महिलाएं शाम 5 बजे के बाद न जाएं थाने!: एक पुलिसकर्मी पर 660 लोगों का जिम्मा, 5.31 लाख पद खाली, जानें पुलिस में महिलाओं की स्थिति

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नई दिल्ली17 मिनट पहलेलेखक: दीप्ति मिश्रा

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देश में महिला सुरक्षा और उनकी बढ़ती ताकत को लेकर कई दावे हो रहे हैं। हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी सेना और पुलिस में महिलाओं की बढ़ती संख्या पर बात की। हालांकि कुछ रोज पहले ही भाजपा की वरिष्ठ नेता बेबी रानी मौर्य के एक बयान ने तहलका मचा दिया। उन्होंने महिलाओं से कहा कि वे शाम 5 बजे के बाद पुलिस थाना न जाएं। महिला नेता का ये बयान कहीं न कहीं महिला असुरक्षा को दिखा रहा है। तो क्या मुसीबत घड़ी के कांटे देखकर आती है! या फिर महिला थानों की संख्या पर्याप्त हो तो महिलाएं ज्यादा सेफ रहेंगी? पढ़िए, वुमन भास्कर की पड़ताल।

क्या शाम 6 बजे के बाद महिलाओं को थाने बुलाया जा सकता है?
महिलाएं दो ही स्थिति में थाने जाती हैं- पहली अपनी शिकायत लेकर या फिर किसी मामले में बयान रिकॉर्ड करने के लिए बुलाया जाता है। छत्तीसगढ़ के कबीरधाम जिले में तैनात एडिशनल एसपी मनीषा ठाकुर रावते कहती हैं कि बयान रिकॉर्ड करने के लिए शाम 6 बजे के बाद बहुत जरूरी मामलों में ही महिलाओं को बुलाया जाता है। महिला की गिरफ्तारी या स्टेटमेंट महिला पुलिसकर्मी ही लेती हैं। इसके अलावा, बाकी थानों में भी रात में एक-दो महिला पुलिसकर्मियों की ड्यूटी रहती ही है ताकि महिलाओं से जुड़ा मामला देखा जा सके।

क्या थानों की कमी है?
मनीषा ठाकुर रावते कहती हैं कि राज्य में थानों की संख्या अपराध दर के हिसाब से तय होती है। जहां ज्यादा क्राइम होता है, वहां थाने पास-पास होते हैं और पुलिसकर्मियों की संख्या भी ज्यादा होती है। वहीं नोएडा महिला थाने की ACP अंकिता शर्मा बताती हैं कि हर जिला में एक महिला थाना होता है ताकि जो महिलाएं सामान्य थानों में जाने से हिचकती हैं, वे वहां जाकर अपनी शिकायत दर्ज करवा सकें। महिला थानों में भी महिला पुलिसकर्मियों की कुल संख्या क्राइम रेट को देखकर ही तय की जाती है।

ACP अंकिता शर्मा बताती हैं कि जैसे हर थाने में महिला पुलिसकर्मी होती हैं, वैसे ही महिला थानों में पुरुष पुलिसकर्मी भी होते हैं। हां, महिला थाने में काउंसिलिंग सिर्फ महिला पुलिसकर्मी ही करती हैं। एसीपी अंकिता ने बताया कि मिशन शक्ति के तहत हर थाने में ‘महिला एवं बाल सहायता कक्ष’ बनाया गया है, जिसमें 24 घंटे महिला पुलिसकर्मियों की ड्यूटी रहती है। महिलाएं वहां जाकर अपनी ​शिकायत दर्ज करवा सकती हैं, जिसे बाद में महिला थाने भेज दिया जाता है।

इन मामलों में पुलिस लेती है तत्काल एक्शन
राजस्थान की राजधानी जयपुर में निर्भया स्कॉट सेल का जिम्मा संभाल रहीं एडीशनल डीसीपी सुनीता मीणा बताती हैं कि लड़कियों और महिलाओं से जुड़े मामलों पर तत्काल एक्शन लिया जाता है। इसके अलावा बच्चों से जुड़े- सेक्सुअल हैरेसमेंट, मोबाइल या सोशल मीडिया सेक्सुअल एक्टिविटीज, स्टॉकिंग जैसे मामलों पर भी तुरंत एक्शन लिया जाता है।

हर साल लाखों महिलाएं होती हैं हिंसा की शिकार
देश में साल दर साल महिलाओं के खिलाफ अपराध बढ़ता ही जा रहा है। नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो की रिपोर्ट के मुताबिक, देश में साल 2020 में महिलाओं के खिलाफ 3 लाख 71 हजार 503 मामले दर्ज किए गए। हालांकि, राहत की बात यह है कि 2019 की तुलना में 2020 में मामलों में 8.3% की कमी आई है। साल 2019 में 4 लाख 5 हजार 326 मामले दर्ज किए गए थे।

