दिनेश शर्मा बोले- I.N.D.I.A गठबंधन…बिना दूल्हे की बारात जैसा: स्टालिन के ‘सनातन’ वाले बयान पर पूछा-क्या वह पाकिस्तान से आए हैं? कहा- अब राज्यसभा में गूंजेगा यूपी

17 मिनट पहलेलेखक: देवांशु तिवारी

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योगी सरकार 2.0 के मुख्य खेमे से अब तक बाहर रहे डॉ. दिनेश शर्मा फिर से सुर्खियों में हैं। भाजपा ने राज्यसभा उपचुनाव के लिए दिनेश शर्मा को अपना पसंदीदा चेहरा बनाया है। इस चुनाव में वह अकेले कैंडिडेट हैं। ऐसे में यह तय माना जा रहा है कि 8 सितंबर को दिनेश निर्विरोध राज्यसभा सांसद चुने जाएंगे।

दैनिक भास्कर से खास बातचीत में डॉ. शर्मा ने राज्यसभा के नामांकन, BHARAT-INDIA, सनातन धर्म और लोकसभा चुनाव की तैयारियों को लेकर खुल कर बात की। उन्होंने भाजपा के खिलाफ विपक्षी पार्टियों के गठबंधन को बिना दूल्हे की बारात’ बताया। यूपी की पॉलिटिक्स से जुड़े कई रोचक किस्से भी बताए। आप ऊपर दिए गए वीडियो में इसे देख भी सकते हैं।

  • चलिए अब बारी-बारी डॉ. दिनेश शर्मा की बातों पर चलते हैं…

सवाल: पहले योगी कैबिनेट में जगह न मिलना फिर अचानक से राज्यसभा भेजना। पार्टी के इस फैसले को कैसे देखते हैं?

जवाब: पार्टी मुझे राज्यसभा भेज रही है। इसका मतलब है कि भाजपा के शीर्ष नेतृत्व को मेरी काबिलियत पर विश्वास है। मैं भले ही यूपी कैबिनेट में नहीं था, लेकिन एक सदस्य के तौर पर हमेशा पार्टी के काम में लगा रहा। संगठन की मजबूती के लिए जगह-जगह जाकर कार्यक्रम किए। एक दिन भी घर पर नहीं बैठा। इसलिए यह फैसला अचानक नहीं लिया गया। मुझे भाजपा ने बहुत कुछ दिया है। ऐसे में अगर डेढ़ साल तक कोई अवसर नहीं मिला, तो यह मेरी जिम्मेदारी थी कि मैं अपनी तरफ से कुछ पार्टी को दूं।

भाजपा में रहते हुए मैं युवा मोर्चे का अध्यक्ष बना, महापौर से लेकर राष्‍ट्रीय उपाध्यक्ष फिर प्रदेश का डिप्टी सीएम रहा। अब पार्टी मुझे राज्यसभा भेज रही है। इस फैसले से मैं आह्लादित हूं। मुझे खुशी है कि जब मैं देश के सबसे बड़े सदन में एक सदस्य के तौर पर जाऊंगा। न केवल यूपी बल्कि राष्ट्र और संगठन दोनों की सेवा करने का मुझे भरपूर अवसर मिलेगा।

सवाल: योगी-केशव-ब्रजेश तीनों ही आपका नामांकन कराने पहुंचे थे। वह क्षण आपको कैसा लगा?

जवाब: योगी आदित्यनाथ जब पहली बार बीजेपी के मंच पर आए थे, तब मैं प्रदेश युवा मोर्चा का अध्यक्ष था। ब्रजेश पाठक से परिचय तब का है, जब हम ने उन्हें छात्र संघ चुनाव लड़वाया था। केशव प्रसाद जब विश्व हिंदू परिषद से जुडे़, तब मैं विश्व संवाद पत्रिका का संपादक था। वह आज भी मुझे अपना बड़ा भाई मानते हैं। हम तीनों ने एक-दूसरे के साथ प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से काम किया है। भाजपा हमेशा से संगठन को आगे रखकर चलने वाली पार्टी रही है। हम सभी हंसते-हंसाते मिलकर काम करने में यकीन रखते हैं।

सवाल: आपने संगठन की बात की…विपक्ष ने भी नया संगठन बनाया है। भारत या INDIA…आप किसके पक्ष में हैं?

