11 तस्वीरों में शिव, कान्हा, रामलला की नगरी में नागपंचमी: 27 आक्रमण के बाद भी अयोध्या के नागेश्वरनाथ की महिमा बरकरार, मथुरा के कालिया नाग मंदिर में लगा मेला; काशी के नागकूप मंदिर में उमड़ी भीड़

वाराणसी| अयोध्या|मथुरा2 घंटे पहले

आज नाग पंचमी है। सावन मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को हर साल नाग पंचमी मनाई जाती है। आज के दिन नाग देवता की पूजा करने की परंपरा है। आज के ही दिन कालसर्प दोष से मुक्ति या काल सर्प की तीव्रता से शांति के लिए पूजा की जाती है।

ज्योतिषाचार्य आलोक गुप्ता के मुताबिक, नाग पंचमी का पर्व हस्त-नक्षत्र व साध्य योग में कल्कि जयंती के साथ मनाया जाएगा। शुक्रवार को पंचमी तिथि दोपहर 1:42 बजे तक रहेगी। हस्त-नक्षत्र शाम 7:58 बजे तक और साध्य योग शाम 6:48 बजे तक रहेगा। अभी कोरोना चल रहा है। ऐसे में हम आपको आपको घर बैठे 11 तस्वीरों के जरिए अयोध्या के नागेश्वरनाथ, मथुरा के कालिया नाग और काशी के श्री प्राचीन नागकुंड मंदिर के दर्शन करा रहे हैं। इसके साथ ही हम आपको अयोध्या के नागेश्वरनाथ और मथुरा के कालिया नाग मंदिर की पौराणिक कथा भी बता रहे हैं….

अयोध्या
नागेश्वरनाथ मंदिर में भोलेनाथ खुद करते हैं वास

सरयू के पास स्थापित भगवान शिव का नागेश्वरनाथ मंदिर शिवभक्तों की आस्था का बड़ा केंद्र है। यह मंदिर भगवान शिव के पौराणिक 108 शिवमंदिरों में एक है।

इस मंदिर में मान्यता है कि भगवान श्रीराम के पुत्र कुश एक बार सरयू में नाव से घूम रहे थे। इस बीच उनके हाथ का कंगन नदी में गिर गया। ये कंगन सरयू में रहने वाले कुमुद नाग की बेटी के पास गिरा। कंगन वापस लेने के लिए राजा कुश और नाग कुमुद के बीच काफी लड़ाई हुई। नागराज जब हारने लगे तो उन्होंने भगवान शिव का ध्यान किया।

इस मंदिर में मान्यता है कि भगवान श्रीराम के पुत्र कुश एक बार सरयू में नाव से घूम रहे थे। इस बीच उनके हाथ का कंगन नदी में गिर गया। ये कंगन सरयू में रहने वाले कुमुद नाग की बेटी के पास गिरा। कंगन वापस लेने के लिए राजा कुश और नाग कुमुद के बीच काफी लड़ाई हुई। नागराज जब हारने लगे तो उन्होंने भगवान शिव का ध्यान किया।

इसके बाद भगवान शिव ने नागराज कुमुद की पुत्री कुमुदनी की शादी कुश के साथ करवा दी। कुश ने तब भगवान शिव से हमेशा के लिए अयोध्या में ही बसने की प्रार्थना की और उन्होंने ये स्वीकार कर लिया। तबसे यहां भगवान शिव को नागों की रक्षा के लिए नागेश्वरनाथ के नाम से जाना जाता है। राजा कुश ने ही भगवान नागेश्वरनाथ मंदिर की स्थापना करवाई।

इसके बाद भगवान शिव ने नागराज कुमुद की पुत्री कुमुदनी की शादी कुश के साथ करवा दी। कुश ने तब भगवान शिव से हमेशा के लिए अयोध्या में ही बसने की प्रार्थना की और उन्होंने ये स्वीकार कर लिया। तबसे यहां भगवान शिव को नागों की रक्षा के लिए नागेश्वरनाथ के नाम से जाना जाता है। राजा कुश ने ही भगवान नागेश्वरनाथ मंदिर की स्थापना करवाई।

