जम्मू-कश्मीर: जमात-ए-इस्लामी पर अब तक की सबसे बड़ी कार्रवाई, इस संगठन पर हैं बेहद गंभीर आरोप, जानिए सब कुछ

सार

एनआईए ने प्रतिबंधित जमात-ए-इस्लामी के ठिकानों पर जम्मू-कश्मीर में कई जगह छापे मारे हैं। जम्मू व कश्मीर संभाग में 40 से ज्यादा ठिकानों पर एनआईए की कार्रवाई जारी है। पढ़ें- जमात-ए-इस्लामी के गठन, आतंकी संगठनों को इसकी पुश्त पनाही एवं फलाह-ए-आम और आतंकवाद के रिश्ते के बारे में सब कुछ

जमात-ए-इस्लामी पर बड़ी कार्रवाई
– फोटो : अमर उजाला

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राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) ने टेरर फंडिंग मामले में रविवार सुबह श्रीनगर, गांदरबल, अचबल, शोपियां, बांदीपोरा, रामबन, डोडा, किश्तवाड़, राजोरी समेत जम्मू-कश्मीर में कई स्थानों पर छापे मारे। एक अधिकारी ने बताया कि एनआईए ने पुलिस और सीआरपीएफ के साथ मिलकर जमात-ए-इस्लामी के सदस्यों के आवासों पर छापेमारी की। जमात-ए-इस्लामी को 2019 में केंद्र सरकार द्वारा प्रतिबंधित कर दिया गया था। एनआईए ने संगठन के खिलाफ नया मामला दर्ज किया है।

बांदीपोरा में पूर्व जमात अध्यक्ष के आवास, अनंतनाग जिले में मुश्ताक अहमद वानी पुत्र गुलाम हसन वानी, नजीर अहमद रैना पुत्र गुलाम रसूल रैना, फारूक अहमद खान पुत्र मोहम्मद याकूब खान और आफताक अहमद मीर, अहमदुल्ला पारे के ठिकानों पर भी छापेमारी हुई है। उधर, बडगाम जिले में डॉ. मोहम्मद सुल्तान भट, गुलाम मोहम्मद वानी और गुलजार अहमद शाह समेत कई जमात नेताओं के आवासों पर छापेमारी हुई। श्रीनगर में सौरा निवासी गाजी मोइन-उल इस्लाम के आवास और नौगाम में फलाह-ए-आम ट्रस्ट पर छापेमारी की जा रही है।

आतंकी संगठनों को जमात-ए-इस्लामी की पुश्त पनाही
साल 1941 में एक संगठन बनाया गया जिसका नाम जमात-ए-इस्लामी था। जमात-ए-इस्लामी (जम्मू-कश्मीर) कश्मीर की सियासत में महत्त्वपूर्ण भूमिका रही है। साल 1971 से यह सगंठन चुनावी मैदान में कूदा। हालांकि तब इसे एक भी सीट पर जीत नहीं मिली। जमात-ए-इस्लामी काफी लंबे समय से कश्मीर को पाकिस्तान में मिलाने की मुहिम भी चला रहा है। सूत्रों का कहना है कि घाटी में कार्यरत कई आतंकी संगठन जमात के इन मदरसों और मस्जिदों में पनाह लेते रहे हैं। बताया जाता है कि यह आतंकी संगठन हिजबुल मुजाहिदीन का राजनीतिक चेहरा है। जमात-ए-इस्लामी जम्मू कश्मीर ने ही हिजबुल मुजाहिदीन को खड़ा किया है और उसे हर  तरह की मदद करता है।

जमात-ए-इस्लामी पर देश में राष्ट्र विरोधी और विध्वंसकारी गतिविधियों में शामिल होने और आतंकवादी संगठनों के साथ संपर्क में होने का आरोप है। यह संगठन जम्मू कश्मीर में अलगाववादी विचारधारा और आतंकवादी मानसिकता के प्रसार के लिए प्रमुख तौर पर जिम्मेदार माना जाता है। जमात-ए-इस्लामी आतंकियों को प्रशिक्षण, वित्तीय मदद, शरण देना और हर संसाधन मुहैया करता है। इसे कई आतंकी घटनाओं के लिए जिम्मेदार माना जाता है।

फलाह-ए-आम ट्रस्ट के कई शिक्षण संस्थान हैं। कहने को तो यहां शिक्षण कार्य होता है लेकिन इसी ट्रस्ट के जरिए आतंकवाद और अलगाववाद के बीज बोए जाते हैं। इतना ही नहीं इस ट्रस्ट को विदेशों से धन भी मुहैया कराया जाता है, जोकि आतंकी गतिविधियों को बढ़ावा देने में लगाया जाता है। यह ट्रस्ट शिक्षकों और घाटी के युवाओं को आतंकवाद की ओर मोड़ता है।

विस्तार

राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) ने टेरर फंडिंग मामले में रविवार सुबह श्रीनगर, गांदरबल, अचबल, शोपियां, बांदीपोरा, रामबन, डोडा, किश्तवाड़, राजोरी समेत जम्मू-कश्मीर में कई स्थानों पर छापे मारे। एक अधिकारी ने बताया कि एनआईए ने पुलिस और सीआरपीएफ के साथ मिलकर जमात-ए-इस्लामी के सदस्यों के आवासों पर छापेमारी की। जमात-ए-इस्लामी को 2019 में केंद्र सरकार द्वारा प्रतिबंधित कर दिया गया था। एनआईए ने संगठन के खिलाफ नया मामला दर्ज किया है।

बांदीपोरा में पूर्व जमात अध्यक्ष के आवास, अनंतनाग जिले में मुश्ताक अहमद वानी पुत्र गुलाम हसन वानी, नजीर अहमद रैना पुत्र गुलाम रसूल रैना, फारूक अहमद खान पुत्र मोहम्मद याकूब खान और आफताक अहमद मीर, अहमदुल्ला पारे के ठिकानों पर भी छापेमारी हुई है। उधर, बडगाम जिले में डॉ. मोहम्मद सुल्तान भट, गुलाम मोहम्मद वानी और गुलजार अहमद शाह समेत कई जमात नेताओं के आवासों पर छापेमारी हुई। श्रीनगर में सौरा निवासी गाजी मोइन-उल इस्लाम के आवास और नौगाम में फलाह-ए-आम ट्रस्ट पर छापेमारी की जा रही है।

आतंकी संगठनों को जमात-ए-इस्लामी की पुश्त पनाही

साल 1941 में एक संगठन बनाया गया जिसका नाम जमात-ए-इस्लामी था। जमात-ए-इस्लामी (जम्मू-कश्मीर) कश्मीर की सियासत में महत्त्वपूर्ण भूमिका रही है। साल 1971 से यह सगंठन चुनावी मैदान में कूदा। हालांकि तब इसे एक भी सीट पर जीत नहीं मिली। जमात-ए-इस्लामी काफी लंबे समय से कश्मीर को पाकिस्तान में मिलाने की मुहिम भी चला रहा है। सूत्रों का कहना है कि घाटी में कार्यरत कई आतंकी संगठन जमात के इन मदरसों और मस्जिदों में पनाह लेते रहे हैं। बताया जाता है कि यह आतंकी संगठन हिजबुल मुजाहिदीन का राजनीतिक चेहरा है। जमात-ए-इस्लामी जम्मू कश्मीर ने ही हिजबुल मुजाहिदीन को खड़ा किया है और उसे हर  तरह की मदद करता है।


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जमात-ए-इस्लामी और आतंकवाद का रिश्ता

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