जवाब: चाहे नेता हो या फिर आम-आदमी, कोई भी देश के नाम का दुरुपयोग नहीं कर सकता। आप खुद देखिए… जिन लोगों ने ‘I.N.D.I.A’ नाम से गठबंधन बनाया, उन्हीं में सबसे ज्यादा भ्रष्टाचारी लोग हैं। CBI और ED की कार्रवाई में सबसे ज्यादा आरोपी लोग इन्हीं के संगठन के हैं। आज जघन्य अपराध करने वाले देश के नाम से मिलता-जुलता संगठन बना रहे हैं। इसे मैं अपने देश और आज की राजनीति का दुर्भाग्य मानता हूं। रही बात भारत और I.N.D.I.A की तो दोनों नामों को लेकर जो सोच हमारी पार्टी की है। वही मेरी भी है।

सवाल: विपक्ष ये आरोप लगाता है कि गृहमंत्री अमित शाह और योगी में बनती नहीं है। आप इसे लेकर क्या सोचते हैं?

जवाब: ये ऐसे लोग हैं, जिन्हें भारत की रीति और परम्पराओं के बारे में कुछ भी नहीं पता। आज किसी भी राजनीतिक पार्टी में अमित शाह जैसा कुशल संगठनकर्ता खोजे नहीं मिलता है। योगी आदित्यनाथ जैसा दृढ़ इच्छाई प्रशासक आज तक नहीं हुआ। ये दोनों ही नेता एक-दूसरे के पूरक हैं। भाजपा कैडर-बेस्ड पार्टी है। यहां हमेशा नेता के बीच आपसी समन्वय और आत्मीय जुड़ाव रहा है। इसलिए विरोधी पार्टी ऐसे बेतुके कयास लगाती रहें, हमें या हमारे संगठन को इससे कोई फर्क नहीं पड़ता।

सवाल: एकतरफ राहुल PM-भाजपा पर हमलावर हैं, दूसरी तरफ आपको भारत जोड़ो यात्रा में बुलाते हैं। इस पर क्या कहेंगे?

जवाब: जब मैं नेता सदन था, तब सिर्फ 7 लोग बीजेपी के थे और 93 लोग विपक्ष में थे। उस समय बहुमत न होते हुए भी मेरे सारे प्रस्ताव बिना किसी विरोध के पास होते थे। 5 सितंबर को मेरे नामांकन के बाद भाजपा के अलावा दूसरे दलों के नेताओं ने मुझे बधाई दी। राजनीति में भाईचारे की ये आदत मैंने अटल जी से सीखी। वह हमेशा कहते थे कि नेता संसद में एक-दूसरे के विरोधी हो सकते हैं, लेकिन सदन से बाहर हम सभी के बीच अपनत्व की भावना होनी चाहिए। ऐसे में जब राहुल गांधी का न्योता मिला, तो मुझे उनका ये जैश्चर अच्छा लगा।

सवाल: उदयनिधि स्टालिन के ‘सनातन धर्म’ वाले बयान पर आपकी क्या राय है?

जवाब: ये भेष बदलकर राजनीति करने वाले लोग है। ये लोग चैलेंज दे रहे हैं कि हम सनातन धर्म को कुचल देंगे। अरे भाई…जब सनातन संस्कृति को न अंग्रेज कुचल पाए और न मुगल हरा पाए। तो क्या ये लोग पाकिस्तान या चीन से आए हैं, जो इस तरह की बयानबाजी कर रहे हैं। इनके बयान ही इनके अस्त का कारण बनेंगे।

दिनेश शर्मा के राज्यसभा प्रत्याशी बनने पर उनके समर्थक खुशी से झूम उठे।

दिनेश शर्मा के राज्यसभा प्रत्याशी बनने पर उनके समर्थक खुशी से झूम उठे।

सवाल: विपक्ष का महागठबंधन 2024 लोकसभा चुनाव में हार-जीत के बीच क्या बड़ा फैक्टर साबित होगा?

