सुप्रीम कोर्ट ने कहा- आर्टिकल-21 संविधान की आत्मा: इससे जुड़े मामले पर हाईकोर्ट का जल्दी फैसला न सुनाना व्यक्ति को अधिकार से वंचित करेगा

नई दिल्ली48 मिनट पहले

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सुप्रीम कोर्ट ने एक व्यक्ति की जमानत को लेकर बॉम्बे हाईकोर्ट को नसीहत देते हुए फटकार लगाई। शीर्ष कोर्ट ने कहा कि आर्टिकल-21 (जीवन की स्वतंत्रता) संविधान की आत्मा है। इससे संबंधित मामलों पर हाईकोर्ट का जल्दी फैसला न सुनाना या फिर टालना किसी व्यक्ति को इस बहुमूल्य अधिकार से वंचित कर देगा।

जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस संदीप मेहता की बेंच के मुताबिक, बॉम्बे हाईकोर्ट ने मर्डर के मुख्य आरोपी अमोल विट्ठल वाहिले को तब जमानत दी, जब हमने 29 जनवरी को इस मामले में दखलअंदाजी की। वाहिले, महाराष्ट्र के कॉर्पोरेटर के मर्डर में मुख्य आरोपी है।

सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने ये भी कहा
ऐसे कई मामले हैं, जिनमें जज योग्यता के आधार पर फैसला न लेकर अन्य किसी आधार पर फैसला लटकाए रखते हैं। हमारा बॉम्बे हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस से निवेदन है कि वे हमारी बात अन्य जजों तक भी पहुंचाएं। सभी जज आपराधिक क्षेत्राधिकार का इस्तेमाल करते हुए जमानत/अग्रिम जमानत से संबंधित मामले पर जल्द निर्णय लें।

सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद ही हाईकोर्ट ने जमानत दी
29 जनवरी को सुप्रीम कोर्ट ने पाया कि 30 मार्च 2023 को हाईकोर्ट ने अमोल वाहिले से रेग्युलर बेल के लिए ट्रायल कोर्ट जाने को कहा था। जबकि वाहिले ने बताया था कि वह 7 साल से ज्यादा वक्त जेल में गुजार चुका है।

जिस समय सिंगल बेंच ने आदेश पारित किया था, उस समय वाहिले साढ़े सात साल तक जेल में बंद रहा था। अब तक वह 8 साल से ज्यादा की हिरासत भुगत चुका है। हाईकोर्ट को याचिकाकर्ता को मुकदमेबाजी के एक और दौर से गुजरने की बजाय मामले को गुण-दोष के आधार पर तय करना चाहिए था।

2015 में मर्डर हुआ था
अमोल वाहिले, पिंपरी-चिंचवाड़ के कॉर्पोरेटर अविनाश टेकवाड़े के मर्डर का मुख्य आरोपी है। पुलिस ने दावा किया था कि वाहिले की टेकवाड़े से व्यावसायिक दुश्मनी थी। वाहिले ने कुछ लोगों के साथ मिलकर 3 सितंबर 2015 को टेकवाड़े का मर्डर कर दिया। 4 सितंबर को उसे गिरफ्तार कर लिया गया था।

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