नरेंद्र दाभोलकर हत्याकांड में दो लोगों को उम्रकैद: मास्टरमाइंड माने जा रहे डॉक्टर तावड़े समेत 3 बरी; पुणे की कोर्ट ने 11 साल बाद फैसला सुनाया

पुणे35 मिनट पहलेलेखक: आशीष राय

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20 अगस्त 2013 को दाभोलकर की पुणे में गोली मारकर हत्या कर दी गई थी।

महाराष्ट्र अंधश्रद्धा निर्मूलन समिति के प्रमुख नरेंद्र दाभोलकर हत्याकांड में 11 साल बाद शुक्रवार (10 मई) को कोर्ट का फैसला आया है। पुणे में CBI की स्पेशल कोर्ट ने आरोपी सचिन अंदुरे और शरद कालस्कर को दोषी करार दिया। कोर्ट ने दोनों को उम्रकैद की सजा सुनाई है।

हत्याकांड का मास्टरमाइंड माने जा रहे डॉक्टर विरेंद्र सिंह तावड़े के अलावा विक्रम भावे और संजीव पुनालेकर को कोर्ट ने बरी कर दिया है। हत्याकांड में कुल 5 आरोपी थे। इनमें तावड़े, अंदुरे और कालस्कर जेल में हैं, जबकि पुनालेकर और भावे जमानत पर बाहर हैं।

20 अगस्त, 2013 को पुणे के महर्षि विट्ठल रामजी ब्रिज पर दाभोलकर की गोली मारकर हत्या कर दी गई। वीरेंद्र तावड़े पर दाभोलकर की हत्या की ​​साजिश रचने का आरोप था। हालांकि, सरकारी पक्ष की ओर से उसके खिलाफ पर्याप्त सबूत पेश नहीं किया जा सका। तावड़े के अलावा अन्य दो आरोपियों के खिलाफ भी आरोप साबित नहीं हो सके।

दाभोलकर के बाद अगले 4 साल में 3 और हत्याएं हुईं
दाभोलकर की हत्या के बाद अगले चार साल में तीन अन्य कार्यकर्ताओं की हत्याएं हुई थीं। फरवरी 2015 में कम्युनिस्ट नेता गोविंद पानसरे और उसी साल अगस्त में कन्नड़ स्कॉलर और लेखक एमएम कलबुर्गी की कोल्हापुर में गोली मारकर हत्या कर दी गई।

इसके बाद सितंबर 2017 में पत्रकार गौरी लंकेश की बेंगलुरु में उनके घर के बाहर गोली मारकर हत्या कर दी गई। CBI को शक था कि दाभोलकर और अन्य तीन हत्याओं में शामिल अपराधी एक-दूसरे से जुड़े हुए थे।

20 अगस्त, 2013 को पुणे के महर्षि विट्ठल रामजी ब्रिज पर मॉर्निंग वॉक के निकले दाभोलकर की गोली मारकर हत्या कर दी गई थी।

20 अगस्त, 2013 को पुणे के महर्षि विट्ठल रामजी ब्रिज पर मॉर्निंग वॉक के निकले दाभोलकर की गोली मारकर हत्या कर दी गई थी।

2016 में दाभोलकर केस में पहली गिरफ्तारी हुई
पुणे पुलिस ने दाभोलकर हत्या मामले की शुरुआती जांच की थी। 2014 में बॉम्बे हाई कोर्ट ने केंद्रीय जांच ब्यूरो (CBI) को जांच करने के आदेश दिए। CBI ने 10 जून, 2016 को मामले में पहली गिरफ्तारी करते हुए ENT सर्जन डॉ वीरेंद्र सिंह तावड़े को पकड़ा था।

तावड़े को 2015 में पानसरे हत्याकांड मामले में भी पहले गिरफ्तार किया गया था। वीरेंद्र तावड़े हिंदू दक्षिणपंथी संगठन सनातन संस्था से जुड़ा था। यह संस्था दाभोलकर के संगठन महाराष्ट्र अंधश्रद्धा निर्मूलन समिति के कामों का विरोध करती थी। CBI ने दावा किया कि तावड़े ने दाभोलकर की हत्या की साजिश रची थी।

2018 में CBI ने दोनों शूटरों को पकड़ा CBI ने 6 सितंबर 2016 को दाखिल अपनी चार्जशीट में सनातन संस्था के दो भगोड़े सदस्यों सारंग अकोलकर और विनय पवार को शूटर बताया। हालांकि, अगस्त 2018 में CBI ने सचिन अंदुरे और शरद कालस्कर को दाभोलकर को गोली मारने के आरोप में गिरफ्तार किया।

इसके कारण CBI की जांच विवादों में आ गई। आरोपियों का पक्ष रख रहे एक वकील वीरेंद्र इचलकरंजीकर ने शूटरों की पहचान को लेकर CBI की जांच में लापरवाही पर सवाल उठाया था।

महाराष्ट्र एटीएस ने साल 2018 में नालासोपारा में छापेमारी के दौरान कालस्कर को हथियारों के साथ गिरफ्तार किया। पूछताछ के दौरान कालस्कर ने अपना अपराध कबूल किया। इसके बाद औरंगाबाद से सचिन अंदुरे की गिरफ्तारी हुई।

CBI ने 13 फरवरी 2019 को कालस्कर और अंदुरे के खिलाफ चार्जशीट दाखिल की। इसमें बताया किया कि ​​​​​​​कालस्कर और अंदुरे ने दाभोलकर को गोली मारी थी। गौरी लंकेश मर्डर केस के मुख्य आरोपी अमोल काले ने अंदुरे को हमले के लिए पिस्तौल और दो-पहिया गाड़ी मुहैया कराई थी।

CBI ने 2019 में दो अन्य आरोपियों को गिरफ्तार किया
जांच एजेंसी ने 26 मई 2019 को सनातन धर्म से जुड़े वकील संजीव पुनालेकर और उसके साथी विक्रम भावे को गिरफ्तार किया। इन दोनों पर साजिशकर्ताओं का साथ देने के आरोप लगे। इस तरह दाभोलकर ​​​​​​​केस में 5 आरोपियों की गिरफ्तारी हुई।

पुनालेकर ने कालस्कर को हत्या में इस्तेमाल की गई पिस्तौल को ठिकाने लगाने की सलाह दी थी। कालस्कर ने ठाणे में एक खाड़ी में पिस्तौल फेंकी थी। भावे ने शूटरों के लिए इलाके की रेकी की थी।पुनालेकर को 5 जुलाई 2019 को जमानत पर रिहा किया गया था।

आरोपियों पर IPC की धारा 120 बी (साजिश), 302 (हत्या), आर्म्स एक्ट की संबंधित धाराओं और गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम या UAPA की धारा 16 (आतंकवादी गतिविधियों के लिए सजा) के तहत मामला दर्ज किया गया था।

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