जवाब: देश में मोदी बयार और प्रदेश में योगी तूफान के आगे ये सभी पार्टियां विलुप्त हो जाएंगी। साल 2024 में सपा-बसपा-मकपा-भकपा-कांग्रेस सभी राजनीतिक दल अस्त हो जाएंगे। ये महागठबंधन ‘बगैर दूल्हे की बारात’ जैसा है, जो शादी में बिना लड़की लिए लौटेगा। यानी कि यह सभी लोकसभा चुनाव में बुरी तरह हारने वाले हैं।

  • डॉ. दिनेश शर्मा का इंटरव्यू यहां खत्म होता है। आगे उनकी जिंदगी से जुड़ी दिलचस्प कहानी पर चलते हैं, जिसकी शुरुआत भारत नहीं बल्कि पाकिस्तान से होती है।

पाकिस्तान में आए भयानक भूकंप से किस्सा शुरू होता है…
आजादी के बाद बंटवारे के समय क्वेटा प्रांत पाकिस्तान के हिस्से में आ गया। उस वक्त क्वेटा में भयानक भूकंप आया। लोग जान बचाने के लिए इधर-उधर भाग रहे थे। इसी अफरा-तफरी के बीच एक छोटी-सी लड़की शांति अपने परिवार से बिछड़कर लखनऊ के चारबाग रेलवे स्टेशन पहुंची। इतने बड़े शहर में अनजान शांति को जब कोई भी अपना नहीं दिखा, तो वह रेलवे स्टेशन के पास बड़े बरगद के पेड़ के नीचे बैठकर रोने लगी।

तभी उस रास्ते से गुजर रही लखनऊ की जानी-मानी समाजसेवी रानी लीला रामकुमार भार्गव की नजर शांति पर पड़ी। वह उसके करीब आईं और पूछा- क्यों रो रही हो बेटी, क्या हुआ? रानी लीला की आवाज सुन मासूम शांति रोते-रोते उनसे लिपट गई। थोड़ी देर बाद जब वह चुप हुई, तो परिवार से बिछड़ने की पूरी बात बताई। शांति की बात सुनकर रानी लीला की आंखें भर आईं। उन्होंने मजबूती से शांति का हाथ पकड़ा और अपने घर ले आईं। रानी लीला के घर रहते हुए शांति को 5 साल बीत गए। अब उसे लखनऊ अपने घर जैसा लगने लगा था। रानी लीला भी शांति को अपनी बेटी की तरह मानने लगी थीं।

ये तस्वीर पद्मश्री रानी लीला रामकुमार भार्गव की है। डॉ. दिनेश शर्मा इन्हें नानी मानते हैं। साल 2014 में उनका निधन हो गया।

ये तस्वीर पद्मश्री रानी लीला रामकुमार भार्गव की है। डॉ. दिनेश शर्मा इन्हें नानी मानते हैं। साल 2014 में उनका निधन हो गया।

अचानक एक दिन शांति की मां धीरजदई शुक्ल उसे खोजते-खोजते रानी लीला भार्गव के घर पहुंचीं। अपनी बेटी को देख उनकी खुशी का ठिकाना न था। वह चाहती थीं कि शांति उनके साथ वापस चले, लेकिन शांति ने खुद मां से रानी लीला के घर रहने की गुजारिश कर दी। धीरजदई बेटी शांति की बात टाल नहीं सकती थी, इसलिए वह खुद रानी साहब के घर पर महाराजिन का काम करने लगीं।

लखनऊ में शांति की स्कूली शिक्षा पूरी हुई, तो रानी लीला भार्गव ने उन्हें MA साहित्य और रत्न विशारद की शिक्षा दिलाई। रानी साहब ने ही शांति की शादी पहलवान केदार नाथ शर्मा उर्फ पाधा जी से हुई। 12 जनवरी, 1964 में शांति ने बेटे को जन्म दिया। नाम रखा गया- दिनेश शर्मा। वो लड़का, जो 53 साल बाद यूपी का डिप्टी सीएम बना।

पहलवान के बेटे ने पॉलिटिक्स को करियर बनाया
डॉ. दिनेश शर्मा कहते हैं, “उन दिनों पाकिस्तान के एक पहलवान सादिक ने अखाड़े में सभी पहलवानों को लड़ने की चुनौती दे दी। सादिक को हराने वाले पहलवान के लिए 5 हजार रुपए का इनाम रखा गया था, जिसमें पिता जी ने सादिक पहलवान को पटखनी दे दी। बाद में जब इनाम लेने का टाइम आया, तो रकम को लेकर झगड़ा हो गया। इसी बीच मामले को शांत करने के लिए इनाम की धनराशि दोनों में आधी-आधी बांट दी गई। इन पैसों से पिताजी ने बिजनेस शुरू किया।”

