सरकारी अफसरों को बार-बार कोर्ट में बुलाना संविधान के खिलाफ: SC ने अदालतों के लिए SOP जारी की, कहा- अधिकारियों का अपमान करने से बचें

दिल्ली23 मिनट पहले

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सुप्रीम कोर्ट ने अदालतों को कहा- सरकारी अधिकारियों को बार-बार कोर्ट में बुलाने से परहेज करें।

सुप्रीम कोर्ट ने सरकारी अधिकारियों को अदालत में बुलाने को लेकर दिशा-निर्देश जारी किए हैं। SC ने कहा- न्यायिक प्रक्रिया के दौरान सरकारी अफसरों को मनमाने ढंग से कोर्ट में बुलाना संविधान की भावना के विपरीत है। बहुत जरूरी होने पर ही अधिकारी को कोर्ट में पेश होने को कहें।

CJI डी वाई चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की पीठ ने सरकारी अधिकारियों को कोर्ट में बुलाने को लेकर मानक संचालन प्रक्रिया (SOP) तैयार की है जिसका पालन सभी जजों को करना होगा। SOP में इस बात पर जोर दिया गया है कि वे अफसरों को अपमानित करने से बचें। उनकी शैक्षणिक पृष्ठभूमि, पहनावे और सामाजिक स्थिति पर टिप्पणी से परहेज करें।

हलफनामा से काम चल जाए तो व्यक्तिगत रूप से ना बुलाया जाए
SOP में कहा गया है कि सभी जज सरकारी अधिकारियों को तलब करते समय सावधानी बरतें और मौखिक टिप्पणी करने से भी बचें, जिससे संबंधित अधिकारी अपमानित महसूस करे। अधिकारियों को केवल इसलिए नहीं बुलाया जा सकता क्योंकि हलफनामा में अधिकारी का रुख अदालत के रुख से अलग है।

यदि संबंधित मुद्दे को हलफनामा या अन्य दस्तावेजों के माध्यम से हल किया जा सकता है तो अधिकारियों की उपस्थिति जरूरी नहीं होनी चाहिए। सरकार का प्रतिनिधित्व करने वाले अधिकारी और सरकार के हलफनामा की दलीलों पर भरोसा करने के बजाय सरकारी अधिकारियों को लगातार बुलाना संविधान की भावना के खिलाफ है।

विशेष परिस्थितियों में ही अधिकारी को कोर्ट में बुलाया जाना चाहिए
SOP के मुताबिक, सरकारी अधिकारियों को तलब करने की शक्ति का इस्तेमाल सरकार पर दबाव बनाने के लिए नहीं किया जाना चाहिए। अगर मामले में सरकार का पक्ष है तो खास परिस्थितियों में ही बुलाना चाहिए।

अदालत में बुलाने से पहले कारण बताओ नोटिस भेजना होगा
साथ ही अदालतों को पहले विकल्प के तौर पर वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से अधिकारी को पेश होने के लिए कहना चाहिए। अधिकारी को व्यक्तिगत तौर पर अदालत में बुलाने के पीछे एक कारण बताओ नोटिस भेजना होगा। वहीं सुनवाई के दौरान सरकारी अधिकारियों को खड़े होने की आवश्यकता नहीं है। केवल जज को जवाब देते समय ही खड़े होने का आदेश होना चाहिए।

अवमानना कार्यवाही शुरू करने पर बरतें सावधानी
SOP में कहा गया है कि अदालत को अवमानना कार्यवाही शुरू करते समय सावधानी और संयम बरतना चाहिए। एक विवेकपूर्ण और निष्पक्ष प्रक्रिया सुनिश्चित करनी चाहिए। इसके लिए अदालतों को पहले संबंधित अधिकारी से स्पष्टीकरण मांगना चाहिए और आरोप की गंभीरता के आधार पर व्यक्तिगत उपस्थिति को निर्देशित देना चाहिए। इसमें कहा गया है कि अवमानना मामलों में वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए पेश होने का विकल्प भी उपलब्ध होगा।

इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश पर जारी किए निर्देश
दरअसल, सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के एक आदेश को रद्द करते हुए निर्देश जारी किए, जिसमें यूपी सरकार के दो वित्त सचिव को हिरासत में लेने का आदेश दिया गया था। दरअसल, हाईकोर्ट ने रिटायर्ड जजों के भत्तों के भुगतान को लेकर अपने निर्देशों का पालन न करने पर दो अधिकारियों को हिरासत में लेने का निर्देश दिया था।

हालांकि SC ने दोनों सचिवों को हिरासत में लेने के बाद रिहा करने का आदेश दिया था। सुनवाई के दौरान केंद्र की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल (SG) तुषार मेहता और उत्तर प्रदेश के लिए एडिशनल सॉलिसिटर जनरल (ASG) केएम नटराज ने अधिकारियों को बार-बार अदालत में बुलाने से निपटने के लिए एक SOP का अनुरोध किया था।

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सुप्रीम कोर्ट चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़।

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