तेलंगाना के गांव को मिली अंतरराष्ट्रीय पहचान: पोचमपल्ली को यूएन ने चुना बेस्ट टूरिज्म विलेज, यहां घर-घर हथकरघा बुनते हैं साड़ी, घरेलू बाजार ही 200 करोड़ से ज्यादा का

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  • तेलंगाना के गांव की बुनाई शैली को अंतरराष्ट्रीय पहचान मिली पोचमपल्ली को संयुक्त राष्ट्र ने चुना था सर्वश्रेष्ठ पर्यटन गांव, यहां घर-घर में बुनती है साड़ियां, घरेलू बाजार की कीमत 200 करोड़ से भी ज्यादा

हैदराबाद15 मिनट पहलेलेखक: एमएस शंकर

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पोचमपल्ली साड़ी।

तेलंगाना के नलगोंडा जिले के पोचमपल्ली गांव का नाम भले ही अनसुना लगे, लेकिन पोचमपल्ली साड़ियां देशभर में ख्यात हैं। हैदराबाद से 40 किमी दूर यह गांव अब पर्यटन के अंतरराष्ट्रीय नक्शे पर आ गया है। संयुक्त राष्ट्र विश्व पर्यटन संगठन (यूएनडब्ल्यूटीओ) ने पोचमपल्ली को देश का सर्वश्रेष्ठ पर्यटन गांव चुना है। गांव को स्पेन के मैड्रिड में 2 दिसंबर को होने वाली यूएनडब्ल्यूटीओ की आम सभा में अवॉर्ड से नवाजा जाएगा।

केंद्रीय संस्कृति, पर्यटन मंत्री जी किशन रेड्डी ने कहा- ‘आत्मनिर्भर भारत के तहत पोचमपल्ली की बुनाई शैलियों को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के वोकल फॉर लोकल के जरिये विशेष ध्यान मिला।’ पोचमपल्ली इसलिए भी खास है क्योंकि आचार्य विनोभा भावे ने इसी गांव से 18 अप्रैल 1951 को भूदान आंदाेलन शुरू किया था। भावे की एक आवाज पर यहां के जमींदार ने 250 एकड़ जमीन दान दे दी थी।

1980 में ख्यात फिल्म निर्देशक श्याम बेनेगल ने इसी गांव पर आधारित शबाना आजमी, नीना गुप्ता और ओम पुरी अभिनीत फिल्म ‘सुस्मान’ बनाई थी। फिल्म में हथकरघा कारीगरों के संघर्ष के बारे में बताया गया था। यही नहीं, एयर इंडिया का कैबिन क्रू भी विशेष डिजाइन वाली पोचमपल्ली सिल्क साड़ी पहनता है। 80 छोटे-छोटे गांवों के समूह पोचमपल्ली के करीब हर घर में हथकरघे हैं।

यहां 1500 से अधिक परिवार हैं और 10 हजार हथकरघे हैं। इससे यहां कुटीर उद्योग सा नजारा दिखता है। बुनकर सिल्क धागे से इकत शैली में साड़ियां बुनते हैं। एक साड़ी बनाने में 40 दिन लगते हैं। पोचमपल्ली साड़ियों का देश में ही बाजार 200 करोड़ रुपए से अधिक का है। इन साड़ियों की श्रीलंका, मलेशिया, दुबई, यूरोप, फ्रांस समेत कई देशाें में बेहद मांग है।

मध्य प्रदेश का लधपुरा और मेघालय का ‘व्हिस्लिंग विलेज’ भी थे रेस में
यूएनडब्ल्यूटीओ इस पायलट परियोजना के तहत उन सर्वश्रेष्ठ पर्यटन गांवों को पुरस्कृत करता है, जो स्थानीय संस्कृति को बढ़ावा देने के साथ धरोहर सहेज रहे हैं और समुदायों को आर्थिक मजबूत भी कर रहे हैं। पर्यटन मंत्रालय ने तीन गांवों की सिफारिश की थी। इनमें मेघालय का कोंगथोंग, मध्य प्रदेश का लधपुरा खास भी शामिल था। कोंगथोंग ‘व्हिस्लिंग विलेज’ के नाम से भी जाना जाता है।

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