SC जज बोले- समाज में भीड़ तंत्र पैदा हो रहा: नेता अपराधियों को फांसी देने का वादा करते हैं, जबकि फैसला लेना न्यायपालिका का काम

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पुणे29 मिनट पहले

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जस्टिस ओका बार काउंसिल ऑफ महाराष्ट्र की तरफ से पुणे में आयोजित कॉन्फ्रेंस में शामिल हुए थे।

सुप्रीम कोर्ट जस्टिस अभय ओका ने रविवार को कहा कि समाज में ‘भीड़ तंत्र’ पैदा हो रहा है। जब कोई हादसा होता है, तो नेता इसका फायदा उठाने की कोशिश करते हैं। वे उस जगह जाते हैं और जनता से वादा करते हैं कि आरोपी को फांसी की सजा दी जाएगी, लेकिन ये तय करना उनका काम नहीं है। ये फैसला लेने की ताकत सिर्फ न्यायपालिका के पास है।

जस्टिस ओका बार काउंसिल ऑफ महाराष्ट्र की तरफ से पुणे में आयोजित कॉन्फ्रेंस में शामिल हुए थे। यहां उन्होंने न्यायपालिका की स्वतंत्रता बनाए रखने और त्वरित और न्यायपूर्ण फैसले सुनाने की अहमियत पर अपनी बात रखी। उन्होंने यह भी कहा कि कई केस में बेल देने के चलते बिना वजह ही न्यायपालिका की आलोचना की जाती है।

ममता बनर्जी ने कहा था- रेप कानूनों में बदलाव करेंगे, ताकि अपराधियों को फांसी मिले
मॉब रूल की टिप्पणी करते वक्त जस्टिस ओका ने किसी का नाम नहीं लिया, लेकिन उनकी टिप्पणी ऐसे समय में आई है, जब कोलकाता रेप-मर्डर और महाराष्ट्र के बदलापुर में दो स्कूली छात्राओं के यौन शौषण के मामले सामने आने के बाद अपराधियों के लिए कड़ी से कड़ी सजा सुनाए जाने के मांग उठ रही है।

शनिवार (31 अगस्त) को ही केंद्रीय मंत्री रामदास अठावले ने कोलकाता में ट्रेनी डॉक्टर के रेप-मर्डर में शामिल अपराधियों के लिए फांसी की सजा की मांग की थी। इससे कुछ दिन पहले पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने वादा किया था कि वे मौजूदा कानून में बदलाव करेंगी, ताकि रेप के अपराधियों को फांसी की सजा सुनिश्चित की जा सके।

बुधवार (28 अगस्त) को तृणमूल छात्र परिषद (TMCP) के 27वें स्थापना दिवस के कार्यक्रम में ममता ने रेप कानून में बदलाव का वादा किया था।

बुधवार (28 अगस्त) को तृणमूल छात्र परिषद (TMCP) के 27वें स्थापना दिवस के कार्यक्रम में ममता ने रेप कानून में बदलाव का वादा किया था।

जस्टिस ओका बोले- ज्यूडिशियरी की आजादी बनाए रखनी होगी
उन्होंने कहा कि अगर ज्यूडिशियरी का सम्मान करना है तो इसकी स्वतंत्रता बनाए रखनी होगी। संविधान का पालन सिर्फ तब होगा जब वकील और ज्यूडिशियरी संवेदनशील रहेंगे। न्याय तंत्र को बनाए रखने में वकील अहम भूमिका निभाते हैं, लिहाजा उन्हें अपनी जिम्मेदारी पूरी करनी होगी, वरना संविधान नहीं बच पाएगा।

जस्टिस वराले बोले- बेटी पढ़ाओ के साथ बेटा पढ़ाओ पर भी जोर देना होगा

कार्यक्रम को संबोधित करते सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस प्रसन्न भालचंद्र वराले।

कार्यक्रम को संबोधित करते सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस प्रसन्न भालचंद्र वराले।

कॉन्फ्रेंस में मौजूद सुप्रीम कोर्ट जस्टिस प्रसन्न भालचंद्र वराले ने शिक्षा और जागरूकता के जरिए संविधानिक मूल्यों को बनाए रखने की अहमियत पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि अपने मूल्यों को बनाए रखने और कड़ी मेहनत करने से ही सफलता मिलती है।

जस्टिस वराले ने कहा कि सिर्फ संविधान को जानने या पढ़ने से काम नहीं चलता, हमें इसके प्रति जागरूक भी होना होगा। महिलाओं पर हो रहे हमलों को देखते हुए सिर्फ ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ ही नहीं, बल्कि ‘बेटा पढ़ाओ’ भी जरूरी हो गया है।

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