बीकानेरी भुजिया जो बन गया ग्लोबल ब्रांड: लोकल कारीगरों ने 150 साल पहले किया था प्रयोग, आज 4 हजार करोड़ से ज्यादा है सालाना बिजनेस

बीकानेर10 घंटे पहलेलेखक: अनुराग हर्ष

बीकानेरी भुजिया की रेसिपी का सीक्रेट सिर्फ इतना सा है कि इसे बीकानेर के क्लाइमेट में ही बनाना पड़ता है।

पश्चिमी राजस्थान में बसा बीकानेर वैसे तो अपनी परंपराओं के लिए जाना जाता है, लेकिन इस शहर को एक बड़ी पहचान दी है ‘बीकानेरी भुजिया’ ने। चाय के साथ नमकीन की बात होती है तो सबसे पहले नाम आता है बीकानेरी भुजिया का। तीखे और चटपटे स्वाद के कारण आज बीकानेरी भुजिया लोगों की थाली का हिस्सा बन गई है।

भुजिया खाने वालों की दीवानगी का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि हर साल चार हजार करोड़ रुपए से अधिक का व्यवसाय अकेले बीकानेर से होता है। खास बात ये है कि बीकानेरी भुजिया की रेसिपी का सीक्रेट सिर्फ इतना सा है कि इसे बीकानेर के क्लाइमेट में ही बनाना पड़ता है। यहां का पानी और ड्राइ क्लाइमेट ही इसे अलग स्वाद देता है।

भुजिया का इतिहास
नमकीन खाने का शौक राजस्थान के मारवाड़ में हमेशा से रहा है। इसी नमकीन को बनाते-बनाते बीकानेर के कुछ कारीगरों ने बेसन के साथ कई तरह के मसाले मिलाकर भुजिया बनाई। प्रयोग के तौर पर ये भुजिया सबसे पहले परकोटे में बनी नमकीन की दुकानों पर तैयार हुई। लोगों के मुंह में इसका स्वाद चढ़ा तो धीरे-धीरे भुजिया में डाले जाने वाले मसालों की मात्रा तय की गई। इसके बाद कारीगरों ने कई तरह के प्रयोग के किए भुजिया बनाना शुरू कर दिया।

लोकल कारीगर भुजिया बनाते थे, लेकिन हल्दीराम अग्रवाल का परिवार और यहां के कई कारोबारी इसे दूसरे शहरों और राज्यों तक लेकर गए।

बीकानेरी भुजिया को पहचान देने वाले हल्दीराम अग्रवाल थे। उन्होंने ही सबसे पहले दुकान स्थापित की। उनके बेटे मूलचंद अग्रवाल ने इसी कारोबार को संभाला। बाद में मूलचंद अग्रवाल के चारों बेटों ने बीकानेरी भुजिया को देश और दुनिया तक पहुंचा दिया। उनके तीन बेटे शिव किसन अग्रवाल, मनोहर लाल अग्रवाल और मधु अग्रवाल ने हल्दीराम नाम से भुजिया का ब्रांड स्थापित किया तो वहीं चौथे बेटे शिवरतन अग्रवाल ने बीकानेर से ही अलग भुजिया कंपनी बीकाजी की स्थापना की।

1877 में महाराजा डूंगर सिंह के शासनकाल में ही भुजिया बनना शुरू हुई। बताते हैं वे खुद भी भुजिया पसंद करते थे। उनके शासनकाल में ही बीकानेरी भुजिया को पहचान मिली।

1877 में महाराजा डूंगर सिंह के शासनकाल में ही भुजिया बनना शुरू हुई। बताते हैं वे खुद भी भुजिया पसंद करते थे। उनके शासनकाल में ही बीकानेरी भुजिया को पहचान मिली।

