64 के बजरंग 58 की आशा बर्लिन मैराथन का हिस्सा: लड़कियों की शिक्षा पर खर्च करेंगे प्राइज मनी, 3 मैराथन करने वाले देश के पहले कपल

लखनऊ31 मिनट पहलेलेखक: अनुराग गुप्ता

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उत्तर प्रदेश का सुल्तानपुर जिला। यहां जन्मे बजरंग सिंह। 12वीं तक की पढ़ाई यहीं की। आगे की पढ़ाई करने कानपुर चले गए। हरकोर्ट बटलर कॉलेज से इंजीनियरिंग करने के बाद एम.टेक के लिए IIT रूड़की में सिलेक्शन हो गया। रुड़की में ही सेना भर्ती रैली में हिस्सा लिया। 1986 में इंडियन आर्मी में सिलेक्ट हो गए।

शुरुआत में फाइटर फोर्स में रहे। इसके बाद माइन फील्ड में भेज दिया गया। देश के अलग-अलग हिस्सों में सेवा देने के बाद अंतिम पोस्टिंग पुणे मिली। इसके बाद 2014 में इंडियन आर्मी से कर्नल पद से रिटायर हो गए। पुणे में रहने के दौरान पहली बार रनिंग में हिस्सा लिया। पहली बार में वह अपनी पत्नी के साथ बिना तैयारी के क्वालीफाई कर गए।

इसके बाद दोनों का ये सिलसिला ऐसा शुरू हुआ की दुनियाभर में होने वाली 6 मेजर मैराथन में से 4 क्वालीफाई कर चुके हैं। पांचवीं बर्लिन मैराथन के लिए रवाना हो चुके हैं। जो जर्मनी के बर्लिन में 24 सितंबर को होनी है। बजरंग सिंह 60-65 उम्र की कैटेगरी और आशा सिंह 55-60 उम्र की कैटेगरी का हिस्सा होंगी।

कर्नल बजरंग सिंह की कहानी जानने दैनिक भास्कर उनके घर पहुंचा। जहां पर इस मैराथन से जुड़ी बातें जानी। इसके अलावा भी जीवन के हर पहलुओं पर बातचीत की। आइए शुरू से जानते हैं…

इस तस्वीर में कर्नल बजरंग सिंह और उनकी पत्नी हैं। दोनों 24 सितंबर को बर्लिन मैराथन में हिस्सा लेंगे।

इस तस्वीर में कर्नल बजरंग सिंह और उनकी पत्नी हैं। दोनों 24 सितंबर को बर्लिन मैराथन में हिस्सा लेंगे।

इंजीनियरिंग कर रहे बजरंग, कैसे बने सेना के अफसर?
​​​​सुल्तानपुर स्थित परवरभार गांव के रहने वाले बजरंग सिंह का जन्म 1960 हुआ। पिता भगवती प्रसाद सिंह बेटे को इंजीनियर बनाना चाहते थे। बजरंग भी पढ़ने में काफी होनहार थे। 12वीं तक की पढ़ाई सुल्तानपुर के ही धम्मौर स्कूल से पूरी की। इसके बाद इंजीनियरिंग करने कानपुर के हरकोर्ट बटलर कॉलेज चले गए।

वहां से आईआईटी रुड़की में एम.टेक के लिए सिलेक्ट हो गए। कॉलेज के पास में ही सेना भर्ती की रैली हुआ करती थी। उसे देखकर बजरंग सिंह देश सेवा के लिए प्रभावित होने लगे। इंजीनियर बनने के लिए घर से निकले बजरंग ने अब सेना में जाने का मन बना लिया। 1986 में सेना भर्ती में शामिल हुए और पहली बार में सिलेक्ट हो गए।

ये तस्वीर बोस्टन मैराथन के दौरान ली गई थी। यह दुनिया की सबसे प्रॉमिनेंट मैराथन में से एक है।

ये तस्वीर बोस्टन मैराथन के दौरान ली गई थी। यह दुनिया की सबसे प्रॉमिनेंट मैराथन में से एक है।

10 किलोमीटर हाफ मैराथन से हुई शुरुआत
बजरंग बताते हैं 28 साल सेना में नौकरी करने के बाद अब रिटायरमेंट करीब आ रहा था। बच्चों की पढ़ाई पूरी हो चुकी थी। सबकी जॉब लग चुकी थी। सभी की शादियां हो चुकी थीं। सारी जिम्मेदारी से फ्री हो चुके थे। रिटायरमेंट के बारे में सोचकर परेशान से होते थे कि इसके बाद लाइफ का एंबीशन क्या होगा? किस तरह से खुद को एक्साइटेड रखा जाए।

पुणे में पहली बार 10 किलोमीटर की रीजनल मैराथन रनिंग में अपनी वाइफ के साथ हिस्सा लिया। यह पहली बार में ही क्वालीफाई हुई। फिर लगा कि अच्छी रनिंग कर सकते हैं। धीरे-धीरे हाफ मैराथन में हिस्सा लेकर किलोमीटर बढ़ता गया और बजरंग क्वालीफाई करते गए। लगभग जहां भी गए, वहां पोडियम पोजिशन मिलने लगी। इसके बाद तो देश भर में होने वाली मैराथन में भाग लेने लगे।