“मां के त्याग, पिता की मेहनत, नानी स्व.रानी लीला रामकुमार भार्गव और मेरे गुरु केके सक्सेना की बदौलत मैंने अपनी पीएचडी पूरी की।” पढ़ाई के दौरान ही डॉ. दिनेश शर्मा RSS से जुड़े। साल 1987 में उन्हें लखनऊ विद्यार्थी परिषद के अध्यक्ष के तौर पर चुना गया। इसके बाद से ही उनके राजनीतिक जीवन की शुरुआत हुई।

साल 1988 में डॉ. दिनेश शर्मा लखनऊ विश्वविद्यालय में कॉमर्स विभाग में प्रोफेसर रह चुके हैं।

साल 1988 में डॉ. दिनेश शर्मा लखनऊ विश्वविद्यालय में कॉमर्स विभाग में प्रोफेसर रह चुके हैं।

पहले गेट-आउट बोला, फिर युवा मोर्चा का अध्यक्ष बना दिया
छात्र राजनीति में सक्रियता और स्वभाव में सरलता के चलते साल 1991 में दिनेश शर्मा को प्रदेश भारतीय जनता युवा मोर्चा का उपाध्यक्ष बनाया गया। इसके बाद, साल 1993 में उनको भारतीय युवा जनता मोर्चा का प्रदेश अध्यक्ष चुना गया, इस पद पर वे साल 1998 तक बने रहे।

डॉ. दिनेश शर्मा कहते हैं, “पहला बड़ा राजनीतिक पद मिलने का किस्सा भी बेहद रोचक था। उन दिनों भाजपा कार्यालय में युवा मोर्चा के अध्यक्ष पद की तलाश चल रही थी। मैं कार्यालय पहुंचा तो वहां, मुख्यमंत्री राम प्रकाश गुप्ता , कल्याण सिंह , कलराज मिश्र और सुंदर सिंह भंडारी बैठे हुए थे। दरअसल, मैं उस दिन भाजपा युवा मोर्चा के अध्यक्ष पद के लिए किसी और की सिफारिश करने गया था। लेकिन मेरी बात सुनने के बाद भंडारी जी नाराज हो गए और मुझे डांटते हुए गेट-आउट बोल दिया।”

“दूसरे दिन मेरे पास कलराज मिश्र का संदेश आया कि मुझे किसी कार्यक्रम के लिए प्रेस नोट तैयार करना है। मैं वहां पहुंचा, मैंने कलराज मिश्र से भंडारी जी के डांटने के बारे में पूछा तो उन्होंने कहा कि भंडारी जी ने आपको इसलिए डांटा था, क्योंकि वो आपको भाजपा युवा मोर्चा का अध्यक्ष बनाना चाहते हैं और कुछ देर में ही इस बात की घोषणा कर दी जाएगी। इसके बाद एक बैठक हुई, जिसमें मुझे भाजपा युवा मोर्चा का अध्यक्ष घोषित कर दिया गया।”

जब अटल बिहारी वाजपेयी को लगा ‘दिनेश’ लंबी रेस के घोड़े हैं
साल 1999 की बात है। अटल बिहारी वाजपेयी लखनऊ लोकसभा सीट से जीतकर ही संसद पहुंचे थे। उनका पार्टी के कार्यक्रमों और राजनीतिक रैलियों में शामिल होने अक्सर लखनऊ आना लगा रहता था। उन दिनों कलराज मिश्रा और भाजपा के वरिष्ठ नेताओं के बीच डॉ. दिनेश शर्मा की अच्छी पहचान थी। इसी बीच एक कार्यक्रम के दौरान अटल बिहारी वाजपेयी की नजर दिनेश शर्मा पर पड़ी।

भाजपा के लिए डॉ. दिनेश शर्मा का समर्पण भाव देख अटल गदगद थे। यही वजह थी कि जब 2006 में निकाय चुनाव हुए, तो अटल जी के कहने पर लखनऊ के मेयर पद के लिए दिनेश शर्मा को भाजपा प्रत्याशी चुना गया। इसी साल अटल ने लखनऊ में अपनी आखिरी जनसभा भी की थी, जिसमें उन्होंने डॉ. दिनेश शर्मा के लिए वोट मांगे थे।