बताया जाता है कि करीब डेढ़ सौ साल पहले वर्ष 1877 में जब बीकानेर की राजगद्दी पर महाराजा डूंगर सिंह बैठे थे तो इस भुजिया को विशेष तरजीह मिली। उन्होंने इस भुजिया को सबसे पहले बाजार का हिस्सा बनाने का प्रयास किया। इसी कारण भुजिया के एक प्रकार का नाम ही ‘डूंगर’ रख दिया गया। राजपरिवार की सदस्य और वर्तमान में विधायक सिद्धि कुमारी का कहना है कि हमारे पूर्वजों को यह आभास था कि बीकानेर का यह फूड प्रोडक्ट शहर की दशा और दिशा बदल सकता है। आज इस भुजिया से सैकड़ों परिवारों को रोजगार मिला है तो राज्य की इकोनॉमी का सहारा भी है।

क्यों है इतनी स्वादिष्ट
बहुत बार अन्य जगहों पर भी बीकानेरी भुजिया बनाने की कोशिश हुई, लेकिन ऐसा जायका नहीं बन पाया। एक्सपर्ट की मानें तो बीकानेर के ग्राउंड वाटर और यहां के क्लाइमेट के कारण ही ये स्वादिष्ट बनती है। आमतौर पर भुजिया सिर्फ बेसन से बनती है, लेकिन बीकानेर में मोठ की दाल मिलाई जाती है। यहां के कारीगर मसालों की क्वांटिटी में बैलेंस रखते हैं। यही वजह है कि ये ज्यादा क्रिस्पी बनती है।

डिमांड ज्यादा होने के कारण कई फैक्ट्रियों में भले ही मशीन से इसका प्रोडक्शन हो रहा है, लेकिन बीकानेर में सैकड़ों कारीगर आज भी पुराने तरीके से ही इसे बनाते हैं।

डिमांड ज्यादा होने के कारण कई फैक्ट्रियों में भले ही मशीन से इसका प्रोडक्शन हो रहा है, लेकिन बीकानेर में सैकड़ों कारीगर आज भी पुराने तरीके से ही इसे बनाते हैं।

खौलते तेल में चलते हैं कारीगर के हाथ
जिस बीकानेरी भुजिया को देश और दुनिया में पहचान मिली वो आज भी पुराने तरीके से बनाई जाती है। आग उगलती भट्टी और उस पर खौलते तेल से चंद सेंटीमीटर दूरी पर कारीगर के हाथ ऐसे बेखौफ चलते हैं, मानों नीचे तेल नहीं बल्कि पानी उबल रहा है। लोहे की जाली (झाला) पर मसाला मिले बेसन के मिश्रण को डाला जाता है। हाथों से रगड़कर इसे जाली से नीचे किया जाता है, जहां से वो सीधे खौलते हुए तेल में पहुंच जाता है। एक निश्चित समय तक तलकर इस भुजिया को कढ़ाई से बाहर निकाला जाता है।

मशीन से भी बनने लगी है भुजिया
दुनियाभर में हर साल करीब आठ हजार करोड़ रुपए का व्यापार होता है। जानकारों की मानें तो अकेले बीकानेर से चार हजार करोड़ रुपए के भुजिया का व्यापार होता है। यही कारण है कि अब भट्‌टी पर बनने वाले भुजिया देश और दुनिया की डिमांड पूरी नहीं कर पा रही है। ऐसे में प्रोडक्शन बढ़ाने के लिए मशीनों का सहारा भी लिया जाने लगा है। मशीनों से बनने वाले भुजिया की क्वालिटी भी वैसी ही रखी जाती है।

बीकानेर की वो गली जहां आज भी मार्केट में स्थापित ब्रांड की वो पुरानी दुकानें मौजूद हैं। यहां बैठकर कभी भुजिया बेची जाती थी।

बीकानेर की वो गली जहां आज भी मार्केट में स्थापित ब्रांड की वो पुरानी दुकानें मौजूद हैं। यहां बैठकर कभी भुजिया बेची जाती थी।

