूरी होने में 2 साल का वक्त लग सकता है; जातीय जनगणना को लेकर स्थिति साफ नहीं

नई दिल्ली12 मिनट पहलेलेखक: मुकेश कौशिक

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भारत की 2011 की जनगणना के आंकड़ों के मुताबिक, देश की जनसंख्या 121 करोड़ से ज्यादा थी।

देश में जातिगत जनगणना को लेकर बहस थमती नहीं दिख रही है। केंद्रीय स्तर पर भाजपा इसे लेकर विपक्ष पर हमलावर है, वहीं सरकार ने अभी कुछ भी साफ नहीं किया है। इस बीच खबरें हैं कि जनगणना सितंबर से शुरू हो सकती है। हालांकि सरकार की ओर से इसकी पुष्टि नहीं की गई है।

जनगणना में देरी के चलते सरकारी योजनाएं और नीतियां वर्ष 2011 की जनगणना के आंकड़ों के हिसाब से बन रही हैं। इससे आर्थिक आंकड़े, मुद्रास्फीति और नौकरियों के अनुमानों सहित कई सांख्यिकीय सर्वेक्षणों की गुणवत्ता भी प्रभावित होती है। वर्ष 1881 से हर 10 साल के बाद होने वाली जनगणना 2021 में होनी थी, लेकिन कोरोना के कारण सरकार इसे टालती रही है।

जनगणना प्रक्रिया पूरी होने में कम से 2 साल लगेंगे। ऐसे में अगर सितंबर में भी जनगणना की प्रक्रिया शुरू हुई तो अंतिम आंकड़े 2026 के अंत या 2027 की शुरुआत में आएंगे। इसलिए इस बार की जनगणना का डेटा सिर्फ 2031 तक सीमित रखना तार्किक नहीं होगा।

जनगणना निर्वाचन क्षेत्रों का परिसीमन और योजनाएं-नीतियां बनाने के लिए जरूरी
शासन-प्रशासन के लिए जनगणना का बेसिक डेटा बहुत जरूरी है। जनगणना में जुटाए गए आंकड़ों के आधार पर यह तय होता है की विधानसभाओं और लोकसभा में कितनी सीटें आरक्षित होंगी। जनगणना के आधार पर ही सरकार समाज कल्याण संबंधी नीतियां बनाती है। जनगणना के बाद ही संसदीय और विधानसभा निर्वाचन क्षेत्रों का परिसीमन होगा।

लोकसभा, राज्यसभा और विधानसभाओं के निर्वाचन क्षेत्रों की संख्या 2026 तक बढ़-घट नहीं सकती। वर्ष 2021 की आबादी के हिसाब से निर्वाचन क्षेत्रों का नए सिरे से सीमांकन होना है। इसके हिसाब से सीटें बढ़ सकती हैं। बढ़ी सीटों पर महिलाओं के लिए लोकसभा और विधानसभाओं में एक-तिहाई सीटें आरक्षित होनी हैं।

जातियों की गिनती के लिए एक्ट में संशोधन करना होगा
जनगणना एक्ट 1948 में एससी- एसटी की गणना का प्रावधान है। ओबीसी की गणना के लिए इसमें संशोधन करना होगा। इससे ओबीसी की 2,650 जातियों के आंकड़े सामने आएंगे। 2011 की जनगणना के अनुसार, मार्च 2023 तक 1,270 एससी, 748 एसटी जातियां हैं। 2011 में एससी आबादी 16.6% और एसटी 8.6% थी।

सामाजिक-आर्थिक गणना के आंकड़े जारी ही नहीं हुए
मनमोहन सिंह सरकार के दौरान 2011 में सामाजिक-आर्थिक और जातिगत जनगणना करवाई गई थी। इसे ग्रामीण विकास मंत्रालय, शहरी विकास मंत्रालय और गृह मंत्रालय ने करवाया था। हालांकि इस सर्वेक्षण के आंकड़े कभी भी सार्वजनिक नहीं किए गए। ग्रामीण विकास मंत्रालय की वेबसाइट पर इसके एससी-एसटी हाउसहोल्ड के आंकड़े ही जारी किए गए हैं।

ऐसे में माना जा रहा है कि जनगणना का चक्र बदल सकता है। इससे जनगणना की नई साइकल 2025 के बाद 2035 और 2045 की होगी। सूत्रों ने बताया, जनगणना डिजिटल होगी और सेल्फ एन्यूमरेशन एप का सहारा लिया जाएगा। ऐसे संकेत हैं कि सितंबर 2024 में जनपदों की प्रशासनिक इकाइयों की सीमाएं सील करने के तीन महीने के भीतर जनगणना के पहले चरण में हाउस लिस्टिंग का काम शुरू हो जाएगा।

जनगणना पर भाजपा-कांग्रेस
जातीय जनगणना को लेकर भाजपा सहज नहीं है। एक ओर बिहार में पार्टी इसका समर्थन करती है। दूसरी ओर, भाजपा का केंद्रीय नेतृत्व इसे लेकर कांग्रेस सहित विपक्ष पर हमलावर है। भाजपा ने अपने सोशल मीडिया
प्लेटफॉर्म पर कांग्रेस की जातीय जनगणना की मांग को देश बांटने वाला बताया है।

एससी-एसटी आयोग के अध्यक्ष और भाजपा प्रवक्ता विजय सोनकर शास्त्री ने कहा, जनगणना में एससी-एसटी ही क्यों, सभी की गिनती हो। कुछ जातियां ऐसी हैं, जो किसी राज्य में एससी/एसटी हैं किसी में ओबीसी में और कहीं, सामान्य हैं। ऐसे में इसमें स्पष्टता आ जाएगी।

दूसरी ओर, कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने कहा, देरी से हो रही जनगणना में ओबीसी की गणना भी होनी चाहिए।

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