सेना का अनुभव बजरंग सिंह के काम आया
कर्नल बजरंग सिंह की इंडियन आर्मी में लास्ट पोस्टिंग पुणे थी। पुणे में रीजनल रनिंग चलती रहती थी। आस-पास के लोगों से रनिंग के बारे सुनते थे। आर्मी में रहने की वजह से फिटनेस थी। रिटायरमेंट के बाद रीजनल रनिंग में जाने का प्लान बनाया।

56 साल की उम्र में करियर के दूसरे दौर में हिस्सा लिया। पहली बार जून, 2016 में पुणे में हुई 10 किलोमीटर के हाफ मैराथन में हिस्सा लिया। इसके बाद दिसंबर, 2016 में गोवा में फुल मैराथन में सेकेंड आए। 2017 में हैदराबाद में फुल मैराथन में गए। पहली पोजिशन मिली।

ये तस्वीर बजरंग सिंह और आशा सिंह के प्रैक्टिस सेशन की है।

ये तस्वीर बजरंग सिंह और आशा सिंह के प्रैक्टिस सेशन की है।

6 मेजर मैराथन में से 4 पूरी कर पांचवीं का हिस्सा बन गए
दुनिया में जो सबसे प्रॉमिनेंट मैराथन हैं, उनमें 6 मैराथन का नाम आता है। सबसे पुरानी बोस्टन मैराथन है। इसके अलावा लंदन, न्यूयार्क सिटी, शिकागो, बर्लिन और टोक्यो। बोस्टन मैराथन को क्वालीफाई करना किसी सीरियस रनर के अचीवमेंट की बात मानी जाती है। जिसको कर्नल बजरंग सिंह ने अपनी पत्नी आशा सिंह के साथ 2019 और 2021 में क्वालीफाई किया था। बजरंग इसके अलावा शिकागो, लंदन और न्यूयार्क भी क्वालीफाई कर चुके हैं।

चार मेजर मैराथन पूरी करने के बाद बर्लिन मैराथन में अप्लाई किया। जिसके आधार पर दोनों लोगों का सिलेक्शन बर्लिन मैराथन में हो गया। चार मेजर मैराथन करना मतलब 4 स्टार लगना होता है। जिस दिन दुनिया का छह मेजर मैराथन पूरी कर लेंगे, उस दिन 6 स्टार विनर हो जाएंगे। बर्लिन मैराथन के बाद 5 स्टार हो जाएंगे। इसके बाद टोक्यो मैराथन बचेगी। जिसे अगली साल पूरा कर लेंगे।

बजरंग सिंह और आशा सिंह इंडिया के पहले ऐसे कपल्स हैं, जिन्होंने 6 मेजर मैराथन में से 3 साथ में पूरी की थी। जिसके बाद इंटरनेशनल बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड का भी मेडल मिल चुका है।

सोशल मीडिया से अच्छे रनर को अपने साथ जोड़ा
मैराथन के बारे में सर्च करते वक्त पता चला कि बोस्टन मैराथन होती है। जो कि दुनिया की प्रॉमिनेंट मैराथन है। उसके लिए क्वालीफाई करना होता है। दिमाग में आया कि इसको क्वालीफाई करना चाहिए। जिसे 2019 में क्वालीफाई किया। इस दौरान दिमाग में एक बात आई कि क्यों न अपने शहर से और लोगों को तैयार किया जाए। जो बोस्टन मैराथन में हिस्सा लें। सोशल मीडिया के माध्यम से लखनऊ के अच्छे रनर को इनवाइट किया। उसमें से आज 10-12 लोगों साथ में ट्रेनिंग कर रहे हैं। जिसमें से 27 साल के राघवेंद्र सिंह और बजरंग सिंह की पत्नी आशा सिंह भी क्वालीफाई की हैं। हालांकि आशा सिंह इसके पहले भी बोस्टन मैराथन का हिस्सा बन चुकी हैं।

आशा सिंह हाउसवाइफ से बनी रनर
आशा सिंह मूल रूप से आयोध्या के टिकरी गांव की रहने वाली हैं। पिता की पोस्टिंग जमशेदपुर के स्टील प्लांट में होने की वजह से वहीं से पढ़ाई पूरी की। पढ़ाई पूरी होने के बाद बजरंग सिंह से शादी हो गई। आशा सिंह हाउसवाइफ रही हैं। पति के रिटायरमेंट तक अपनी सारी जिम्मेदारी पूरी कर चुकी थी। इसके बाद 50 साल की उम्र में पति के साथ रनिंग शुरू की और नए कीर्तिमान रचती चली गई। कर्नल बजरंग सिंह और उनकी पत्नी आशा सिंह साल 2016 से अब तक 125 से ज्यादा रीजनल, नेशनल और इंटरनेशनल मैराथन का हिस्सा बन चुके हैं।

