हरिद्वार के संतों की मांग-हिंदू संदर्भों से उर्दू शब्द हटाएं: शाही-पेशवाई जैसे शब्द मुगल सल्तनत की याद दिलाते हैं

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हरिद्वार52 मिनट पहले

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अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद अध्यक्ष महंत रवींद्र पुरी ने गुरुवार को हरिद्वार में प्रेस कॉन्फ्रेंस की। (फाइल)

हरिद्वार के संत समाज ने गुरुवार (5 सितंबर) को हिंदू धार्मिक संदर्भों से उर्दू शब्दों को हिंदी और संस्कृत के शब्दों से बदलने की मांग रखी। संतों ने कहा- शाही और पेश्वाई जैसे उर्दू शब्द मुगल सल्तनत की याद दिलाते हैं।

कुंभ में होने वाले स्नान को भी शाही स्नान कहा जाता है। यह शब्द भारतीय संस्कृति की परंपरा में नहीं है। जल्द ही अलग-अलग अखाड़ों से मीटिंग की जाएगी, जिसमें इन शब्दों को हटाने के प्रस्ताव पर जोर दिया जाएगा।

अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष रविंद्र पुरी महाराज ने कहा- यह प्रस्ताव उन सभी शहरों के प्रशासन को भेजा जाएगा जहां कुंभ मेला या इसी तरह के धार्मिक आयोजन होते हैं।

प्रयागराज में पूर्ण कुम्भ मेला 13 जनवरी 2025 से शुरू होगा। वहीं, उज्जैन में कुम्भ 2028 में होना है। कुम्भ के स्नान से शाही शब्द हटाने की शुरुआत प्रयागराज से कर सकते हैं।

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शाही और पेशवाई जैसे शब्द गुलामी के प्रतीक हैं। मुगल शासक इन शब्दों को अपना गौरव दिखाने के लिए इस्तेमाल करते थे। हमारी हिंदी भाषा की उत्पत्ति प्राचीन भारतीय सनातन संस्कृति की भाषा संस्कृत से हुई है। संस्कृत में शाही जैसा कोई शब्द नहीं है। – अखाड़ा परिषद अध्यक्ष महंत रवींद्र पुरी

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शाही शब्द एक इस्लामिक शब्द है। मुगल आक्रांताओं के द्वारा प्रेषित है। सनातन धर्म में ऐसे किसी भी शब्द का प्रयोग नहीं होना चाहिए। भारत को इस्लामिक शब्द हटाना, क्योंकि ये गुलामी के प्रतीक हैं। – अह्वान अखाड़ा के महामंडलेश्वर अतुलेशानंद जी महाराज

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हमें हमारे मूल स्वरूप में लौटना होगा। मध्य प्रदेश सरकार ने अच्छा निर्णय लिया कि शाही की जगह राजसी सवारी कहा। कुंभ मेले में होने वाले स्नान का नाम भी अमृत स्नान, दिव्य स्नान जैसा कोई नाम होना चाहिए। – जूना अखाड़ा के महामंडलेश्वर शैलेशानंद जी महाराज

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