प्रधानमंत्री अब क्या 6 साल के लिए बनेंगे: एकसाथ चुनाव के लिए संविधान में 5 संशोधन जरूरी, कानून मंत्री ने बताया पूरा प्लान

जयपुर6 घंटे पहलेलेखक: गोवर्धन चौधरी

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क्या लोकसभा का कार्यकाल 5 साल से बढ़ाकर 6 साल किया जाएगा? देश में एकसाथ चुनाव करवाने के लिए केंद्रीय कानून मंत्रालय ने संविधान में ऐसे ही 5 जरूरी संशोधन बताए हैं।

राज्यसभा सांसद किरोड़ीलाल मीणा को दिए लिखित जवाब में मंत्रालय ने कहा है कि ये संशोधन लोकसभा और राज्यों की विधानसभा का कार्यकाल बढ़ाने, सत्र बुलाने और राष्ट्रपति शासन से जुड़े हैं। साथ ही एकसाथ चुनाव करवाने में तीन बड़ी बाधाएं भी बताई हैं।

संविधान में ये जरूरी संशोधन कौन-से हो सकते हैं और क्यों इनकी जरूरत पड़ेगी, साथ ही वो तीन बाधाएं क्या हैं, आइए जानते हैं इस स्पेशल रिपोर्ट में…

‘वन नेशन-वन इलेक्शन’ पर पहले से थी तैयारी
केंद्र सरकार ने ‘वन नेशन-वन इलेक्शन’ का मामला विधि आयोग के पास पहले से ही परीक्षण के लिए भेज रखा था। कानून राज्य मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने किरोड़ी के पूछे गए सवाल के लिखित जवाब में बताया कि संसदीय समिति ने अपनी 79वीं रिपोर्ट में इस संबंध में कुछ सिफारिशें दी हैं।

एकसाथ चुनाव के लिए व्यावहारिक रोड मैप और रूपरेखा तैयार करने के लिए अब इन सिफारिशों को आगे की जांच के लिए विधि आयोग के पास भेजा गया है।

कानून एवं न्याय मंत्री अर्जुन राम मेघवाल बीकानेर से सांसद हैं।

कानून एवं न्याय मंत्री अर्जुन राम मेघवाल बीकानेर से सांसद हैं।

‘वन नेशन-वन इलेक्शन’ के लिए पांच संविधान संशोधन करने होंगे
केंद्रीय कानून मंत्री ने सवाल के जवाब में कहा कि लोकसभा और विधानसभा चुनाव एकसाथ करवाने के लिए कम से कम पांच तरह के संविधान संशोधन करने होंगे। ये बदलाव संविधान के आर्टिकल नंबर 83, 85,172,174 और 356 में होंगे।

1. संविधान का आर्टिकल 83: आपात हालात को छोड़ लोकसभा का कार्यकाल पांच साल से आगे नहीं बढ़ सकता
संविधान के आर्टिकल 83 में लोकसभा और राज्यसभा के कार्यकाल का प्रावधान है। लोकसभा का कार्यकाल पांच साल होता है। इस आर्टिकल में प्रावधान है कि लोकसभा यदि पहले से भंग नहीं कर दी जाती है तो पांच साल तक बनी रहेगी। इमरजेंसी के हालात में संसद के कानून से लोकसभा की इस अवधि को एक साल के लिए एक बार में बढ़ाया जा सकेगा। दूसरी बार में इसे छह महीने से ज्यादा नहीं बढ़ाया जा सकेगा।

एक्सपर्ट कमेंट: इस आर्टिकल में संशोधन कर कोई ऐसा प्रावधान जोड़ा जा सकता है, जिससे लोकसभा के कार्यकाल को विधानसभा चुनाव के अनुसार बढ़ाया जा सके। इससे राज्यों के चुनावों की तारीख लोकसभा चुनाव के साथ एडजस्ट करने में कोई परेशानी भी नहीं होगी।

FILE PHOTO : किरोड़ी लाल मीणा भाजपा के राज्यसभा सांसद हैं। उनके सवाल के जवाब में कानून मंत्रालय ने बताया कि एकसाथ चुनाव के लिए कौन-से संशोधन करने होंगे।

FILE PHOTO : किरोड़ी लाल मीणा भाजपा के राज्यसभा सांसद हैं। उनके सवाल के जवाब में कानून मंत्रालय ने बताया कि एकसाथ चुनाव के लिए कौन-से संशोधन करने होंगे।

