साझा डिक्लेरेशन भारत की कूटनीतिक जीत: रात तक यूक्रेन मुद्दे पर नहीं बन सकी थी सहमति, PM मोदी ने पर्सनल इक्वेशन का इस्तेमाल किया

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नई दिल्ली18 मिनट पहलेलेखक: अभिनंदन मिश्रा

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तस्वीर में PM नरेंद्र मोदी के साथ वर्ल्ड बैंक के अध्यक्ष अजय बंगा, ब्राजील के राष्ट्रपति लूला डा सिल्वा, अफ्रीका के राष्ट्रपति सिरिल रामफोसा और अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन दिखाई दे रहे हैं।

भारत शनिवार को एक महत्वपूर्ण कूटनीतिक जीत दर्ज करते हुए, सभी सदस्य देशों की सहमति के साथ ‘नई दिल्ली लीडर्स समिट डिक्लेरेशन’ स्वीकार कराने में कामयाब हो गया। हालांकि इसके लिए PM मोदी को अपने पर्सनल इक्वेशन का इस्तेमाल करना पड़ा। यूक्रेन के मुद्दे पर सहमति बनाने में भारत को कड़ी मशक्कत करना पड़ी। शुक्रवार रात तक सदस्य देश इस पर सहमत नहीं हो सके थे।

सूत्रों के अनुसार 3 से 6 सितंबर को नूंह (हरियाणा) में हुई G20 शेरपा मीट में सदस्य देशों के शेरपाओं के बीच में यूक्रेन युद्ध को लेकर काफी गर्मा-गर्मी हो गई थी। उसके बाद भारत के अधिकारियों ने दिल्ली वापस आकर यूक्रेन युद्ध पर एक नया पैराग्राफ बनाया, जिस पर सदस्य देशों की राय ली गई।

भारत ने अपनी तरफ से यह दलील दी की यूक्रेन युद्ध को ही सिर्फ एक मुद्दे के रूप में नहीं देखना चाहिए क्योंकि इसके कारण और महत्वपूर्ण मुद्दों पर भी सहमति नहीं बन पा रही है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने समिट के दूसरे सत्र को संबोधित करते हुए दिल्ली डिक्लरेशन के बारे में जानकारी दी।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने समिट के दूसरे सत्र को संबोधित करते हुए दिल्ली डिक्लरेशन के बारे में जानकारी दी।

शुक्रवार रात तक खेमों में बंटे हुए थे देश
शनिवार को विभिन्न देशों के प्रतिनिधि सुबह 10.30 से 1.30 बजे तक ‘वन अर्थ ‘ के तहत मिले और उन्हें दिए गए 5 मिनट के समय में अपनी बात रखी। दोपहर 3.30 बजे यह खबर आई की नई दिल्ली डिक्लरेशन, जिसमें 83 पैराग्राफ हैं, को सभी देशों ने अपनी सहमति दे दी है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भारत मंडप में शिखर सम्मेलन के दूसरे सत्र को संबोधित करते हुए इसकी जानकारी दी ।

आधिकारिक सूत्रों ने भास्कर को बताया की शुक्रवार रात तक सदस्य देश एक सर्वसम्मत घोषणा पर तैयार नहीं हो पाए थे और ऐसा लग रहा था की एक साझा डिक्लरेशन के आने की संभावना कम है। सूत्रों के अनुसार यूक्रेन में हो रहे युद्ध को लेकर सदस्य देश दो खेमे में बंटे हुए थे। इसके एक तरफ अमेरिका और उसके सहयोगी देश थे और दूसरी तरफ रूस और चीन थे।

मोदी ने समझाया G20 एक इकॉनॉमिक फोरम है
सूत्रों के अनुसार बात बनती न देख, PM मोदी और भारत के अधिकारियों ने बाकी देशों को यह समझाया की G20 एक इकॉनॉमिक फोरम है न की भू-राजनीतिक मुद्दों को सुलझाने का फोरम। यूक्रेन युद्ध को ही G20 का इकलौता मसौदा नहीं बनना चाहिए । इस बात का समर्थन ब्राजील, साउथ अफ्रीका और इंडोनेशिया ने भी किया जिसके बाद अन्य राष्ट्र एक साझा डिक्लेरेशन के लिए तैयार हुए। बाद में इस बात की पुष्टि विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने भी की।

सूत्रों के अनुसार PM मोदी ने शनिवार को कई बार जटिल मुद्दों को सुलझाने के लिए अन्य देशों के नेताओं से अपने व्यक्तिगत इक्वैशन का इस्तेमाल किया। इसके कारण बात धीरे धीरे आगे एक सहमति की तरफ बढ़ती रही।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इटली की प्रधानमंत्री जियोर्जिया मेलोनी के साथ द्विपक्षीय मुलाकात की।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इटली की प्रधानमंत्री जियोर्जिया मेलोनी के साथ द्विपक्षीय मुलाकात की।

मोदी ने जापान, इटली जर्मनी के नेताओं से अकेले में बात की
शनिवार दोपहर को, 1.30 बजे के बाद, मोदी ने ब्रिटेन, जापान , इटली और जर्मनी के नेताओं से अकेले में बात की।

विदेश मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने भास्कर को बताया की यूक्रेन युद्ध के काले बादल नई दिल्ली में हो रहे G20 समिट पर उलटा असर डाल रहे थे। शुक्रवार शाम तक भारत खेमे में एक मायूसी का माहौल था। कल रात तक 38 पन्नों के ड्राफ्ट डिक्लेरेशन पर भी सहमति नहीं बन पाई थी।

