भास्कर ओपिनियन- नया कानून: सीएए कानून में आखिर क्या है, इसे लागू करने का विरोध क्यों

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13 मिनट पहलेलेखक: नवनीत गुर्जर, नेशनल एडिटर, दैनिक भास्कर

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सीएए। सिटीजन अमेंडमेंट एक्ट। नागरिकता संशोधन क़ानून। कई बार टाले जाने के बाद एक बार फिर आवाज़ उठ रही है इसे लागू करने की। कहा जा रहा है कि जनवरी महीने में ही इसे लागू कर दिया जाएगा। लेकिन इससे क्या होगा? क्यों अब तक बार-बार इसे टाला जाता रहा है?

दरअसल इस कानून में बांग्लादेश, अफ़ग़ानिस्तान और पाकिस्तान से आए उन गैर मुस्लिमों को भारत की नागरिकता दिए जाने का प्रावधान है जो वर्षों से यहाँ रह रहे हैं। ग़ैर मुस्लिमों यानी हिंदुओं को। दरअसल, ये लोग उन देशों में अल्पसंख्यक हैं। जाने किस त्रास या संकट में उन्हें उन देशों को छोड़ कर आना पड़ा। यहाँ के नागरिक न होते हुए भी दिक़्क़तों, मुसीबतों को गले लगाकर यहाँ जीवन बिताना पड़ रहा है। इसलिए इन सबको नागरिकता देकर यहाँ यानी भारत में सम्मान दिए जाने की गरज से यह क़ानून लाया जा रहा है।

अब सवाल उठता है कि यह क़ानून इतना ही पुनीत और पुण्यकर्म के रूप में सामने आने वाला है तो अब तक इसे टाला क्यों जाता रहा? इसका विरोध क्यों किया जा रहा है? या विरोध कर कौन रहा है? दरअसल, पूर्वोत्तर के राज्य इसका विरोध इसलिए कर रहे हैं क्योंकि उनका तर्क है कि इन बाहर के लोगों को नागरिकता देने से उनके राज्य में भीड़ बढ़ जाएगी और उनकी परंपराएँ, संस्कृति और तमाम रीति- रिवाजों पर बड़ा फ़र्क़ पड़ेगा। वे सब बिखर जाएँगे। जहां तक विपक्ष के विरोध का सवाल है उसका कहना है कि इस क़ानून में मुस्लिमों को वंचित क्यों रखा गया? यह समानता के क़ानून का मज़ाक़ उड़ाने की तरह है। सरकार का कहना है कि जिन देशों के शरणार्थियों को नागरिकता देने का प्रावधान किया जा रहा है, वहाँ मुस्लिम अल्प संख्यक नहीं, बल्कि बहुसंख्यक हैं। इसलिए उन्हें इस देश में यानी भारत में नागरिकता देने का कोई मतलब नहीं है। वो उनके देश हैं, वे वहाँ ख़ुशी से रहें। भारत सरकार वंचितों की मदद करना चाहती है, इसलिए

इन तीनों देशों के वे ग़ैर मुस्लिम नागरिक जो वर्षों पहले यहाँ आ गए थे उन्हें सम्मान दिया जा रहा है। इसमें ग़लत क्या है? लेकिन अब विपक्ष के इस विरोध में ज़्यादा दम नहीं रहा। यही वजह है कि जल्द ही इस क़ानून को लागू करने की क़वायद की जा रही है। हो सकता है इसी महीने।