2. संविधान का आर्टिकल 85: छह महीने में संसद सत्र बुलाने की अनिवार्यता
संविधान के आर्टिकल 85 में संसद का सत्र बुलाने और इसके विघटन को लेकर प्रावधान किए गए हैं। आर्टिकल 85 के अनुसार राष्ट्रपति समय-समय पर संसद के हर सदन को बुलाएगा, लेकिन उसके एक सत्र के बीच में 6 महीने या इससे ज्यादा का अंतर नहीं होगा। मतलब हर 6 महीने की अवधि में एक बार संसद सत्र बुलाना अनिवार्य होगा।

एक्सपर्ट कमेंट: ऐसा प्रावधान जोड़ा जा सकता है, जिसमें इमरजेंसी के अलावा भी सदन बुलाने की 6 महीने की अनिवार्यता में रिलैक्सेशन मिल सके। ताकि चुनावी समय में संसद सत्र बुलाए जाने की कोई बाध्यता नहीं रहे।

3. संविधान का आर्टिकल 172: विधानसभाओं के कार्यकाल का प्रावधान, इमरजेंसी में दो बार बढ़ा सकते हैं कार्यकाल
संविधान का आर्टिकल 172 राज्यों की विधानसभाओं के कार्यकाल को लेकर है। इस आर्टिकल के अनुसार राज्य की हर विधानसभा अपनी पहली बैठक की तारीख से लेकर पांच साल की अवधि तक बनी रहेगी। पांच साल की अवधि खत्म होने के बाद ही विधानसभा भंग मानी जाएगी।

केवल आपातकालीन हालात में विधानसभा का कार्यकाल बढ़ाया जा सकेगा जो एक बार में एक साल से ज्यादा नहीं होगा। दूसरी बार में उसकी अवधि को 6 महीने से ज्यादा के लिए एक्सटेंड नहीं किया जा सकेगा।

एक्सपर्ट कमेंट: अभी तक इस आर्टिकल के मुताबिक देश में इमरजेंसी की स्थिति में ही राज्यों की विधानसभाओं का कार्यकाल बढ़ सकता है। एकसाथ चुनाव के लिए यह जरूरी है कि इस प्रावधान में कुछ छूट मिले। जिससे कार्यकाल बढ़ाकर/घटाकर एकसाथ चुनाव करवाए जा सकें।

केंद्रीय कानून मंत्रालय ने 27 जुलाई को लिखित में यह जवाब राज्यसभा सांसद किरोड़ीलाल मीणा को दिया था।

केंद्रीय कानून मंत्रालय ने 27 जुलाई को लिखित में यह जवाब राज्यसभा सांसद किरोड़ीलाल मीणा को दिया था।

4. आर्टिकल 174 : हर छह महीने में विधानसभा सत्र बुलाने का प्रावधान
संविधान के आर्टिकल 174 के अनुसार विधानसभाओं के सत्र बुलाने और सत्रावसान करने का प्रावधान है। राज्यपाल समय-समय पर राज्य की विधानसभा का सत्र बुलाने की मंजूरी दे सकेगा। विधानसभा के एक सत्र की अंतिम बैठक और अगले सत्र की पहली बैठक के बीच में 6 महीने से ज्यादा का अंतराल नहीं होगा। हर छह महीने में विधानसभा की बैठक बुलाना अनिवार्य है। राज्यपाल विधानसभा सत्र का सत्रावसान कर सकेंगे।

एक्सपर्ट कमेंट : इस आर्टिकल में संशोधन कर इमरजेंसी हालात के अलावा विशेष परिस्थितियों में नया प्रावधान जोड़ा जा सकता है जिससे हर 6 महीने में विधानसभा सत्र बुलाने की अनिवार्यता में थोड़ा रिलैक्सेशन मिले।

5. आर्टिकल 356 : राष्ट्रपति शासन लगाने का प्रावधान
आर्टिकल 356 सबसे ज्यादा विवादित रहा है। राज्यों में राष्ट्रपति शासन लगाने का प्रावधान किया गया है। आर्टिकल 356 के अनुसार राष्ट्रपति किसी राज्य के राज्यपाल से रिपोर्ट मिलने पर राष्ट्रपति शासन लगा सकेंगे। राष्ट्रपति को राज्यपाल से अगर इस बारे में रिपोर्ट मिलती है कि राज्य में ऐसे विकट हालत पैदा हो गए, जिसमें संविधान के प्रावधानों के अनुसार शासन नहीं चलाया जा सकता, तो वहां राष्ट्रपति शासन लगाया जा सकता है। इस आर्टिकल में कई बार संशोधन भी हुए हैं।

