चंद्र ग्रहण को खुली आंखों से देखना सुरक्षित: राहु के चंद्रमा को निगलने से नहीं लगता ग्रहण; इससे भूकंप-सुनामी आने के पीछे भी साइंस

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9 मिनट पहले

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जब पृथ्वी, सूर्य और चंद्रमा के बीच में आ जाती है, तो सूर्य का प्रकाश चंद्रमा तक नहीं पहुंच पाता है। तब पृथ्वी की छाया चंद्रमा पर पड़ने से चंद्र ग्रहण होता है।

आज रात को साल का आखिरी चंद्र ग्रहण होगा। यह आंशिक चंद्र ग्रहण रहेगा। विज्ञान मंत्रालय के मुताबिक ग्रहण रात 1.05 बजे से रात 2.24 बजे तक दिखाई देगा। एक घंटा 19 मिनट के इस ग्रहण को भारत में हर जगह से देखा जा सकेगा।

यह चंद्र ग्रहण इस साल की आखिरी खगोलीय घटना होगी। इसके बाद 25 मार्च 2024 को अगला चंद्र ग्रहण पड़ेगा। शरद पूर्णिमा तिथि, मास, वर्ष, गोचर की गणना से देखें, तो 2005 में शरद पूर्णिमा पर चंद्र ग्रहण था और अब 2023 में शरद पूर्णिमा पर चंद्र ग्रहण की स्थिति बनी है।

एनिमेशन के जरिए देखें चंद्र ग्रहण

अब चंद्र ग्रहण से जुड़े तमाम पहलुओं को जान लेते हैं…

क्या चंद्र ग्रहण भारत में दिखाई देगा
आंशिक चंद्र ग्रहण को भारत समेत पृथ्वी पर करीब हर जगह से देखा जा सकेगा। भारत के अलावा यह यूरोप, एशिया, ऑस्ट्रेलिया, अफ्रीका, नॉर्थ अमेरिका, नॉर्थ/ईस्ट साउथ अमेरिका, पैसेफिक, अटलांटिक, इंडियन ओशन, आर्कटिक और अंटार्कटिका के ऊपर देखा जा सकेगा।

देशों के हिसाब से देखें तो अफगानिस्तान, चीन, ईरान, तुर्किये, अल्जीरिया, बांग्लादेश, भूटान, मंगोलिया, नाइजीरिया, ब्रिटेन, स्पेन, स्वीडन, मलेशिया, फिलीपींस, थाईलैंड, ऑस्ट्रेलिया, जापान, इंडोनेशिया, कोरिया और ब्राजील के पूर्वी भाग में भी आंशिक चंद्र ग्रहण दिखाई देगा।

चंद्र ग्रहण को हम कैसे देख सकते हैं
सूर्य ग्रहण की तुलना में चंद्र ग्रहण देखना सुरक्षित होता है। कोई भी व्यक्ति बिना आई प्रोटेक्शन और स्पेशल इक्विपमेंट के इसे देख सकता है। आप बिना बाइनॉकुलर्स या टेलिस्कोप के सीधे अपनी आंखों से चंद्रग्रहण देख सकते हैं।

चंद्र ग्रहण क्या है, यह क्यों होता है
पृथ्वी और सभी दूसरे ग्रह गुरुत्वाकर्षण बल यानी ग्रेविटेशनल फोर्स की वजह से सूर्य के चारों ओर चक्कर लगाते हैं। सूर्य के चक्कर लगाने के दौरान कई बार ऐसी स्थिति बनती है जब पृथ्वी, सूर्य और चंद्रमा के बीच में आ जाती है। इस दौरान सूर्य का प्रकाश चंद्रमा तक नहीं पहुंच पाता है और पृथ्वी की छाया चंद्रमा पर पड़ने से चंद्र ग्रहण होता है।

चंद्र ग्रहण की घटना तभी होती है जब सूर्य, पृथ्‍वी और चंद्रमा एक सीध में हों, खगोलीय विज्ञान के अनुसार ये केवल पूर्णिमा के दिन ही संभव होता है। इसी वजह से चंद्र ग्रहण केवल पूर्णिमा के दिन होते हैं।

चंद्र ग्रहण कितनी तरह के होते हैं

चंद्र ग्रहण आम तौर पर 3 तरह के होते हैं। इन्हें पूर्ण, आंशिक और उपछाया चंद्र ग्रहण कहा जाता है। इनमें से हर तरह के ग्रहण के लिए अलग खगोलीय स्थिति जिम्मेदार है..

1. पूर्ण चंद्र ग्रहण (Total lunar eclipse): पूर्ण चंद्र ग्रहण तब होता है जब पृथ्वी, सूर्य तथा चंद्रमा एक सीधी रेखा में होते हैं। इसके कारण पृथ्वी की छाया पूरी तरह से चंद्रमा को ढंक लेती है, जिससे चंद्रमा पर पूरी तरह से अंधेरा छा जाता है।

2. आंशिक चंद्र ग्रहण (Partial lunar Eclipse): जब पृथ्वी की परछाई चंद्रमा के पूरे भाग को ढंकने की बजाय किसी एक हिस्से को ही ढंके, तब आंशिक चंद्र ग्रहण होता है। इस दौरान चंद्रमा के एक छोटे हिस्से पर ही अंधेरा होता है।

3. उपछाया चंद्र ग्रहण (Penumbral lunar Eclipse): उपछाया चंद्र ग्रहण तब होता है जब पृथ्वी की छाया चंद्रमा के बाहरी भाग पर पड़ती है। इस तरह के चंद्र ग्रहण को देखना मुश्किल होता है।

