कोर्ट का इस्तेमाल मैरिज फैसिलिटेटर की तरह नहीं कर सकते: दुष्कर्म के मामले में दिल्ली हाईकोर्ट की टिप्पणी, आरोपी की अग्रिम जमानत याचिका खारिज

नई दिल्ली8 मिनट पहले

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दिल्ली हाईकोर्ट ने सोमवार को कहा कि अदालतों को यौन अपराधों के मामलों में ‘विवाह सुविधा प्रदाताओं’ (मैरिज फैसिलिटेटर्स) ​​​की तरह इस्तेमाल नहीं किया जा सकता। हाईकोर्ट ने कहा कि न्यायिक व्यवस्था का उपयोग किसी मसले में हिसाब-किताब बराबर करने या किसी पक्ष पर किसी विशेष तरीके से काम करवाने का दबाव डालने के लिए नहीं किया जा सकता है।

कोर्ट ने शादी का झांसा देकर एक महिला से कथित दुष्कर्म के मामले में आरोपी की अग्रिम जमानत याचिका खारिज करते हुए यह टिप्पणी की।

आरोपी ने इस आधार पर अग्रिम जमानत मांगी कि वह पीड़ित से शादी करने के लिए तैयार है। याचिका में कहा गया कि महिला के पिता, जो पहले इस शादी के लिए तैयार नहीं थे,अब इसे स्वीकार करने के लिए तैयार हैं।

यह जांच एजेंसियों और न्याय व्यवस्था के साथ धोखा: कोर्ट
हालांकि, जस्टिस स्वर्णकांता शर्मा ने कहा कि रिकॉर्ड पर मौजूद फैक्ट्स और कागजात से पता चलता है कि आरोपी और शिकायतकर्ता दोनों ने न्यायिक व्यवस्था और जांच एजेंसियों को धोखे में रखा।अब ये विभिन्न तरीकों से अपने फायदे के लिए न्यायिक व्यवस्था में हेरफेर करने की कोशिश कर रहे हैं।

इस कोर्ट की राय में पीड़ित ने पहले FIR दर्ज कराई जिसमें आरोप लगाया गया है कि आरोपी ने शारीरिक संबंध स्थापित करने के बाद शादी करने से इनकार कर दिया था। और बाद में आरोपी को जमानत देने के लिए कोर्ट में यह कहते हुए पेश हो गए कि आरोपी शादी के लिए तैयार है। जबकि वे खुद कई महीनों से इस शादी का विरोध कर रहे थे।

सरकारी वकील ने किया जमानत का विरोध
सरकारी वकील ने इस आधार पर जमानत याचिका का विरोध किया कि आरोप गंभीर प्रकृति का है। और आरोपी कभी भी जांच में शामिल नहीं हुआ और फरार है।

जांच एजेंसियों ने समय और रिसोर्सेस लगाए हैं: कोर्ट
कोर्ट ने कहा कि न्यायिक प्रणाली और जांच एजेंसी ने इस मामले की जांच में समय और रिसोर्सेस (संसाधन) लगाए हैं। न्यायिक व्यवस्था पर ऐसी शिकायतों का बोझ डालने का ट्रेंड सा बन गया है, जो कोर्ट के कामकाज को बाधित करता है।

कई मामलों में, जब शिकायतकर्ता की रिक्वेस्ट पर जमानत दी जाती है, तो कुछ समय बाद, जमानत रद्द करने के लिए याचिकाएं इस आधार पर इस कोर्ट के समक्ष दायर की जाती हैं कि जमानत मिलने के बाद, आरोपी ने शादी करने का अपना वादा पूरा नहीं किया या दुष्कर्म पीड़ित से शादी करने के बाद आरोपी ने पीड़ित को छोड़ दिया।
शादी की बात पहले नहीं बताई
इस मामले में ट्रायल कोर्ट की कार्यवाही या इस कोर्ट में पहले की कार्यवाही में ऐसा कुछ भी नहीं था जो यह बताता हो कि दोनों पक्ष शादी करने पर विचार कर रहे थे या आरोपी ने कथित पीड़ित के साथ सहमति से संबंध बनाने की बात भी स्वीकार की थी। कोर्ट ने कहा कि आरोपी ने अब जाकर विवाह की बात कही है।

दोनों पक्षों का व्यवहार धोखा देने जैसा
कोर्ट ने कहा कि यह दोनों पक्षों ने अपने व्यवहार और जांच एजेंसी के सामने अपनाए गए अलग-अलग रुख से न्यायिक व्यवस्था और जांच एजेंसी का इस्तेमाल किया जो धोखा देने से कम नहीं है।
कोर्ट ने कहा कि मामले के सभी फैक्ट्स और कंडीशंस को ध्यान में रखते हुए कोर्ट इसे अग्रिम जमानत देने लायक मामला नहीं मानता। क्योंकि मामला FIR दर्ज कराने से लेकर यहां तक आ चुका है।

कोर्ट ने कहा कि सत्य की जीत होनी चाहिए जिसके लिए आरोपी को हिरासत में लेकर पूछताछ की जरूरत हो सकती है।

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