G20 समिट के आखिरी दिन मेजबान देश की यह कोशिश रहती है की एक साझा डिक्लेरेशन पर सभी सदस्य देश सहमति बना लें। अगर सहमति नहीं बन पाती है तो इसे एक नाकामी के रूप में देखा जाता है।

अमेरिका, ब्रिटेन, जर्मनी, इटली, जापान और स्पेन ने रूस को कोसा
सूत्रों के हवाले से मिली जानकारी के अनुसार अमेरिका, ब्रिटेन, जर्मनी, इटली, जापान और स्पेन ने एक स्वर में यूक्रेन पर हमला करने का आरोप रूस पर लगाया और दुनिया अन्न और ऊर्जा उत्पादन की कमी के लिए जिम्मेदार ठहराया।

समिट के दौरान अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन और सऊदी अरब के क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान के साथ प्रधानमंत्री मोदी।

समिट के दौरान अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन और सऊदी अरब के क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान के साथ प्रधानमंत्री मोदी।

किस वर्ल्ड लीडर ने क्या कहा…

ऋषि सुनक- परेशानी का कारण रूस
सबसे ज्यादा आक्रामक ब्रिटेन के प्रधानमंत्री ऋषि सुनक नजर आए। उन्होंने रूस को विश्व में हो रही परेशानी के लिए जिम्मेदार ठहराया और कहा की यूक्रेन को न्याय दिलवाना G20 के लिए सबसे बड़ी जिम्मेदारी है। सुनक ने कहा की रूस के कारण पूरी दुनिया में अनाज की कीमतें बढ़ रही हैं। जिससे करोड़ों लोगों को परेशानी हो रही है। सुनक ने रूस पर अनाज भंडारों को नष्ट करने का भी आरोप लगाया।

जो बाइडेन- रूस ने अस्पतालों, मैदानों, गोदामों पर बमबारी की
अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने कहा की रूस-यूक्रेन युद्ध आज खत्म होना चाहिए। ​इसके लिए हर G20 मेंबर देश को मिलकर प्रयास करना है।
बाइडेन ने अन्न की कमी, गरीबी और जलवायु के मुद्दे को उठाया और कहा की यह मुद्दे रूस के हमले के कारण और बिगड़ गए हैं। उन्होंने रूस पर यूक्रेन के अस्पतालों, खेल मैदानों और अनाज के भंडारों पर बमबारी करने का आरोप लगाया। बाइडेन ने कहा- रूस चाहे तो आज जंग खत्म हो सकती है।

ओलाफ स्कोल्ज- रूस यूक्रेन से सैनिक नहीं हटाता तब तक बात नहीं
जर्मनी के चांसलर ओलाफ स्कोल्ज ने भी अमेरिका और ब्रिटेन की बात का समर्थन करते हुए कहा की G20 में तब तक कोई दूसरी बात नहीं हो सकती जब तक कि रूस यूक्रेन से अपने सैनिक नहीं हटाता है। इटली ने भी रूस पर यूक्रेन पर हमले का आरोप लगाया और अपने सैनिक वापस बुलाने की मांग की।

ब्रिटिश प्रधानमंत्री ऋषि सुनक के गले मिलते प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी।

ब्रिटिश प्रधानमंत्री ऋषि सुनक के गले मिलते प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी।

किसीदा बोले- रूस का परमाणु हमले की धमकी देना गलत
जापान के प्रधानमंत्री फ्यूमियो किसीदा ने कहा कि रूस के कारण ग्लोबल इकॉनॉमी पर बुरा प्रभाव पड़ रहा है और जी 20 सदस्यों को इसका संज्ञान लेते हुए रूस पर अपने सैनिकों को वापस बुलाने का दबाव बनाना चाहिए। जापान ने रूस के यूक्रेन के खिलाफ परमाणु बम इस्तेमाल करने की धमकी की भी आलोचना की।

सर्गेई लावरोव- यूक्रेन ने रूस के साथ ट्रीटी तोड़ी
रूस के विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव ने अपनी बारी आने पर बाकी देशों की आलोचना को बेबुनियाद बताया और कहा की यूक्रेन ने रूस के साथ अपनी ट्रीटी (संधि) को तोड़ा जिसके कारण आज यह माहौल बना है। लावरोव के अनुसार, इस काम में यूक्रेन को काफी सारे G20 सदस्य देशों से मदद मिली।

डिक्लरेशन में रूस की आलोचना नहीं
सूत्र ने बताया कि 83 पैराग्राफ वाले डिक्लरेशन में रूस की कहीं पर भी आलोचना नहीं हुई है। साझा डिक्लेरेशन​​​​​ में सब मुद्दों पर बात की है। यूक्रेन युद्ध पर भी एक पूरा पन्ना है। हमारा ऑब्जेक्टिव था की सब मुद्दों पर बात हो, सबकी बात सुनी जाए और सदस्य देश एक दूसरे से खुलकर बात करें। इसी ऑब्जेक्टिव के तहत हमने काम किया और जिसका नतीजा यह निकला की सारे देश एक कन्सेंसस पर आ गए।

हमने डिक्लरेशन में भी सब बातें लिखी हैं। विचारों में मतभेद थे पर फिर भी सदस्य देश एक साझा डिक्लरेशन पर सहमत हो गए क्योंकि किसी भी मुद्दे को भारत की तरफ से अनदेखा नहीं किया गया।