बहस: इंडिया अर्थात भारत या भारत अर्थात इंडिया या सिर्फ भारत

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3 घंटे पहले

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बहुत सी आवाज़ें हैं। यहाँ से। वहाँ से। लगता है किसी ने सीने पर अलाव जला दिया है। कानों में सीसा घोल दिया है। फिर भी ये आवाज़ें बंद नहीं होतीं। दहाड़ें मार- मारकर कानों तक आती हैं। कोई समाधान नहीं आता। न सीने तक। न कानों तलक।

फ़िलहाल देशभर में गूंज रहा है – भारत बनाम इंडिया। भारत प्राचीन नाम है और इंडिया अंग्रेजों का दिया हुआ। दरअसल, सिंधु नदी का नाम भारत आए विदेशियों ने इंडस रखा। सिंधु घाटी सभ्यता के कारण भारत का नाम सिंधु भी था। जिसे यूनानी में इंडो कहा जाता था। जब यह शब्द लैटिन भाषा में पहुँचा तो बदलकर इंडिया हो गया। अंग्रेज जब भारत आए तो हमारे देश को हिंदुस्तान कहा जाता था। सिंधू के स को जो ह कहते थे उन्होंने इसे सिंधु से हिंदु कर दिया और जहां हिंदु रहते थे वो हिंदुस्तान हो गया।

G20 डिनर कार्ड पर President Of India की जगह President Of Bharat लिखा गया है। कार्ड का स्क्रीनशॉट AAP सांसद राघव चड्डा ने सोशल मीडिया पर पोस्ट किया।

G20 डिनर कार्ड पर President Of India की जगह President Of Bharat लिखा गया है। कार्ड का स्क्रीनशॉट AAP सांसद राघव चड्डा ने सोशल मीडिया पर पोस्ट किया।

ख़ैर हिंदुस्तान बोलने में अंग्रेजों को बड़ी परेशानी होती थी, इसलिए उन्होंने इंडस और इंडिया के रूप में एक दिव्य खोज कर डाली। वे हमारे देश को इंडिया कहने लगे। भारत नाम प्राचीन है। पुरु वंश के महाराज दुष्यंत और रानी शकुंतला के पुत्र भरत ने इस देश का पहली बार संपूर्ण विस्तार किया और उनके नाम पर ही देश का नाम भारत पड़ा।

इंडिया और भारत नाम पर बहस इसलिए छिड़ी है क्योंकि जी20 समिट में मेहमानों को राष्ट्रपति द्रोपदी मुर्मू ने रात्रि भोज पर बुलाया है और इसके निमंत्रण पत्र पर प्रेसिडेंट ऑफ़ इंडिया के स्थान पर प्रेसिडेंट ऑफ़ भारत लिखा हुआ है। सवाल यह उठता है कि इंडिया लिखा जाए या भारत या भारत वर्ष, इसमें परेशानी क्या है? वैसे नाम तो कई हैं। कोई सात। जम्बूद्वीप, आर्यावर्त, हिंदुस्तान, हिमवर्ष, अजनाभ वर्ष, भारत और इंडिया भी। जब देश आज़ाद हुआ और संविधान सभा में जब देश का नाम तय करने की बारी आई तब भी ऐसी ही तीखी बहस हुई थी, जैसी आज छिड़ी है।

बात 18 सितंबर 1949 की है। संविधान सभा के अध्यक्ष बाबू राजेंद्र प्रसाद और प्रारूप समिति (ड्राफ़्ट कमेटी) के अध्यक्ष डॉ. भीमराव अंबेडकर की उपस्थिति में सभा के सदस्य हरि विष्णु क़ामत ने बहस शुरू की और देश का नाम भारत या भारत वर्ष रखने का प्रस्ताव आगे बढ़ाया। डॉ. अंबेडकर बीच में बोले। इस पर क़ामत भड़क गए। इस बीच शंकरराव देव, केएम मुंशी और गोपाल स्वामी अय्यंगार ने भी बोलने की कोशिश की लेकिन कामत ने सभी को चुप करा दिया। सदन के अध्यक्ष ने व्यवस्था दी कि यह सिर्फ़ भाषा के बदलाव का मामला है। आसानी से सुलझाना चाहिए। तर्क – वितर्क शुरू हुए। अंबेडकर चाहते थे इस पर जल्द निर्णय लिया जाए लेकिन बहस लम्बी चली। बहस में सेठ गोविंद दास, कमलापति त्रिपाठी, श्रीराम सहाय और हर गोविंद पंत ने भी हिस्सा लिया। सेठ गोविंद दास ने ऐतिहासिक संदर्भों का हवाला देते हुए देश का नाम भारत या भारत वर्ष रखने पर ज़ोर दिया।

कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने कहा कि संविधान में अनुच्छेद 1 के मुताबिक, INDIA जिसे भारत कहते हैं वह राज्यों का एक संघ होगा, लेकिन अब इस राज्यों के संघ पर भी हमला हो रहा है।

कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने कहा कि संविधान में अनुच्छेद 1 के मुताबिक, INDIA जिसे भारत कहते हैं वह राज्यों का एक संघ होगा, लेकिन अब इस राज्यों के संघ पर भी हमला हो रहा है।

कमलापति त्रिपाठी ने बीच का रास्ता निकाला और कहा फ़िलहाल देश का नाम इंडिया अर्थात् भारत (इंडिया देट इज भारत) है। ऐतिहासिकता को देखते हुए इसे बदलकर भारत अर्थात इंडिया कर देना चाहिए। दक्षिण भारत और ग़ैर हिंदी भाषी सदस्यों ने इस पर कड़ी आपत्ति जताई। आख़िर वोटिंग करानी पड़ी। दूसरे नामों के तमाम प्रस्ताव गिर गए और “इंडिया अर्थात् भारत राज्यों का संघ” नामकरण सदन से पारित हो गया। देश के इसी नाम का संविधान के अनुच्छेद-1 में उल्लेख है।

विपक्षी दलों ने अपने गठबंधन का नाम I.N.D.I.A रखा है।

विपक्षी दलों ने अपने गठबंधन का नाम I.N.D.I.A रखा है।

आज़ादी के वक्त की इस बहस का वर्तमान में छिड़ी बहस से बहुत ज़्यादा ताल्लुक़ नहीं है। लगता है अभी तो यह बहस इसलिए छिड़ी हुई है क्योंकि विपक्षी दलों ने अपने नए गठबंधन का नाम इंडिया रख लिया है। आज़ादी के वक्त की बहस बोलने की सुविधा और भाषा की मर्यादा पर ज़्यादा टिकी थी जबकि अभी जो बहस हो रही है व राजनीतिक ज़्यादा है। पिछले दिनों संघ प्रमुख मोहन भागवत ने भी देश का नाम इंडिया की बजाय भारत रखने का सुझाव दिया था। अगर हम प्राचीन नाम पर ही जाना चाहते हैं तो जाएँ, यह अच्छी बात है। इसमें किसी को कोई आपत्ति नहीं हो सकती लेकिन दस साल से आप सत्ता में हैं, यह ख्याल पहले क्यों नहीं आया? तभी सारी प्राचीनता क्यों सामने आ गई जब विपक्षी गठबंधन का नाम इंडिया के रूप में सामने आ गया? जहां तक आम आदमी का सवाल है उसके लिए देश आख़िर देश है।

नाम जो भी हो, देश उसके ख़्यालों में वैसे ही रहता है जैसे सुबह की नाज़ुक धूप गिरती है दरिया के पानी पर। जैसे चाँद सिर उठाता है और हर तरफ़ चाँदनी फैल जाती है। जैसे हल्की सुस्त- सी हवा, शाख़- शाख़ पौधों को जगाती है। अगर ये पूरी बहस राजनीतिक है तो नेताओं! माफ़ कीजिए, आपके और हमारे बीच ये आसमाँ बिन बादलों के ही रहने दो, यही काफ़ी है। हमें और कुछ नहीं चाहिेए। आम आदमी की इन नेताओं से, चाहे वो पक्ष के हों या विपक्ष के, यही इल्तिजा है कि राजनीति की चढ़ती दुपहरी में आप हमें पत्थर समझकर हथौड़ों से तोड़ो और कूटो मत। ऐसे ही रहने दो, जैसे हम हैं।