तीन-तीन पीढ़ियों से भुजिया बनाने का काम
भुजिया कारीगर खुमाराम गोदारा का कहना है कि उनके दादा और फिर उसके पिता भी भुजिया बनाने का ही काम करते थे। पिछले सौ साल से उनका परिवार भुजिया बनाने का ही काम कर रहा है। कभी महीने की कमाई दो-तीन सौ रुपए होती थी, लेकिन आज एक दिन की मजदूरी पंद्रह सौ से दो हजार रुपए से ज्यादा है। एक अन्य कारीगर मोहन राजपुरोहित बताते हैं कि एक कारीगर हर रोज करीब ढाई सौ किलो भुजिया बनाता है।

प्रमुख बाजार में नमकीन की दुकानों के बाहर खोमचे में सजी बीकानेरी भुजिया।

प्रमुख बाजार में नमकीन की दुकानों के बाहर खोमचे में सजी बीकानेरी भुजिया।

सैकड़ों परिवारों को रोजगार
बीकानेर में सैकड़ों परिवारों का गुजारा भुजिया बनाने से ही हो रहा है। न सिर्फ भुजिया बल्कि बीकानेरी पापड़ और बड़ी का व्यापार भी लगातार बढ़ रहा है। यहां के कारीगरों को अब बीकानेर से बाहर भी काम मिल रहा है। आज कोलकाता, बेंगलुरु, मुंबई सहित अनेक हिन्दी भाषी महानगरों में भुजिया बनाने के लिए कारीगर जा रहे हैं।

इन देशों में निर्यात होती है भुजिया
बीकानेरी भुजिया को सबसे ज्यादा गल्फ देशों में पसंद किया जाता है। इसके अलावा अमेरिका, जर्मनी, स्पेन, फ्रांस, रूस, ऑस्ट्रेलिया, नेपाल, न्यूजीलैंड, कनाडा, कतर, युनाइटेड अरब अमीरात, बहरीन, नार्वे में भी पहुंच रहा है। इसके अलावा भी अनेक देशों में बीकानेरी भुजिया पहुंच रही है।

ये है बीकानेर के प्रमुख ब्रांड
देश और दुनिया में बीकानेरी भुजिया पहुंचाने का सबसे बड़ा श्रेय बीकाजी ग्रुप को है। दरअसल, हल्दीराम अग्रवाल ने ही सबसे पहले बीकानेरी भुजिया को देश में पहचान दिलाई। वो खुद भुजिया की दुकान चलाते थे और आज उनके परिवार के दो बड़े उत्पाद दुनियाभर में पहुंच रहे हैं। इसमें एक हल्दीराम नाम से और दूसरा बीकाजी नाम से है। इसके अलावा भीखाराम चांदमल, बिशनलाल-बाबूलाल, छोटू मोटू, सागरमल सहित दर्जन ब्रांड देशभर के अधिकांश राज्यों में पहुंच रहे हैं। दक्षिण में रहने वाले राजस्थानियों के लिए भी भुजिया यहां से जा रहा हे। हल्दीराम भुजिया का उत्पादन बीकानेर से बाहर हो रहा है, जिसका बाजार भी दुनियाभर में फैला हुआ है। हल्दीराम भी मूल रूप से बीकानेर का ब्रांड है।

पूर्व उपराष्ट्रपति भैरोंसिंह शेखावत भी बीकानेरी भुजिया के शौकीन थे। जब भी उनका दौरा होता, उनकी थाली में भुजिया जरूर होती थी।

पूर्व उपराष्ट्रपति भैरोंसिंह शेखावत भी बीकानेरी भुजिया के शौकीन थे। जब भी उनका दौरा होता, उनकी थाली में भुजिया जरूर होती थी।

भुजिया के शौकीन थे शेखावत, अमिताभ बच्चन कर रहे विज्ञापन
देश के पूर्व उपराष्ट्रपति भैरों सिंह शेखावत बीकानेरी भुजिया के बड़े शौकीन थे। वो जब भी बीकानेर आते तब अपने भोजन की थाली में भुजिया जरूर लेते थे। इतना ही नहीं बीकानेर के नेता भी उनसे मिलने जाते तो उनसे भुजिया मंगवाते। बीकानेरी भुजिया बीकाजी का विज्ञापन इन दिनों अभिनेता अमिताभ बच्चन कर रहे हैं।

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