ओडिशा की आदिवासी महिला का कमाल: 45 साल की आशा वर्कर मातिलता कुल्लू दुनिया की सबसे ताकतवर महिलाओं में शामिल

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भुवनेश्वर6 मिनट पहले

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ओडिशा की 45 साल की आदिवासी महिला और आशा वर्कर मातिलता कुल्लू को फोर्ब्स ने दुनिया की सबसे ताकतवर महिलाओं की सूची में शामिल किया गया है। कुल्लू सुंदरगढ़ जिले की बड़ागांव तहसील के गर्गडबहल गांव में पिछले 15 साल से बतौर आशा वर्कर काम कर रहीं।

45 साल की कुल्लू ने इस क्षेत्र से काला जादू जैसे सामाजिक अभिशाप को जड़ से खत्म कर दिया। उनकी इसी उपलब्धि के चलते उन्हें फोर्ब्स ने मशहूर बैंकर अरुंधति भट्टाचार्य और अभिनेत्री रसिका दुग्गल जैसी शख्सियतों के साथ 2021 में दुनिया की सबसे ताकतवर शख्सियतों में जगह दी है।

परिवार के साथ अपने मवेशियों को भी संभालती हैं कुल्लू
मातिलता कुल्लू का दिन सुबह पांच बजे शुरू होता है। परिवार के चार लोगों की जिम्मेदारी और घर के मवेशियों की देखभाल के बाद वह साइकिल लेकर आशा वर्कर से जुड़े कामों के लिए निकल पड़ती हैं। गांव के हर घर की चौखट पर जाकर रोजान नवजात और किशोर लड़कियों का वैक्सीनेशन, प्रसव पूर्व जांच, प्रसव के बाद की जांच, जन्म की तैयारी, स्तनपान और महिलाओं को परामर्श, एचआईवी सहित साफ-सफाई और संक्रमण से बचने की जानकारी देना मातिलता का काम है।

बीमार लोगों को अस्पताल जाने के लिए जागरूक किया
मातिलता बताती हैं कि लोगों ने बीमार पड़ने पर अस्पताल जाने के बारे में नहीं सोचा था। जब मैं लोगों को अस्पताल जाने की सलाह देती थी तो वे मेरा मजाक उड़ाते थे। धीरे-धीरे लोगों को सही और गलत का फर्क समझाया। आज वे छोटी सी छोटी बीमारी के लिए अस्पताल जाकर इलाज करवाते हैं। कुल मिलाकर अगर मातिलता कुल्लू के प्रयास न होते तो उनके गांव के लोग अभी भी अस्पताल जाने के बजाय स्वास्थ्य संबंधी बीमारियों के लिए काला जादू का सहारा ले रहे होते।

मातिलता बताती हैं कि जब मैं लोगों को अस्पताल जाने की सलाह देती थी तो वे मेरा मजाक उड़ाते थे। धीरे-धीरे लोगों को सही और गलत का फर्क समझाया।

मातिलता बताती हैं कि जब मैं लोगों को अस्पताल जाने की सलाह देती थी तो वे मेरा मजाक उड़ाते थे। धीरे-धीरे लोगों को सही और गलत का फर्क समझाया।

कोरोना के दौरान रोज 50-60 घरों में जाकर करती थीं टेस्ट
मातिलता बताती हैं कि कोरोना महामारी के दौरान उनकी जिम्मेदारियां अधिक बढ़ गई। इसके तहत कोरोना के लक्षण होने वाले लोगों की जांच करने के लिए उन्हें हर दिन 50-60 घरों में जाने में पड़ता था। मातिलता बताती हैं कि कोरोना की पहली लहर के कम होने और वैक्सीनेशन शुरू होने के बाद उन्हें गांव वालों को वैक्सीन लेने के लिए समझाने में मुश्किलों का सामना करना पड़ा। मातिलता कहती हैं आज हमें हर महीने 4500 रुपए मिलते हैं, फिर भी गांव के लोगों की सेवा कर के मैं बहुत खुश हूं।

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