सीजेआई को न्यायिक क्षेत्र के बुनियादी ढांचे पर असंताेष: बोलें- यह एक मानसिकता है कि अदालतें जर्जर इमारतों में चलती हैं

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  • न्यायिक क्षेत्र के बुनियादी ढांचे से नाखुश सीजेआई ने कहा- यह मानसिकता है कि जर्जर भवनों में अदालतें चलती हैं, सुनियोजित ढंग से नहीं हो रहा निर्माण

मुंबई11 घंटे पहले

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सीजेआई ने यह भी कहा कि देश में 26% अदालताें में महिलाओं और 16% अदालतों में पुरुषों के लिए शौचालय नहीं हैं। - Dainik Bhaskar

सीजेआई ने यह भी कहा कि देश में 26% अदालताें में महिलाओं और 16% अदालतों में पुरुषों के लिए शौचालय नहीं हैं।

सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश एनवी रमना (सीजेआई) ने शनिवार काे कहा कि न्यायिक आधारभूत ढांचे में सुधार महत्वपूर्ण है। न्याय तक पहुंच में सुधार के लिए यह बहुत आवश्यक भी है। लेकिन अफसाेस की बात है कि देश में इसकाे लेकर तदर्थ रवैया है। अनियाेजित तरीके से सुधार हाे रहा है। यह मानसिकता बन गई है कि अदालतें जर्जर इमारताें में ही चलती हैं। इससे काम करना कठिन हाे जाता है।

सीजेआई ने बॉम्बे हाईकोर्ट की औरंगाबाद बेंच के उपभवन के उद्घाटन के मौके पर अदालतों के इंफ्रास्ट्रक्चर पर सवाल खड़े किए। उन्होंने कहा, ‘बुनियादी ढांचे में सुधार के लिए राष्ट्रीय न्यायिक इंफ्रास्ट्रक्चर प्राधिकरण की स्थापना होनी चाहिए। इसका प्रस्ताव कानून मंत्रालय को भेजा गया है। मैं कानून मंत्री से आग्रह करता हूं कि संसद के आगामी सत्र में इस मुद्दे को उठाकर प्रस्ताव में तेजी लाई जाए।’ कार्यक्रम में केंद्रीय कानून मंत्री किरण रिजिजू मौजूद थे।

26% अदालतों में महिलाओं के लिए शौचालय नहीं

सीजेआई ने कहा कि देश में 26% अदालताें में महिलाओं और 16% अदालतों में पुरुषों के लिए शौचालय नहीं हैं। देश के 46% कोर्ट परिसरों में शुद्ध पीने के पानी की व्यवस्था नहीं है। केवल 5% अदालत परिसराें में मेडिकल सुविधा है। लगभग 50% न्यायालय परिसरों में पुस्तकालय नहीं है। न्यायिक अधिकारियाें के स्वीकृत पद 24,280 हैं जबकि उनके लिए उपलब्ध हाॅल 20,143 हैं।

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