नागेश्वरनाथ की महिमा का न केवल हिन्दू भक्तों ने अपितु अंग्रेजों ने भी इसकी विशेषता का बखान किया है। इतिहासकार विंसेट स्मिथ ने लिखा कि मंदिर पर 27 बार आक्रमण हुआ। इसके बावजूद इसकी महिमा बरकरार है।

नागेश्वरनाथ की महिमा का न केवल हिन्दू भक्तों ने अपितु अंग्रेजों ने भी इसकी विशेषता का बखान किया है। इतिहासकार विंसेट स्मिथ ने लिखा कि मंदिर पर 27 बार आक्रमण हुआ। इसके बावजूद इसकी महिमा बरकरार है।

इतिहासकार लोचन का कहना कि रामेश्वरम, सोमनाथ, काशी विश्वनाथ के समान ही अयोध्या के नागेश्वर नाथ का भी शिवआराधना में विशेष स्थान है।

इतिहासकार लोचन का कहना कि रामेश्वरम, सोमनाथ, काशी विश्वनाथ के समान ही अयोध्या के नागेश्वर नाथ का भी शिवआराधना में विशेष स्थान है।

मथुरा :
कालिया नाग मंदिर में लगता है मेला

मथुरा के जैंत में स्थित कालिया नाग मंदिर का अपना अलग महत्व है। मान्यता है कि द्वापर में जब भगवान श्रीकृष्ण अपने दोस्तों के साथ वृंदावन यमुना तट पर कालीदह घाट के पास गेंद खेल रहे थे, उनकी गेंद यमुना में जा गिरी। गेंद को ढूंढने के लिए भगवान श्रीकृष्ण ने यमुना में छलांग लगा दी। यमुना में कालिया नाग अपने परिवार के साथ रहता था। श्रीकृष्ण ने कुछ ही देर में कालिया सांप नाग को हरा दिया। कालिया नाग भयभीत होकर वहां से भागने लगा। श्रीकृष्ण ने उसे रुकने को कहा, मगर वो डर से नहीं रुका। श्रीकृष्ण ने श्राप दिया कि जिस स्थान पर वो पीछे मुड़कर देखेगा, वहीं पर पत्थर का हो जाएगा।

मथुरा के जैंत में स्थित कालिया नाग मंदिर का अपना अलग महत्व है। मान्यता है कि द्वापर में जब भगवान श्रीकृष्ण अपने दोस्तों के साथ वृंदावन यमुना तट पर कालीदह घाट के पास गेंद खेल रहे थे, उनकी गेंद यमुना में जा गिरी। गेंद को ढूंढने के लिए भगवान श्रीकृष्ण ने यमुना में छलांग लगा दी। यमुना में कालिया नाग अपने परिवार के साथ रहता था। श्रीकृष्ण ने कुछ ही देर में कालिया सांप नाग को हरा दिया। कालिया नाग भयभीत होकर वहां से भागने लगा। श्रीकृष्ण ने उसे रुकने को कहा, मगर वो डर से नहीं रुका। श्रीकृष्ण ने श्राप दिया कि जिस स्थान पर वो पीछे मुड़कर देखेगा, वहीं पर पत्थर का हो जाएगा।

गांव के बुजुर्ग राधाचरन बताते हैं कि जैंत क्षेत्र में उसने पीछे मुड़कर देखा, तो यहीं पर वो पत्थर का हो गया। तभी से यहां पत्थर का सांप बना हुआ है। अब यहां कालिया नाग का भव्य मंदिर बनवाया गया। यहां पर नागपंचमी पर मेला भी लगता है। गांव के लोगों की मानें तो कई साल तक पत्थर का नाग उसी स्थान पर खड़ा रहा। इसके बाद धीरे- धीरे जमीन में धंसता गया। अंग्रेजों ने इसे यहां से ले जाने की कई बार कोशिश की। महीनों तक इसकी खुदाई हुई, मगर पत्थर के नाग को बाहर नहीं निकाला जा सका। नाग को उठाने के लिए सैनिक और मशीनों का सहारा भी लिया गया। मगर नाग को नहीं उठा सके।

