पंजाब की नजर बेअदबी केस में कार्रवाई पर: चन्नी ने पहली PC में बिना नाम लिए कही जल्द न्याय की बात, सिद्धू खेमा करता रहा है अकालियों को जेल में डालने की डिमांड

लुधियाना2 मिनट पहलेलेखक: दिलबाग दानिश

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पंजाब का सबसे बड़ा मुद्दा बेअदबी के दोषियों पर कार्रवाई करने का है। हर पंजाबी की भावनाएं इससे जुड़ी है और लोग चाहते हैं कि साढ़े 6 साल पहले श्रीगुरु ग्रंथ साहिब की बेअदबी करने वालों को सलाखों के पीछे डाला जाए। पंजाब के 17वें CM के रूप में शपथ लेने के बाद चरणजीत चन्नी पहली पत्रकारवार्ता (PC) कर चुके हैं मगर वह इसमें बेअदबी के लिए किसी को सीधे तौर पर दोषी ठहराने से बचते रहे। चन्नी ने इतना ही कहा कि उनकी सरकार के कार्यकाल में सबका इंसाफ होगा और किसी से भी रियायत नहीं की जाएगी। जब बतौर मुख्यमंत्री, चन्नी यह बात कह रहे थे तब नवजोत सिद्धू उनके बगल में बैठे थे। गौरतलब है कि अभी तक सिद्धू और चन्नी बेअदबी के लिए सीधे-सीधे अकाली नेताओं को जिम्मेदार ठहराते रहे हैं। दोनों नेताओं के बदले हुए स्टैंड के बाद अब देखना दिलचस्प रहेगा कि क्या बेअदबी की घटनाओं और कोटकपूरा गोलीकांड की जांच जल्दी पूरी हो पाएगी? और क्या इसकी आंच तत्कालीन सीएम प्रकाश सिंह बादल या डिप्टी सीएम सुखबीर बादल तक भी पहुंचेगी?

अदालत में हैं बेअदबी और गोलीकांड का मुद्दा
1 जून 2015 में कोटकपूरा के गांव बुर्ज जवाहरसिंह वाला के गुरुद्वारे से श्री गुरु ग्रंथ साहिब का वृद्ध स्वरूप चोरी हो गया। 12 अगस्त 2015 को इसी
पावन ग्रंथ के अंग बरगाड़ी गांव के गुरुद्वारे के बाहर बिखरे मिले। इससे सिख संगठन भड़क उठे और कोटकपूरा के मुख्य चौक पर जाम लगा दिया। उसके बाद बहबलकलां गांव के बाहर हाईवे पर भी नाराज संगत ने धरना लगा दिया। 14 अगस्त 2015 को बहबलकलां गांव में धरना दे रहे लोगों को हटाते समय पुलिस की फायरिंग में 2 लोगों की मौत हो गई थी। कोटकपूरा में भी प्रदर्शनकारियों को खदेड़ने के लिए लाठीचार्ज और फायरिंग की गई जिसमें कई लोगों को चोटें आईं। इस घटना के बाद सिख संगठनों और नाराज लोगों ने प्रदेश में कई जगह प्रदर्शन शुरू कर दिए थे। मामले की गंभीरता को भांपते हुए तत्कालीन बादल सरकार ने इन मामलों की जांच सीबीआई को सौंप दी जिसे कैप्टन सरकार ने वापस ले लिया। बीते साढ़े 6 बरसों में पंजाब पुलिस की चार SIT बेअदबी, बहबलकलां और कोटकपूरा गोलीकांड की जांच कर चुकी है। इस समय ये केस अदालत में विचाराधीन हैं।

कैप्टन सरकार ने रणजीत सिंह आयोग की रिपोर्ट के बाद बनाई SIT
2017 के विधानसभा चुनाव के बाद पंजाब में सत्ता संभालने वाली कांग्रेस सरकार ने बेअदबी की घटनाओं की जांच के लिए पहले रिटायर्ड जज रणजीत सिंह की अगुवाई में आयोग बनाया और इस आयोग की रिपोर्ट आने के बाद पंजाब पुलिस की स्पेशल इन्वेस्टिगेशन टीम (SIT) बना दी। आईपीएस अफसर कुंवर विजय प्रताप सिंह की अगुवाई वाली इस SIT ने पंजाब एवं हरियाण हाईकोर्ट में सब्मिट की गई अपनी जांच रिपोर्ट में कुछ अकाली नेताओं की भूमिका संदेहजनक बताई मगर हाईकोर्ट ने न केवल SIT की रिपोर्ट सिरे से खारिज कर दी बल्कि कुंवर विजय प्रताप की मंशा पर भी सवाल उठा दिए। हाईकोर्ट ने इस केस में तत्कालीन सीएम को एक तरह से क्लीन चिट देते हुए पंजाब सरकार को आदेश दिया कि केस की जांच के लिए नई SIT बनाई जाए।
सिद्धू कैंप करता रहा है अकाली नेताओं को गिरफ्तार करने की मांग
नवजोत सिंह सिद्धू, डिप्टी सीएम सुखजिंदर सिंह रंधावा समेत तमाम कांग्रेसी नेता आरोप लगाते रहे हैं कि पंजाब सरकार के तत्कालीन एडवोकेट जनरल (AG) अतुल नंदा के सही तरीके के पैरवी न करने के चलते हाईकोर्ट में SIT की रिपोर्ट खारिज हुई। रंधावा की तो इसे लेकर 27 अप्रैल 2021 को कैबिनेट मीटिंग में ही तत्कालीन CM कैप्टन अमरिंदर सिंह से गर्मागर्मी भी हो गई थी। इस गर्मागर्मी के बाद रंधावा ने कैबिनेट मीटिंग में ही अपना इस्तीफा कैप्टन को सौंप दिया था। कैप्टन पर सिद्धू कैंप आरोप लगाता रहा है कि CM रहते हुए वह अकाली दल के साथ फ्रेंडली मैच खेलते रहे। सिद्धू, चन्नी, रंधावा और उनके खेमे के तमाम नेता बेअदबी केस में अकाली नेताओं को नामजद कर उन्हें गिरफ्तार करने की मांग करते रहे हैं।
अब कैप्टन अमरिंदर सिंह मुख्यमंत्री नहीं हैं और CM की कुर्सी सिद्धू के खासमखास चरणजीत सिंह चन्नी के पास है। ऐसे में देखना दिलचस्प रहेगा कि नई सरकार अब सुप्रीम कोर्ट में हाईकोर्ट के SIT रिपोर्ट खारिज करने के आदेश को किस तरह चुनौती देती है? और सुप्रीम कोर्ट का रुख इस पर क्या रहता है?

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