करतारपुर से ग्राउंड रिपोर्ट: जीरो लाइन क्रॉस करते ही रेंजर्स सिर झुकाकर बोलते हैं ‘जी आया नूं’, पाक अवाम में भारतीयों संग फोटो खिंचाने का क्रेज

करतारपुर साहिब6 मिनट पहलेलेखक: अनुज शर्मा

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भारत और पाकिस्तान के बीच बना करतारपुर कॉरिडोर लगभग 20 महीने बाद दोबारा खुल चुका है। ‘चढ़दे और लहंदे पंजाब’ को जोड़ने वाला यह कॉरिडोर खुलने से सरहद के दोनों तरफ बसे पंजाबियों में खुशी साफ दिखती है। दोनों तरफ रहने वाले लोगों खासकर सिखों का इस स्थान से भावनात्मक लगाव है क्योंकि बाबा नानक ने अपना आखिरी समय यहीं गुजारा।

9 नवंबर 2019 को कॉरिडोर पहली बार खुला मगर कोरोना महामारी की वजह से इसे मार्च 2020 में बंद कर दिया गया। इसके बंद होने और खुलने के पीछे की सियासी खींचतान से इतर लोगों में इसे लेकर क्या अहसास है, इसी को जानने के लिए दैनिक भास्कर की टीम इंटरनेशनल बॉर्डर पार कर करतारपुर पहुंची।

नहीं होता दूसरे मुल्क जैसा अहसास

भारतीय सीमा में 5 तरह की जांच से गुजरने के बाद जब सिख श्रद्धालु पाकिस्तानी धरती पर पैर रखता है तो उसे अलग ही अहसास होता है। शरीर में एकबारगी तो झनझनाहट सी दौड़ जाती है। जीरो लाइन के उस तरफ दो कदमों की दूरी पर खड़े पाकिस्तानी रेंजर्स हर श्रद्धालु का सिर झुकाकर ‘जी आया नूं’ बोलकर स्वागत करते हैं। पाकिस्तानी रेंजर्स की भाषा सुनकर यह महसूस ही नहीं होता कि किसी दूसरे मुल्क में पहुंच चुके हैं।

जिस देश को शुरू से ही दुश्मन समझा जाता रहा हो, वहां के सैनिकों को सम्मान में सिर झुकाते देखकर जो अहसास होता है, उसे शब्दों में बयां करना मुश्किल होता है। हां, उन्हें ऐसा करते देखकर हर भारतीय के चेहरे पर खुशी जरूर दौड़ जाती है। जीरो लाइन क्रॉस कर जरूरी सुरक्षा जांच से गुजरने के बाद करतारपुर साहिब गुरुद्वारा पहुंचने तक पाकिस्तानी रेंजर्स हर समय ‘गाइड’ के रूप में संगत के साथ रहते हैं।

पढ़िए ग्राउंड रिपोर्ट :-

चढ़दे पंजाब जैसा ही है लहंदा पंजाब

भारत के पंजाब और पाकिस्तान के पंजाब में कोई अंतर नहीं दिखता। वहां भी भारत की तरह लहलहाते खेत हैं। फसलें भी यहां जैसी ही बोई जाती है। आजकल पाकिस्तान में भी धान की कटाई चल रही है और पराली भी जलाई जा रही है। बिल्कुल भारतीय पंजाब की तरह। पाकिस्तानी पंजाब की भी वहीं दो मुख्य फसलें-धान व गेहूं- हैं जो भारतीय पंजाब की हैं। पाकिस्तान में भी साफ पंजाबी बोली जाती है जिसे सुनकर एकदम से यह फर्क करना मुश्किल हो जाता है कि सामने वाली भारतीय ही है या फिर पाकिस्तानी।

तस्वीर खिंचवाने को उतावले

काॅरिडोर से होते हुए करतारपुर साहिब गुरुद्वारे में पहुंचने पर सबसे अधिक संख्या में सिख और हिंदू ही नजर आते हैं। पाकिस्तान के सिंध प्रांत में रहने वाले भी करतारपुर में माथा टेकने आते हैं। बड़ी संख्या में मुस्लिम भी रोजाना यहां पहुंचते हैं जो 40 एकड़ में बने करतारपुर साहिब परिसर के अंदर ही उस मजार पर माथा टेकते हैं जिसे बाबा नानक की मजार कहा जाता है। पाकिस्तानी लोग भारतीयों को देखकर बहुत खुश दिखते हैं। उनके भाव कुछ ऐसे होते हैं मानो दो बिछड़े हुए अपने बरसों बाद मिले हों। उनमें भारतीयों के साथ सेल्फी और फोटो खिंचवाने का बहुत क्रेज नजर आता है। भारत के बारे में वह खूब सवाल-जवाब करते हैं।

एक ही सवाल-आपके यहां पेट्रोल का रेट क्या है?

करतारपुर साहिब में भारतीय श्रद्धालुओं से मिलने वाला हर पाकिस्तानी एक सवाल जरूर पूछता है। और वो सवाल है- भारत में पेट्रोल कितने रुपए लीटर है? पाकिस्तान में वहां की करंसी के हिसाब से पेट्रोल का रेट 145 रुपए प्रति लीटर है मगर भारतीय करंसी के हिसाब से देखें तो उन्हें पेट्रोल 75 रुपए प्रतिलीटर ही मिल रहा है। भारत में पेट्रोल का रेट 95 रुपए प्रतिलीटर मिलने की बात सुनकर वह हैरानी जताते हुए कहते हैं- ‘तुम से तो फिर हम ही अच्छे हैं।’

पाकिस्तानी लोग भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बारे में सवाल-जवाब तो खूब करते हैं मगर खुद उनके प्रति विचार बहुत अच्छे नहीं रखते।।

कहते हैं-दोबारा जरूर आना

करतारपुर जाने वाले भारतीयों पर समय की पाबंदी रहती है और हर भारतीय को शाम 5 बजे से पहले लौटना अनिवार्य होता है। पाकिस्तानी नागरिक हर लौटते भारतीय को दोबारा आने के लिए कहते हैं। जीरो लाइन के पास खड़े पाकिस्तानी रेंजर्स भी हर भारतीय से एक सवाल जरूर करते हैं और वो सवाल होता है, ‘कैसा लगा पाकिस्तान?’। इसके साथ ही पाक रेंजर्स वापस जरूर आने की बात भी कहते हैं। अगर लौटने से पहले कोई भारतीय चाहे तो पाक रेंजर्स उसके साथ तस्वीर जरूर खिंचवाते हैं और फिर गर्मजोशी से हाथ मिलाकर विदा करते हैं।

करतारपुर साहिब गुरुद्वारे में माथा टेकने जाने वाला हर भारतीय 12 चरणों से गुजरकर वहां तक पहुंचता है। पढ़िए कौन-कौन से हैं यह 12 चरण :-

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