जमीन पर अभी सुलझा नहीं विवाद: असम से मिजोरम के रास्ते अभी बंद आक्रोशित भीड़ को उकसा रही पुलिस

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  • जमीन का विवाद अभी तक सुलझा नहीं है; गुस्साई भीड़ को भड़का रही पुलिस, जिसे अब असम से मिजोरम के रास्ते बंद कर दिया गया है

6 घंटे पहले

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लैलापुर बॉर्डर पर तनावपूर्ण शांति है।

असम-मिजोरम के बीच खूनी झड़प को एक हफ्ते से ज्यादा बीत चुका है। केंद्रीय नेताओं से लेकर दोनों राज्यों के मुख्यमंत्री तक कह रहे हैं कि अब विवाद नहीं है। असम और मिजोरम के सीएम साझा बयान तक दे चुके हैं कि अब पुरानी बातों को भूल दोनों राज्य शांति कायम कर चुके हैं। केंद्रीय गृह मंत्रालय का फैसला दोनों को मान्य होगा। मगर इस साझा बयान का जमीन पर कोई असर नहीं दिखा है।

दोनों राज्यों की सीमा पर तनावग्रस्त इलाकों में पुलिस थानों के पास तो कोई आदेश तक नहीं आया है। नतीजा- तनाव पहले से कहीं ज्यादा बढ़ गया है। मिजोरम की राजधानी आईजोल से दोनों राज्यों के बॉर्डर पर विवादित स्थल वैरंगते के सफर में हमें स्पष्ट दिखा कि जनता आक्रोशित है और सबसे चिंताजनक बात ये है कि पुलिस इस आक्रोश को कम करने के बजाय और भड़का रही है।

सीमा पर गाड़ियों का प्रवेश बंद है। मिजोरम जाने वाले असम के हर रास्ते पर नाकाबंदी जारी है। शुक्रवार रात को भी असम के कछार जिले में मिजोरम जा रहे चार ट्रकों को लूटकर तोड़फोड़ दिया गया। स्थिति इतनी बिगड़ चुकी है कि नाकाबंदी की वजह से मिजोरम के पास कोविड टेस्ट में इस्तेमाल होने वाले रीएजेंट की कमी हो गई है। मिजोरम सरकार ने टेस्ट की संख्या सीमित कर दी है। जमीनी हकीकत जानने के लिए हमने मिजोरम की राजधानी आईजोल से 180 किलोमीटर का सफर तय कर दोनों राज्यों की सीमा पर स्थित विवादित वैरंगते बॉर्डर तक गए।

आईजोल से करीब 40 किमी आगे सड़क किनारे बने होटल चैंगपुई स्टोर पर रुकते हैं। होटल संचालिका चैंगपुई ने कहा, ‘आप चाय पीकर वापस जाओ। असम वाला घुसने नहीं देगा। मिजो गुस्सा नहीं होता।’ इस सवाल पर कि मिजो गुस्सा नहीं होता? तो उन्होंने कहा, मुस्कुराती हुई बोली-तोड़ा-तोड़ा (थोड़ा-थोड़ा) होता है। हमने किसी की एक इंच जमीन नहीं ली।

हम कोलासिब जिले में पहुंचे, जहां विवादित वैरंगते बॉर्डर है। यहां प्रशासन के लोग हैं, लेकिन लॉकडाउन के बावजूद किसी को रोक नहीं रहे हैं। 11 बजे वैरंगते कस्बे में पहुंचते हैं तो वहां कोविड हेल्प कैम्प लगा हुआ है। ये वही कस्बा है, जिसमें मिजोरम की तरफ से पुलिस के साथ भीड़ इकट्‌ठा होती है। हम कोविड हेल्प कैम्प में पहुंचे तो वहां 64 साल के रिटायर्ड फौजी छुआना मिले। छुआना से हमने पूछा कि आप भी 26 जुलाई की घटना में मिजोरम की तरफ से लड़ाई में थे। वो बोले कि हमारे यहां तो एक मौत भी हो जाए तो पूरा बाजार बंद रहता है।

फिर हमारी जमीन जा रही है तो हम चुप कैसे बैठेंगे। हम अपनी जमीन के लिए लड़ेंगे और जान दे देंगे, लेकिन एक इंच जमीन किसी को नहीं देंगे। जब उनसे पूछा कि देश तो एक ही है। आप दुश्मन की तरह व्यवहार क्यों कर रहे हैं। तो वो बोले, ‘मैं फौजी हूं। न देश की और न प्रदेश की, जमीन नहीं दूंगा। अगर ऐसा ही है तो हमारी जमीन पर पुलिस कब्जा क्यों कर रही है। हमारी आर्थिक नाकाबंदी क्यों कर रही है। हम भूखे मरना पसंद करेंगे लेकिन मिजो झुकेंगे नहीं। हम हाथ नहीं जोड़ेंगे।’

हमने सीआरपीएफ के असिस्टेंट कमांडर ब्रजेश कुमार सैनी से पूछा कि आपको पता है कि मंत्रियों के बीच सुलह हुई है। सैनी ने कहा, पता तो है लेकिन हमारे पास वाहन निकलने देने का कोई आदेश नहीं है। अगर मिजोरम की तरफ से निकलने का परमिट मिलेगा तो लैलापुर बॉर्डर तक जाने दे सकते हैं। सीआरपीएफ के सीनियर जवानों ने कहा कि असम में भीड़ जमा है। किसी को कुछ हो गया तो हमारे पास कोई कागज तो रहे।

असम बॉर्डर पर पुलिस ने कहा-ऊपर से आदेश है, किसी को मत जाने दो
वैरंगते बॉर्डर पर मिजोरम की तरफ से 2 गाड़ियों में 20 मजदूर आते हैं। उन्हें गुवाहाटी से दिल्ली की ट्रेन पकड़नी है। सीआरपीएफ से मान-मनौव्वल के बाद मिजोरम की मजिस्ट्रेट कोलिन के साथ वे बॉर्डर पार कर पाते हैं। उनकी गाड़ियों के साथ ही हम भी असम के लैलापुर थाने पहुंचते हैं। मगर यहां पुलिस वाले ये कहकर रोकते हैं कि अधिकारियों ने मना किया है। मजिस्ट्रेट कोलिन, सिल्चर की कमिश्नर प्रीति जल्ली और एसपी रमनदीप कौर को फोन लगाती हैं।

दोनों साफ मना कर देते हैं कि हम किसी को सुरक्षा नहीं दे पाएंगे। हम उनकी बातचीत स्पीकर पर सुन रहे थे। जब हमने एसपी को फोन लगाया तो उनका कहना था कि हम सबको सुरक्षा दे रहे हैं। सीएम की बैठक का तो उन्हें पता था मगर कोई आदेश नहीं आया था। इस बीच वहां असम के लोगों की भीड़ जमा होने लगती है। इस भीड़ को स्थानीय पुलिस नहीं रोकती, सीआरपीएफ पीछे करती है। असम पुलिस मिजोरम के मजदूरों और मजिस्ट्रेट को लौटा देती है। हमारे पूछने पर टीआई एचके हजारिका कहते हैं कि ऊपर से आदेश है कि किसी को जाने नहीं दिया जाए।

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