आशा सिंह के रिकॉर्ड
जनवरी, 2021 में लखनऊ में हुए हाफ मैराथन में 12 घंटे में 114.7 किलोमीटर की दौड़ लगाई थी। ये इंडिया का रिकॉर्ड रनिंग थी। इसमें सभी वर्ग के लोग और सभी एज ग्रुप के लोग शामिल थे। इसके बाद 4-5 दिसंबर 2021 में दिल्ली के जवाहर लाल नेहरू स्टेडियम में हिस्सा लिया। जहां पर 24 घंटे में 179 किलोमीटर दौड़ लगाई। इसके आधार पर जुलाई 2022 में बेंगलुरु में होने वाली एशिया चैम्पियनशिप में सिलेक्शन हो गया।

इसके बाद एशिया-ओसियाना मिलाकर 7 देश की मैराथन में आशा सिंह ने हिस्सा लिया। सबसे ज्यादा उम्र की आशा थी। जिसमें 24 घंटे में 181 किलोमीटर दौड़कर भारत को सिल्वर मेडल दिलाया। 2 अक्टूबर, 2022 में वर्ल्ड मैराथन चैम्पियनशिप में भारत को रिप्रजेंट किया।

USA में मैराथन से पहले हो गया सड़क हादसा
2020 में बजरंग सिंह और आशा सिंह मैराथन में हिस्सा लेने यूएसए पहुंचे। जहां पर सड़क पर रनिंग प्रैक्टिस कर रही थी। तभी एक सवार ने उन्हें टक्कर मार दी। जिससे उनके लेफ्ट शोल्डर में फ्रैक्चर हो गया। हालांकि कोविड की वजह से मैराथन कैंसिल हो गई। लेकिन आज भी शोल्डर के डिस्लोकेट हो जाने की वजह से दर्द बना रहता है।

ये तस्वीर लंदन मैराथन की है। इसका नाम दुनिया की सबसे प्रॉमिनेंट 6 मैराथन में शामिल है।

ये तस्वीर लंदन मैराथन की है। इसका नाम दुनिया की सबसे प्रॉमिनेंट 6 मैराथन में शामिल है।

लड़कियों की पढ़ाई पर खर्च करेंगी प्राइज मनी
आशा बताती है कि मैराथन से मिलने वाली प्राइज मनी को लड़कियों की शिक्षा पर खर्च करेंगे। उनकी धनराजी देवी फाउंडेशन नाम की संस्था है। जिसके लिए रन बर्लिन फॉर गर्ल एजुकेशन के नाम से कैंपेन भी शुरू किया है। संस्था के माध्यम में से अभी एक लड़की के पढ़ाई का खर्च उठा रहे हैं। इसके लिए सोशल मीडिया पर भी कैंपेन चला रहे हैं। जो भी फंड आता है, उसको लड़कियों की पढ़ाई पर लगाना है।

वहीं बजरंग सिंह बताते हैं 2018 में बड़े लड़के को बेटा हुआ, जिसे देखने अमेरिका गए थे। वहां पर उस समय ट्रेल रनिंग चल रही थी। जिसमें फर्स्ट आए। ट्रेल रनिंग के बारे में पूछने पर बताया कि इसको टूटे-फूटे रास्ते पर कराया जाता है। जो जंगलों के बीच में होती है। पेड़ वगैरा हटाकर ईंटों को फांदते हुए इसे पूरा करना पड़ता है।

शुरुआत पुणे से हुई लेकिन लखनऊ को बनाई कर्मभूमि
बजरंग बताते हैं कि पुणे में लास्ट पोस्टिंग होने की वजह से शुरुआत वहां से हुई। पुणे में रेस हो रही थी तो वहां हिस्सा लिया। लखनऊ में अपना घर है, तो फाइनली रिटायर होने के बाद यहीं आ गए। बजरंग सिंह लखनऊ से करीब 150 किलोमीटर दूर सुल्तानपुर के रहने वाले हैं।

युवाओं के लिए मैराथन में क्या भविष्य है…
बजरंग बताते हैं कि ओवर ऑल रनिंग की बात है। जो शॉर्ट रनिंग डिस्टेंस की रेस हैं, या मैराथन डिस्टेंस तक है। जो ओलंपिक चैम्पियनशिप में भी शामिल होती हैं। उसके नीचे जो एशियन चैम्पियनशिप या इस तरह की रेस होती है। उसमें सरकार से सपोर्ट मिलता है।

उसमें जो युवा नेशन के रिप्रजेंट कर सकते हैं। एशिया चैम्पियनशिप या वर्ल्ड चैम्पियनशिप तक पहुंचते हैं। उनके लिए बहुत अच्छा है। लेकिन जो लॉन्ग डिस्टेंस रेस है, वो इंडिया में कुछ समय पहले ही शुरू हुई। जिसमें लोग हिस्सा लेने लगे हैं। इंडिया में ही नहीं दुनिया में भी जो लॉन्ग डिस्टेंस रेस हैं, उसमें बतौर करियर थोड़ा मुश्किल है। लेकिन कोई टॉप पोजिशन लेने की क्षमता रखता है, तो करियर सोच सकता है।

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