एक्सपर्ट कमेंट : इस आर्टिकल में नया प्रावधान जोड़ा जा सकता है जिसके मुताबिक राष्ट्रपति शासन के मौजूदा प्रावधानों को और व्यापक बनाया जा सकता है।

पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद कई मौकों पर 'वन नेशन-वन इलेक्शन' पर सहमति जता चुके हैं। अब उन्हीं की अध्यक्षता में कमेटी गठित की गई है।

पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद कई मौकों पर ‘वन नेशन-वन इलेक्शन’ पर सहमति जता चुके हैं। अब उन्हीं की अध्यक्षता में कमेटी गठित की गई है।

कानून राज्य मंत्री का जवाब : बार-बार आचार संहिता लगाने से प्रभावित होते हैं विकास के काम
कानून राज्य मंत्री ने सवाल के जवाब में कहा – एकसाथ चुनावों से सरकारी खजाने में भारी बचत होगी। बार-बार चुनाव कराने में प्रशासनिक व्यवस्थाओं और कानून व्यवस्था के लिए सिस्टम पर बोझ आता है, उसकी बचत होगी। राजनीतिक दलों और उम्मीदवारों को उनके चुनाव अभियानों में काफी बचत होगी।

अलग-अलग समय चुनाव होने के कारण आदर्श आचार संहिता लंबे समय तक लागू रहती है। बार-बार आचार संहिता लगने से विकास योजनाओं और जनकल्याण कार्यक्रमों की स्पीड पर बुरा असर पड़ता है। विकास के काम रुक जाते हैं। हालांकि एकसाथ चुनाव कराने में तीन बड़ी बाधाएं भी हैं…

1. राज्यों की सहमति लेनी होगी
कानून मंत्री ने जवाब में यह भी कहा कि लोकसभा और विधानसभाओं के एकसाथ चुनाव करवाने के लिए सभी राजनीतिक दलों की सहमति लेना और हमारी शासन प्रणाली के संघीय ढांचे को ध्यान में रखते हुए, यह जरूरी है कि सभी राज्य सरकारों की सहमति भी प्राप्त की जाए।

राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत का कहना है कि कमेटी गठित करने से पहले केंद्न सरकार ने विपक्ष को विश्वास में नहीं लिया, इनकी नीयत पर शक होता है।

राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत का कहना है कि कमेटी गठित करने से पहले केंद्न सरकार ने विपक्ष को विश्वास में नहीं लिया, इनकी नीयत पर शक होता है।

2. ईवीएम और वीवीपैट पर भारी खर्च होगा
विधानसभा और लोकसभा चुनाव साथ करवाने के लिए बड़ी संख्या में ईवीएम और वीवीपैट की जरूरत होगी। इस पर बहुत बड़ा फंड खर्च होगा जो हजारों करोड़ रुपए हो सकता है। एक ईवीएम 15 साल तक ही चलती है। इसका मतलब है कि एक ईवीएम तीन से चार बार ही काम आएगी। इसे बदलने में हर 15 साल बाद सरकार को हजारों करोड़ का फंड खर्च करना होगा।

3. पोलिंग कर्मचारियों और सुरक्षाबलों की एकसाथ जरूरत
विधानसभा और लोकसभा चुनाव एकसाथ होने से वोटिंग के लिए कर्मचारियों और सुरक्षाबलों की बड़ी तादाद में जरूरत होगी। अभी अलग-अलग चुनाव होने से सुरक्षा बल एक राज्य से दूसरे राज्य में शिफ्ट होते रहते हैं।

साउथ अफ्रीका और स्वीडन में ‘वन नेशन-वन इलेक्शन’
दुनिया के कई ऐसे देश हैं, जहां राष्ट्रीय असेंबली और स्टेट असेंबली के चुनाव साथ-साथ होते हैं। संसद की स्थायी समिति ने अपनी 79वीं रिपोर्ट में विश्व के कई देशों में संसद और राज्यों की असेंबली के चुनाव साथ-साथ होने का विस्तार से जिक्र किया था।