ये सभा लखनऊ के कपूरथला चौराहे पर हुई। सभा में बीजेपी कार्यकर्ता और अटल जी के प्रशंसक उस समय हैरत में पड़ गए, जब अटल ने उनसे अचानक पायजामा मांग लिया। इस घटना का जिक्र करते हुए शर्मा कहते हैं, “अटल जी मेयर चुनाव के दौरान मेरे समर्थन में सभा करने कपूरथला पहुंचे थे। उस वक्त उन्हें 104 डिग्री बुखार था। उन्होंने जनता से पूछा कि अगर वह केवल कुर्ता पहनें और पायजामा ना पहनें, तो कैसे दिखेंगे।”

इस बात पर वहां मौजूद जनता हैरत में थी कि अटल जी क्या कहना चाहते हैं? कोई चिल्लाया .. खराब दिखेंगे। तब अटल जी ने कहा कि लखनऊ से सांसद का चुनाव जिताकर आप लोगों ने मुझे कुर्ता दिया। मुझे नगर निगम मेयर चुनाव में जीत दर्ज कर पायजामा भी चाहिए। शर्मा ने कहा कि अटल जी के इस बयान ने उन्हें 2006 के मेयर चुनाव में जीत दिलाई।

अटल बिहारी वाजपेयी और डॉ. दिनेश शर्मा के बीच गहरा लगाव था। ये तस्वीर उस पल की है जब अटल जी के निधन की खबर सुन शर्मा भावुक हो गए।

अटल बिहारी वाजपेयी और डॉ. दिनेश शर्मा के बीच गहरा लगाव था। ये तस्वीर उस पल की है जब अटल जी के निधन की खबर सुन शर्मा भावुक हो गए।

पहले चुनाव में भले ही उन्हें मामूली अंतर से जीत मिली, लेकिन बीजेपी ने उन्हें एक बार फिर 2012 में मौका दिया। दूसरी बार लखनऊ मेयर प्रत्याशी के तौर पर डॉ. दिनेश शर्मा ने रिकॉर्ड मतों से जीत दर्ज की। इसी वजह से उनका नाम लिम्का बुक ऑफ रिकार्ड्स में दर्ज हुआ। यहीं नहीं उन्हें यरुशलम में हुए वर्ल्ड मेयर कॉन्फ्रेंस में ‘मोस्ट ऑनरेबल मेयर’ का सम्मान भी दिया गया। साल 2014 में डॉ. दिनेश शर्मा को बीजेपी का राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बनाया गया।

2017 में योगी सरकार आते ही मिली बड़ी जिम्मेदारी
साल 2017…यूपी में 15 साल बाद भाजपा की सरकार बनी। योगी आदित्यनाथ सीएम बनाए गए। इस बार यूपी सरकार की कैबिनेट में थोड़ा चेंज था। 2 डिप्टी सीएम बनाए गए। पहला नाम, केशव प्रसाद मौर्य का था। वहीं, दूसरा नाम डॉ. दिनेश शर्मा का था।

ये तस्वीर मार्च 2017 की है जब डॉ. दिनेश शर्मा ने डिप्टी सीएम की शपथ ली थी।

ये तस्वीर मार्च 2017 की है जब डॉ. दिनेश शर्मा ने डिप्टी सीएम की शपथ ली थी।

19 मार्च 2017 को योगी आदित्यनाथ ने पीएम मोदी की मौजूदगी में यूपी के सीएम पद की शपथ ली। उनके बाद डिप्टी सीएम की शपथ लेने डॉ. दिनेश शर्मा पहुंचे। तालियों की गड़गड़ाहट के बीच उन्हें शपथ पढ़ना शुरू किया – “मैं डॉ. दिनेश शर्मा ईश्वर की शपथ लेता हूं कि मैं विधि द्वारा स्थापित भारत के संविधान के प्रति सच्ची श्रद्धा और निष्ठा अक्षुण्ण रखूंगा। मैं उत्तर प्रदेश राज्य के उप-मुख्यमंत्री के रूप में अपने कर्तव्यों का श्रद्धापूर्वक निर्वाहन करूंगा।

