पंजाब में नशा ऐसे फैला जैसे ‘महामारी’: रोकने के लिए कोरोना जैसी पॉलिसी-एक्शन चाहिए, ‘काडा’ है, मगर कोविड काल से बंद पड़ी स्कीम

प्रवीण पर्व, जालंधर35 मिनट पहले

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पंजाब में नशे का खात्मे करने को 8 सितंबर 2018 को कॉम्प्रिहेंसिव एक्शन अगेंस्ट ड्रग एब्यूज (काडा) प्लान लागू किया गया। सिर्फ तारीखें और साल बदलते रहे। स्थिति बदली नहीं, चिट्टे के हॉटस्पॉट बढ़ रहे हैं।

काडा योजना के तहत तीन स्तर की पॉलिसी व एक्शन प्लान बनाया गया था, पहला- एनफोर्समेंट। दूसरा- नशे के मरीजों का इलाज। तीसरा- मोहल्ले से गांवों में लोगों को नशा तस्करी व इस्तेमाल के विरुद्ध खड़ा करना। लेकिन, इन सब में गैप है।

सबसे जरूरी तीसरा हिस्सा डेपो (ड्रग एब्यूज प्रीवेंशन ऑफिसर्स) प्रोग्राम कोरोना काल में बंद कर दिया गया था, जो बंद ही है। नशा खुद बड़ी सामाजिक संक्रामक बीमारी है, जो सूबे में महामारी बन चुका है। इसमें छोड़ा जा रहा गैप नशे को तेजी से फैला रहा है। 8 सितंबर को काडा प्लान के 5 साल पूरे हो रहे हैं।

गैप भरने, प्लान को और मजबूत और स्फूर्त बनाने की जरूरत है। कोरोनाकाल में जिस तरह हर विभाग हर एजेंसी ने पूरे फोकस से काम किया, सख्ती की समझाया भी, वैसा ही नशा रोकने में भी हो। नशा करने वाले को आइसोलेट करें। मुक्ति केंद्र में भर्ती अनिवार्य की जाए। बेचने वाले का पूरा रिकॉर्ड बने, घर-गांव में तस्कर की फोटो डिटेल चस्पा हो। पुलिस को छापेमारी बढ़ानी होगी।

नशे की सप्लाई चेन पर एनफोर्समेंट कारगर मगर, इसमें भी कमियां हैं
काडा के तहत एनफोर्समेंट पार्ट 50% तक कारगर हुआ। दो बिंदु प्रोग्राम प्रस्तावित किए। जिनके जरिए समाज के बीच से नशे की बिक्री की सूचना ली जा सके। उनके लिए अमरीका की तरह प्रोग्राम चलाना- जब कुछ देखें तो इस बारे में कुछ कहें। दूसरा दिल्ली प्रशासन की तरह आंख और कान स्कीम।

इनके तहत आम लोग नशे के खिलाफ सूचना दें व उनका नाम गुप्त रहे। पुलिस ने हेल्पलाइन 181 शुरू की। एक ड्रग एनोनिमस एप बनानी थी। इसमें लोग तस्करी की सूचना दें और पहचान गुप्त रहे। यह एप नहीं बनी। इसलिए छापे कम ही पड़ते हैं।

दवाओं की निगरानी का ऑनलाइन पोर्टल बनाना था, यह भी अधूरा रहा
दवा फैक्ट्री से रिटेल कैमिस्ट तक हर गोली का हिसाब रखने का ऑनलाइन पोर्टल बनाना था, अधूरा बना है। एनडीपीएस केसों के लिए फास्ट ट्रैक कोर्ट का प्रस्ताव लागू नहीं हुआ। ड्रग पैडलरों (ड्रग एडिक्ट, रिटेलर, माफिया) का डाटा जीआईएस बेस्ड साफ्टवेयर में दर्ज करने का काम नहीं हुआ। सिर्फ पुलिसिंग में क्राइम रिकॉर्ड तक ही काम सीमित रहा। हर जिले में पुलिस व जिला प्रशासन की कमेटियां नहीं बनीं।

ओट (आउटपेशेंट ओपिओइड असिस्टेड ट्रीटमेंट) पर इलाज लेने वालों की बायोमीट्रिक एप बननी थी, जो नहीं बनी। राज्य सरकार के एक्सपर्ट ग्रुप ने नशारोधी ‘काडा’ बनाते वक्त कहा था पंजाब में हेरोइन, सिंथेटिक ड्रग, मेडिकल नशा, अफीम, भांग और शराब की समस्या है। लोग दर्द निवारक डिफेनोक्सिलेट, कोडीन, पेंटाजोसिन, नाइट्राजेपाम इत्यादि खरीद बतौर नशा इस्तेमाल करते हैं। इसलिए स्पेशल एक्शन ग्रुप बना। काडा नशा पकड़ने, जागरूक और इलाज करने पर फोकस करेगी।

…लेकिन यह इलाज तो अधूरा है- नशे के खिलाफ नागरिक कमेटियां नहीं बनीं
काम दो साल से ठप है। जिला, ब्लॉक, शहरी वार्ड व ग्रामीण स्तर पर नागरिकों की कमेटियां बननी थीं। कोरोना आने के बाद प्रोग्राम ढीला पड़ गया। नागरिकों को जोड़ा नहीं गया। मौके पर ही नशीले पाउडर को टेस्ट करने की किटें विकसित करने की योजना अधूरी है।

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