दीपेंद्र की चेतावनी-लोकतंत्र को लठतंत्र न समझें अफसर: बोले- भाजपा सरकार उकसा रही किसानों को; ऊपर से शह न हो तो कोई अफसर SDM जैसी शब्दावली प्रयोग नहीं कर सकता

रोहतक/करनाल3 घंटे पहले

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प्रेस वार्ता को संबोधित करते दीपेंद्र हुड्‌डा।

करनाल में बसताड़ा टोल पर किसानों पर हुए लाठीचार्ज के विरोध में कांग्रेस के राज्यसभा सांसद दीपेंद्र हुड्डा ने रोहतक में दिल्ली बाइपास स्थित सर्किट हाउस में पत्रकार वार्ता की। उन्होंने कहा कि सरकार बार-बार किसानों को उकसाने का काम कर रही है। जब तक सरकारी शह नहीं होगी, तब तक अधिकारी ऐसी शब्दावली का प्रयोग कर ही नहीं सकता है। हमारी मांग है कि तुरंत ड्यूटी मजिस्ट्रेट को सस्पेंड किया जाए।

लाठीचार्ज की भी निष्पक्ष जांच होनी चाहिए। सरकार कार्रवाई नहीं करती ‌तो स्पष्ट हो जाएगा कि यह निर्देश सरकार का ही था। हम किसानों की प्रशंसा भी करते हैं कि इस प्रकार से उकसाने के बावजूद और पुलिस के लाठीचार्ज के बाद भी किसान शांतिपूर्वक इस आंदोलन में शामिल रहे। लोकतंत्र के अंदर किसी भी बड़े आंदोलन के सफल होने का यह बड़ा मूल मंत्र है।

दीपेंद्र हुड्‌डा ने कहा कि हमारी किसानों से यही उम्मीद है। वे इसी रास्ते पर चलते रहें। शांतिपूर्वक अपनी बात रखें। अधिकारियों के लिए भी एक बात कहना चाहते हैं कि जो अधिकारी लोकतंत्र को लठतंत्र मान रहे हैं, वे अपना रवैया सुधार लें। ड्यूटी मजिस्ट्रेट का काम होता है कि जो वर्दी में हैं, उन्हें ऐसे माहौल में संयम बनाए रखने को कहें, न कि उन्हें इस तरह का आदेश दें।

जबकि यह‌ां पर कहा जा रहा है कि किसी भी किसान का सिर फोड़े बिना जाने नहीं देना है। अधिकारी समझें कि सरकारें आती-जाती हैं और यदि आयुष सिन्हा जैसे अधिकारी लोकतंत्र को लठतंत्र समझने की गलती करते हैं और अपनी सीमाओं को लांघते हैं तो आने वाले समय में सरकार बदलने के साथ उनकी भी जिम्मेदारी तय की जाएगी।

दीपेंद्र हुड्‌डा ने कहा कि इतने बड़े मामले के बाद भी सीएम कोई टिप्पणी नहीं कर रहे हैं। केवल उपमुख्यमंत्री का बयान आया है कि अधिकारी पर कार्रवाई की जाएगी यानि जो हुआ वह अनुचित था। लेकिन उनकी बात को हरियाणा सरकार गंभीरता से नहीं लेती है। देश की आजादी के बाद इतना बड़ा विस्तारपूर्वक और शांतिपूर्ण आंदोलन शायद ही हुआ होगा।

500 से अधिक किसानों की जान जा चुकी है। पहली बार ऐसा हुआ है कि किसी आंदोलन के चलते इतनी जानें गई हैं। भाजपा-जजपा के किसी भी जनप्रतिनिधित्व ने संसद में मुद्दा उठाना तो दूर, किसी मृतक के घर जाकर आंसू पोंछने का काम तक नहीं किया। जब हमनें किसान आंदोलन, महंगाई और जासूसी के मुद्दे पर बात करनी चाही तो सरकार ने कहा कि इन तीन के अलावा चौथे मुद्दे पर बात करें।

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