  • आखिर में डॉ. दिनेश शर्मा और अटल जी का एक और मजेदार किस्सा जान लीजिए…

हड़बड़ाहट में अटल जी पर खीर गिरा दी

साल 1996 में लखनऊ में एक जनसभा के दौरान अटल बिहारी वाजपेयी। इस सभा में डॉ. दिनेश शर्मा भी मौजूद थे।

साल 1996 में लखनऊ में एक जनसभा के दौरान अटल बिहारी वाजपेयी। इस सभा में डॉ. दिनेश शर्मा भी मौजूद थे।

शर्मा कहते हैं, “अटल जी मेरे पिता केदार नाथ शर्मा के बहुत अच्छे मित्र थे। मुझे याद है एक बार वह हमारे घर भोजन पर आए थे। भोजन परोसने के दौरान गलती से मुझ से थोड़ी सी खीर उन पर गिर गई। पिता जी ने जब गुस्से से मेरी ओर देखा, तो मैं हड़बाहट के मारे पूरी खीर उन पर गिरा बैठा। मेरी इस हरकत पर वाजपेयी जी मुस्कराने लगे और उन्होंने मुझे अपनी गोद में बैठा लिया।”

“पुराने लखनऊ में चौक के पास राजा बाजार में त्रिवेदी मिष्ठान भंडार की दूध की बर्फी वाजपेयी जी को काफी पंसद थी। वाजपेयी जी जब कभी भी दिल्ली से लखनऊ आने वाले होते, तो वह पिताजी से पहले ही कह देते थे कि केदार नाथ जी टैक्स आएगा या नहीं। उनकी ये बात सुनकर पिता जी बर्फी लाने चले जाते थे। दरअसल, टैक्स- बर्फी का कोडवर्ड था।”

डॉ. दिनेश शर्मा का राजनीतिक करियर
1987 में लखनऊ विद्यार्थी परिषद के अध्यक्ष के तौर पर चुना गया।
1991 में प्रदेश भारतीय जनता युवा मोर्चा का प्रदेश उपाध्यक्ष बनाया गया।
1993 से 1998 तक भारतीय युवा जनता मोर्चा का प्रदेश अध्यक्ष रहे।
बीजेपी सरकार बनने पर इन्हें राज्य मंत्री का दर्जा मिला। यूपी पर्यटन विकास निगम के उपाध्यक्ष बने।
भारत सरकार में राष्ट्रीय युवा मोर्चा आयोग के सदस्य भी बने।
यूपी पर्यटन नीति व भारत सरकार की युवा नीति तैयार करने में महत्वपूर्ण योगदान दिया।
पर्यटन निगम के उपाध्यक्ष रहते हुए भाजपा संगठन में उप्र भारतीय जनता युवा मोर्चा का प्रदेश प्रभारी बनाया गया।
2006 में लखनऊ के मेयर चुने गए।
2012 में दूसरी बार लखनऊ के मेयर चुने गए। भारी मतों से विजयी होने पर लिम्का बुक ऑफ रिकार्ड्स में नाम दर्ज हुआ।
16 अगस्त, 2014 को भारतीय जनता पार्टी का राष्ट्रीय उपाध्यक्ष और गुजरात प्रदेश का प्रभारी बनाया गया।
देश के सबसे बड़े राजनीतिक सदस्यता अभियान के राष्ट्रीय प्रभारी बने।
2017 के विधानसभा चुनाव में जब भाजपा की सरकार बनी, तब प्रदेश का उपमुख्यमंत्री चुना गया।

माध्यमिक एवं उच्च शिक्षा, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी, इलेक्ट्रॉनिक्स, सूचना प्रौद्योगिकी की भी जिम्मेदारी संभाली।

विधान परिषद में ‘नेता सदन’ की जिम्मेदारी मिली।

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मायावती का वोटर तय करेगा घोसी का विधायक…

उत्तर प्रदेश में 12 दिन पहले शुरू हुआ घोसी के घमासान का 5 सितंबर को समापन हो गया। छिटपुट बहस और तमाम आरोप-प्रत्यारोप के बीच संपन्न हुए मतदान के बाद हार-जीत की गुणा गणित तेज हो गई है। EVM में कैद हुई प्रत्याशियों की किस्मत का फैसला अब 8 सितंबर को होगा। सपा छोड़कर भाजपा में आए दारा सिंह और सपा प्रत्याशी सुधाकर सिंह के बीच कड़ा मुकाबला माना जा रहा है। पढ़िए पूरी खबर…

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