सोर्स: एनसीआरबी, 2020

सोर्स: एनसीआरबी, 2020

दोगुनी हुई महिला पुलिसकर्मियों की संख्या
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 24 अक्तूबर को मन की बात कार्यक्रम में कहा, पहले धारणा थी कि सेना या पुलिस सेवा केवल पुरुषों के लिए होती है, लेकिन अब ऐसा नहीं है। आंकड़े बताते हैं कि पिछले कुछ साल में महिला पुलिसकर्मियों की संख्या दो-गुनी हो चुकी है। साल 2014 में जहां महिला पुलिसकर्मियों की संख्या 1.05 लाख के करीब थी। यह 2020 में बढ़कर दोगुनी से ज्यादा हो गई।

पुलिस अनुसंधान एवं विकास ब्यूरो (BPRD) के 2020 के आंकड़ों के मुताबिक, देश में कुल 20 लाख 91 हजार 488 पुलिसकर्मी हैं। इनमें से 2 लाख 15 हजार 504 महिला पुलिसकर्मी हैं। वहीं 5.31 लाख से अधिक पद खाली पड़े हैं।

महिलाओं के लिए ये राज्य हैं सबसे ज्यादा असुरक्षित

राज्य 2018, कुल केस 2019, कुल केस 2020, कुल केस
उत्तर प्रदेश 59,445 59,853 49,385
पश्चिम बंगाल 30,394 29,859 36,439
राजस्थान 27,866 41,550 34,535
महाराष्ट्र 35,497 37,144 31,954
असम 27,687 30,025 26,352
मध्य प्रदेश 28,942 27,560 25,640

केंद्रशासित राज्य, जहां सुरक्षित नहीं महिलाएं

राज्य 2018, कुल केस 2019, कुल केस 2020, कुल केस
दिल्ली 13,640 13,395 10,093
जम्मू-कश्मीर 3437 3069 3405

कितनी महिलाएं लेती हैं केस वापस?
साल 2020 में राष्ट्रीय और राज्य महिला आयोग में कुल 29,500 महिलाओं ने शिकायत की, लेकिन इनमें से सिर्फ 872 मामलों में ही एफआईआर दर्ज हुई। एडिशनल एसपी मनीषा ठाकुर रावते बताती हैं कि ज्यादातर महिलाएं घरेलू झगड़ों की शिकायत लेकर आयोग पहुंच जाती हैं, लेकिन जब काउंसिलिंग कराई जाती है तो वे अपने परिवार के पास वापस लौट जाती हैं। इनमें से जिन महिलाओं के साथ सीरियस प्राब्लम होती है, उनकी एफआईआर दर्ज की जाती है।
एडिशनल एसपी मनीषा का कहना है कि ​एफआईआर वापस लेने वाली महिलाओं की संख्या ना के बराबर होती है। जो महिलाएं एफआईआर वापस लेती हैं, उन मामलों की कड़ी निगरानी की जाती है कि कहीं किसी दबाव में आकर तो यह कदम नहीं उठा रही हैं!

एक लाख की आबादी पर औसतन 156 पुलिसकर्मी
दुनिया के दूसरे सबसे अधिक जनसंख्या वाले देश भारत में हर एक लाख की आबादी पर औसतन 156 पुलिसकर्मी हैं। यानी कि देश में एक पुलिसकर्मी पर 660 लोगों की सुरक्षा का भार है। बता दें कि राष्ट्रीय स्तर पर पुलिसकर्मियों की तय संख्या प्रति लाख लोगों पर 195 है यानी कि सरकार ने 1 पुलिसकर्मी को 512 लोगों की सुरक्षा की जिम्मेदारी सौंपी है। इंडिया जस्टिस रिपोर्ट के मुताबिक, राष्ट्रीय स्तर पर हर 3 पुलिस अधिकारी में 1 पद खाली है। वहीं जबकि कॉन्स्टेबल स्तर पर हर 5 में से 1 पद खाली है।

क्राइम रेट ज्यादा, लेकिन पुलिसकर्मी कम
कई राज्यों में हालात बेहद खराब है। बिहार में सिर्फ 76 पुलिसकर्मियों पर एक लाख लोगों की सुरक्षा का जिम्मा है। यूपी में 133, महाराष्ट्र में 174, पश्चिम बंगाल में 1080, राजस्थान में 122, असम में 207 और मध्य प्रदेश में 120 पुलिसकर्मियों पर एक लाख लोगों की सुरक्षा की जिम्मेदारी है। इन सभी राज्यों के पुलिस विभाग में बड़ी संख्या में पद खाली पड़े हैं।

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