स्वीडन, यूके, इंडोनेशिया जैसे देशों में भी सभी चुनाव एकसाथ होते हैं।

स्वीडन, यूके, इंडोनेशिया जैसे देशों में भी सभी चुनाव एकसाथ होते हैं।

साउथ अफ्रीका में राष्ट्रीय और प्रांतीय विधानसभाओं के चुनाव एकसाथ पांच साल के लिए होते हैं और नगर पालिका के चुनाव दो साल के लिए होते हैं। स्वीडन में नेशनल लेजिस्लेचर (रिक्सडैग) और काउंटी काउंसिल (लैंडस्टिंग) के साथ स्थानीय निकायों/नगर पालिका के चुनाव चार साल के लिए होते हैं। इन सभी चुनावों के लिए स्वीडन में चार साल बाद सितंबर के दूसरे रविवार को चुनाव होते हैं।

विपक्षी दल खिलाफ, गहलोत बोले- केंद्र ने विपक्ष को विश्वास में नहीं लिया
लोकसभा और विधानसभा चुनाव एकसाथ करवाने के प्रस्ताव का अब विपक्षी दल विरोध कर रहे हैं। राजस्थान सीएम अशोक गहलोत ने पिछले दिनों ‘वन नेशन-वन इलेक्शन’ पर कहा था- एक राष्ट्र एक चुनाव पर कमेटी बनने से पहले विपक्ष को साथ लेना चाहिए था। चुनाव आयोग, लॉ कमीशन, पार्लियामेंट्री कमेटी ने पहले कई बार रिकमंडेशन दी है। इतना बड़ा फैसला है।

विपक्षी पार्टियों को साथ लेते तो सब मिलकर फैसला करते। उसके बाद आप कमेटी बनाते तो लोगों को विश्वास होता। अब आपकी नीयत पर शक हो रहा है कि आप लोकतंत्र में इस तरह काम करना चाहोगे कि नहीं चाहोगे। आपकी नीति क्या है? आप स्पष्ट नहीं कर रहे हो। लोग चिंतित हैं कि आप देश को किस दिशा में ले जा रहे हो। किस दिशा में ले जाएंगे। कोई नहीं कह सकता है।

जयपुर में सभा के दौरान दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल ने कहा था कि 'वन नेशन-वन इलेक्शन' नहीं हर तीन महीने में इलेक्शन होने चाहिए।

जयपुर में सभा के दौरान दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल ने कहा था कि ‘वन नेशन-वन इलेक्शन’ नहीं हर तीन महीने में इलेक्शन होने चाहिए।

केजरीवाल ने कहा- ‘वन नेशन 20 इलेक्शन’ होना चाहिए
दिल्ली सीएम और आप संयोज​क अरविंद केजरीवाल ने ‘वन नेशन-वन इलेक्शन’ का खुलकर विरोध किया है। केजरीवाल ने जयपुर में सोमवार को कहा- ‘वन नेशन-वन इलेक्शन’ से हमें क्या मिलेगा? 5 साल में नेता जनता के कब कंट्रोल में आता है, जब चुनाव होता है तो आप समझ गए होंगे यह ‘वन नेशन-वन इलेक्शन’ की बात ही क्यों कर रहे हैं, ताकि 5 साल तक जनता को शक्ल नहीं दिखानी पड़े।

अगर 5 साल में एक बार चुनाव कर दिया तो यही सिलेंडर 5000 में मिलेगा और मोदी जी 5 साल बाद आकर कहेंगे कि ₹200 माफ कर दिए। यह ढाई सौ रुपए किलो जो टमाटर हो रहा है यह 1500 रुपए किलो मिलेगा। कभी मत करना। मेरा तो मानना है कि ‘वन नेशन 20 इलेक्शन’ होना चाहिए। हर तीसरे महीने चुनाव होने चाहिए। नहीं तो यह 5 साल अपनी शक्ल तक नहीं दिखाएंगे।

भास्कर एक्सपर्ट : शांतिलाल चपलोत, संविधान मामलों के विशेषज्ञ एवं पूर्व विधानसभा अध्यक्ष, राजस्थान।

भास्कर एक्सपर्ट : शांतिलाल चपलोत, संविधान मामलों के विशेषज्ञ एवं पूर्व विधानसभा अध्यक्ष, राजस्थान।

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