गांव के बुजुर्ग राधाचरन बताते हैं कि जैंत क्षेत्र में उसने पीछे मुड़कर देखा, तो यहीं पर वो पत्थर का हो गया। तभी से यहां पत्थर का सांप बना हुआ है। अब यहां कालिया नाग का भव्य मंदिर बनवाया गया। यहां पर नागपंचमी पर मेला भी लगता है। गांव के लोगों की मानें तो कई साल तक पत्थर का नाग उसी स्थान पर खड़ा रहा। इसके बाद धीरे- धीरे जमीन में धंसता गया। अंग्रेजों ने इसे यहां से ले जाने की कई बार कोशिश की। महीनों तक इसकी खुदाई हुई, मगर पत्थर के नाग को बाहर नहीं निकाला जा सका। नाग को उठाने के लिए सैनिक और मशीनों का सहारा भी लिया गया। मगर नाग को नहीं उठा सके।

वाराणसी
नागकूप में दर्शन के लिए उमड़ी भीड़

वाराणसी के जैतपुरा स्थित नागकूप में दर्शन करने से कालसर्प योग से मुक्ति मिलती है। शुक्रवार की सुबह से ही मंदिर और नागकुंड में भक्तों की भीड़ उमड़ी है। कई भक्त नागकुंड में पुण्य की डुबकी भी लगा रहे हैं। मंदिर सुबह की आरती के बाद भक्तों के दर्शन के लिए खोल दिया गया था। दर्शन करने का क्रम देर रात तक जारी रहेगा। इसके अलावा नागपंचमी पर कोरोना के कारण इस बार लगातार दूसरे साल ऑनलाइन शास्त्रार्थ होगा। इस शास्त्रार्थ में देश भर के वेदांत और न्याय दर्शन के विद्वान व छात्र शामिल होंगे।

ज्योतिषाचार्य पं. ऋषि द्विवेदी ने बताया कि पंचमी तिथि 12 अगस्त की दोपहर 3:34 बजे से शुरू हो गई थी। पंचमी 13 अगस्त की दोपहर 1:46 बजे तक रहेगी। ( फोटो : नागकूप मंदिर)

ज्योतिषाचार्य पं. ऋषि द्विवेदी ने बताया कि पंचमी तिथि 12 अगस्त की दोपहर 3:34 बजे से शुरू हो गई थी। पंचमी 13 अगस्त की दोपहर 1:46 बजे तक रहेगी। ( फोटो : नागकूप मंदिर)

ज्योतिषाचार्य पं. ऋषि द्विवेदी ने बताया कि पंचमी तिथि 12 अगस्त की दोपहर 3:34 बजे से शुरू हो गई थी। पंचमी 13 अगस्त की दोपहर 1:46 बजे तक रहेगी। इस बार नागपंचमी पर अमृत योग और नंदा सिद्ध योग का संयोग बन रहा है, जो अपने आप में बेहद खास है। जिस किसी की भी कुंडली में कालसर्प दोष हो उसके लिए इस दिन सांप पूजन का विशेष महत्व है।

ज्योतिषाचार्य पं. ऋषि द्विवेदी ने बताया कि पंचमी तिथि 12 अगस्त की दोपहर 3:34 बजे से शुरू हो गई थी। पंचमी 13 अगस्त की दोपहर 1:46 बजे तक रहेगी। इस बार नागपंचमी पर अमृत योग और नंदा सिद्ध योग का संयोग बन रहा है, जो अपने आप में बेहद खास है। जिस किसी की भी कुंडली में कालसर्प दोष हो उसके लिए इस दिन सांप पूजन का विशेष महत्व है।

अपने घर के दरवाजे पर गोबर के सांप बनाकर उनकी पूजा कुशा, अक्षत, दही, फूल, दूर्वा, गंधक, मालपुआ और मोदक से करने के साथ ही ब्राह्मणों को भोजन करा कर व्रत रखने से घर में सांपों के आने की आशंका नहीं रहती है। नागपंचमी पर सांपों की पूजा से कालसर्प दोष से भी मुक्ति मिलती है। (फोटो : काशी विश्वनाथ मंदिर)

अपने घर के दरवाजे पर गोबर के सांप बनाकर उनकी पूजा कुशा, अक्षत, दही, फूल, दूर्वा, गंधक, मालपुआ और मोदक से करने के साथ ही ब्राह्मणों को भोजन करा कर व्रत रखने से घर में सांपों के आने की आशंका नहीं रहती है। नागपंचमी पर सांपों की पूजा से कालसर्प दोष से भी मुक्ति मिलती है। (फोटो : काशी विश्वनाथ मंदिर)

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