कहीं पूर्ण और कहीं आंशिक चंद्र ग्रहण की वजह क्या है
एक हिस्से में पूर्ण चंद्र ग्रहण और दूसरे हिस्से में आंशिक चंद्र ग्रहण लगने की मुख्य वजह चंद्रमा पर पड़ने वाली पृथ्वी की छाया है। ये 2 तरह की होती है…

पहली: प्रच्छाया (Umbra): पूर्ण चंद्र ग्रहण तब दिखाई देता है, जब देखने वाला इंसान पृथ्वी के उस हिस्से में हो जहां से चंद्रमा पूरी तरह से पृथ्वी की छाया से ढंका नजर आता है।

दूसरी: उपछाया (Penumbra): उपछाया से देख रहे दर्शकों को आंशिक चंद्र ग्रहण ही दिखाई देता है।

एक साल में कितनी बार चंद्र ग्रहण लग सकता है
NASA के मुताबिक एक साल में ज्यादातर 2 बार चंद्र ग्रहण होता है। किसी साल चंद्र ग्रहण लगने की संख्या 3 भी हो सकती है। सैकड़ों साल में लगने वाले कुल चंद्र ग्रहणों में से लगभग 29% चंद्र ग्रहण पूर्ण होते हैं। औसतन, किसी एक स्थान से हर 2.5 साल में पूर्ण चंद्र ग्रहण देखा जा सकता है। चंद्र ग्रहण 30 मिनट से लेकर एक घंटे के लिए लगता है।

चंद्र ग्रहण के दौरान पता चली पृथ्वी से चंद्रमा की दूरी
चंद्र ग्रहण की वजह से कई खास वैज्ञानिक खोज हुई हैं। इनमें से प्रमुख कुछ इस तरह से हैं…

1. 150 ईसा पूर्व यानी आज से करीब 2100 साल पहले चंद्र ग्रहण के दौरान ग्रीस के वैज्ञानिकों ने पृथ्वी का व्यास यानी डायमिटर पता किया था। इससे पता चला कि पृथ्वी कितनी बड़ी है।

2. 400 ईसा पूर्व ग्रीस के वैज्ञानिक अरिस्तर्खुस ने चंद्र ग्रहण की मदद से ही पृथ्वी से चंद्रमा की दूरी पता की थी।

3. आगे चलकर ग्रीस के एस्ट्रोलॉजर क्लाडियस टॉलमी ने दूसरी सदी यानी 1800 साल पहले इसी के आधार पर दुनिया के सबसे पुराने वर्ल्ड मैप में से एक बनाया था, जिसका नाम टॉलमी वर्ल्ड मैप था।

ग्रहण से जुड़े अंधविश्वास और वैज्ञानिक सच

​​​​​पहला: राहु चंद्रमा को निगलने की कोशिश करता है
NASA ने इस तरह के दावों और पौराणिक कथाओं से इनकार किया है। ऐसा सिर्फ और सिर्फ तब होता है जब पृथ्वी सूर्य और चंद्रमा के बीच में आ जाती है। इस दौरान सूर्य का प्रकाश चंद्रमा तक नहीं पहुंच पाता है और पृथ्वी की छाया चंद्रमा पर पड़ने से चंद्र ग्रहण होता है।

दूसरा: चंद्र ग्रहण की वजह से सुनामी और दूसरी प्राकृतिक आपदाएं आती हैं
NASA का मानना है कि चंद्र ग्रहण से जुड़ी धार्मिक मान्यता सुनामी या दूसरी प्राकृतिक आपदा आने की वजह नहीं है। दरअसल, इस वक्त पृथ्वी और चंद्रमा एक-दूसरे के काफी नजदीक होते हैं। इसलिए इस समय गुरुत्वाकर्षण बल काफी ज्यादा होता है। यही वजह है कि पृथ्वी के अंदर होने वाले भौगोलिक बदलावों के कारण भूकंप, सुनामी और दूसरी प्राकृतिक आपदाएं चंद्र ग्रहण के बाद आती हैं।

तीसरा: ग्रहण के दौरान पहले से बना खाना खराब हो जाता है
ग्रहण के दौरान खाना खराब होने की बात को मानने से NASA इनकार करता है। वैज्ञानिकों का मानना है कि ग्रहण के दौरान खाना, पीना और दैनिक गतिविधियों को करना पूरी तरह से सुरक्षित है।

चौथा: चंद्र ग्रहण किसी अशुभ की ओर इशारा करता है
NASA इसे मानने से इनकार करता है। साइंटिस्ट इस तरह की बातों को मनोवैज्ञानिक कन्फर्मेशन बायस कहते हैं। इसका मतलब यह हुआ कि हम आमतौर पर चंद्र ग्रहण को भले ही याद नहीं रखते हैं, लेकिन जब इसके साथ ही कोई घटना घटती है तो हम इसे लंबे समय तक याद रखते हैं।

उदाहरण के लिए 6 सितंबर 1979 को चंद्र ग्रहण लगा था, जिसके एक महीने बाद अक्टूबर-1979 में फिलीपींस में तूफान आया था। इसके बाद दुनिया के कई जगहों पर इस तूफान के लिए चंद्र ग्रहण को जिम्मेदार बताया गया, लेकिन चंद्र ग्रहण के बाद क्या अच्छा हुआ लोगों को ये याद नहीं है।

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