भास्कर ओपिनियन- लोकसभा चुनाव: सीट शेयरिंग पर फ़िलहाल विपक्ष का एक होना कठिन

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16 मिनट पहलेलेखक: नवनीत गुर्जर, नेशनल एडिटर, दैनिक भास्कर

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लोकसभा चुनाव के लिए विपक्ष की सीट शेयरिंग वार्ता सिरे नहीं चढ़ पा रही है। दरअसल, कांग्रेस एक के बाद एक निर्णयों में पिछड़ती जा रही है। निश्चित ही सीट शेयरिंग की बातचीत सीनियर लीडरशिप के बीच ही होनी चाहिए।

शुक्रवार को तृणमूल कांग्रेस के साथ इस बारे में मीटिंग थी। कांग्रेस ने बातचीत के लिए पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत, भूपेश बघेल, कांग्रेस नेता अजय माकन और मुकुल वासनिक को भेजा था। तृणमूल के लोगों ने इन नेताओं से बात करने से इनकार कर दिया और कहा कि आपकी सीनियर लीडरशिप से कह दीजिए कि वे ममता जी से बात कर लें। कुल मिलाकर बातचीत हो ही नहीं पाई।

इसी तरह बिहार में राष्ट्रीय जनता दल अड़ा हुआ है। उत्तर प्रदेश में अखिलेश यादव बिफरे हुए हैं। बात कहीं भी बन नहीं पा रही है। दरअसल, पश्चिम बंगाल हो, बिहार हो या उत्तर प्रदेश, कांग्रेस का जनाधार इन प्रदेशों में अब ज़्यादा नहीं है। जबकि हो यह रहा होगा कि कांग्रेस ज़्यादा से ज़्यादा सीटें माँग रही होगी, क्षेत्रीय पार्टियाँ इस तरह का कोई ख़तरा उठाना नहीं चाहेंगी।

कांग्रेस का ज़्यादा सीटें माँगना उसके हिसाब से ठीक होगा क्योंकि ज़्यादा से ज़्यादा सीटों पर चुनाव लड़कर वह समूचे विपक्ष की कमान अपने पास रखना चाह रही होगी। बड़ी और देशव्यापी राजनीतिक पार्टी होने के नाते यह ठीक भी है लेकिन कांग्रेस के अपने गणित के कारण क्षेत्रीय पार्टियां अपना वर्चस्व क्यों कम करना चाहेंगी भला?

वास्तविकता में विपक्ष सत्ता पक्ष के खिलाफ एक तो हो जाता है। एक दिखने भी लगता है लेकिन जब सीटों के बँटवारे की बात सामने आती है तो मामला बिखर जाता है। इस मामले में एकमत हुए बिना सत्ता पक्ष के खिलाफ एक शामिल प्रत्याशी उतारना बड़ा कठिन प्रतीत होता है। तमाम पार्टियों के अपने हित हैं। कम से कम क्षेत्रीय पार्टियां अपने ही राज्य या क्षेत्र में कमजोर होना क़तई गवारा नहीं करेंगी।

विपक्षी गठबंधन की मुंबई में हुई मीटिंग में 28 राजनैतिक दलों के नेताओं ने हिस्सा लिया था।

विपक्षी गठबंधन की मुंबई में हुई मीटिंग में 28 राजनैतिक दलों के नेताओं ने हिस्सा लिया था।

कांग्रेस की दिक़्क़त यह है कि उसके पास ऐसा कोई चमत्कारिक नेतृत्व नहीं रह गया है जिसके पीछे तमाम पार्टियाँ चुनावी वैतरणी पार कर जाएँ या जिसकी एक आवाज़ पर सभी राजनीतिक दल साथ आ जाएँ। इस मामले में दोनों ही पक्षों को थोड़ा- थोड़ा झुकना पड़ेगा। जब तक यह नहीं होगा, सीटों को लेकर समझौता होना टेढ़ी खीर है।

फिर सत्ता पक्ष की कोई कमजोरी फ़िलहाल तो विपक्ष के पास नहीं है जिसे पकड़ कर हल्ला मचाया जाए। उल्टे अयोध्या और राम मंदिर के कारण सत्ता पक्ष मज़बूत होता जा रहा है। उसके जनाधार का विस्तार निश्चित माना जा रहा है।