कैप्टन के सामने सिद्धू गुट का पहला दांव फेल: 24 घंटे में निकली बागी धड़े की हवा, 17 साल पहले भट्ठल पर भी भारी पड़े थे कैप्टन; तख्तापलट के प्रयास से सिद्धू भी हाईकमान के सामने कमजोर हुए

जालंधर37 मिनट पहलेलेखक: मनीष शर्मा

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पंजाब में कांग्रेस को अपने बलबूते 2 बार सत्ता दिलाने वाले कैप्टन अमरिंदर सिंह के आगे नवजोत सिद्धू और उनके गुट को अपने पहले ही दांव में मुंह की खानी पड़ी। महीने भर पहले ही पंजाब प्रदेश कांग्रेस कमेटी (PPCC) की कुर्सी संभालने वाले सिद्धू के गुट ने मंगलवार को सूबे में तख्तापलट का प्रयास किया मगर 24 घंटे से भी कम समय में उनकी प्लानिंग की हवा निकल गई। उधर, कांग्रेस हाईकमान ने भी पूरे घटनाक्रम को गंभीरता से लेते हुए पहली बार प्रदेश प्रभारी हरीश रावत के जरिये सिद्धू को यह संदेश दे दिया कि कैप्टन के विरोध को दरकिनार कर उन्हें PPCC का प्रधान बेशक बना दिया गया हो लेकिन इसका मतलब ये कतई नहीं है कि वह सूबे में मनमानी करने लगें।

बुधवार को देहरादून में मिलने पहुंचे सिद्धू खेमे के मंत्रियों और विधायकों से बैठक के बाद कांग्रेस के पंजाब प्रभारी हरीश रावत ने दोटूक कहा-‘नवजोत सिंह सिद्धू पंजाब में सिर्फ कांग्रेस के प्रधान हैं, पूरी पार्टी उनकी मलकीयत नहीं है।’ हरीश रावत के इस बयान से सिद्धू गुट के नेताओं की खूब किरकिरी हुई और उन्हें उल्टे पांव पंजाब लौटना पड़ा जबकि प्रदेश प्रभारी के साथ मीटिंग होने से पहले तक ये नेता देहरादून से सीधे नई दिल्ली जाकर हाईकमान से मिलने के दावे कर रहे थे।

बुधवार को बागी विधायकों व हरीश रावत के बीच बैठक की बड़ी बातें यह रहीं।

बुधवार को बागी विधायकों व हरीश रावत के बीच बैठक की बड़ी बातें यह रहीं।

…तो क्या एक्सपोज हो गए सिद्धू

सियासी जानकारों के अनुसार, जिस तरह पूरा घटनाक्रम चला, उसे देखकर लगता है कि इसकी स्क्रिप्ट पहले से लिखी हुई थी। इस पूरे घटनाक्रम के अंदर नवजोत सिद्धू खुद भले ही फ्रंट पर नहीं आए लेकिन जिस तरह उनके करीबी परगट सिंह बागी धड़े की अगुवाई करते नजर आए और महज कुछ समय के अंदर ही इनकी पंजाब प्रदेश कांग्रेस भवन में सिद्धू के साथ मीटिंग हुई, उससे साफ हो गया कि कहीं न कहीं इस पूरे खेल की जानकारी सिद्धू को पहले से थी। पंजाब प्रदेश कांग्रेस भवन में बागी धड़े के साथ बैठक की फोटो सिद्धू ने खुद ट्वीट करते हुए लिखा कि वह इस मामले को हाईकमान तक पहुंचाएंगे।

2004 में भट्ठल भी नहीं छीन पाई थीं कैप्टन की कुर्सी

कैप्टन अमरिंदर सिंह के लिए पंजाब कांग्रेस में ऐसे हालात पहली बार नहीं बने। 17 साल पहले, वर्ष 2002 में कैप्टन के पहली बार पंजाब का CM बनने के 2 साल बाद वर्ष 2004 में पूर्व CM राजिंदर कौर भट्ठल ने पार्टी के 40 MLA को अपने साथ लेकर कैप्टन की कुर्सी छीनने की कोशिश की थी। तब राजिंदर कौर भट्ठल उन विधायकों के साथ दिल्ली पहुंच गई थीं मगर हाईकमान ने उनकी बात नहीं मानी। हां, उस घटनाक्रम के बाद भट्ठल को पंजाब में डिप्टी सीएम की कुर्सी जरूर मिल गई थी। इस बार भी माना जा रहा है कि हरीश रावत के हस्तक्षेप के बाद कैप्टन कैबिनेट के संभावित बदलाव में बागी मंत्रियों की कुर्सी नहीं छीनेंगे।

चुनावी हार के डर से बड़ा है ‘ब्रांड कैप्टन’

बुधवार को देहरादून में हरीश रावत के साथ हुई बागी धड़े की बैठक के बाद यह भी साफ हो गया कि प्रदेश कांग्रेस के एक गुट की ओर से हाईकमान को 2022 में होने वाले पंजाब विधानसभा चुनाव में पार्टी की हार का जो डर दिखाया जा रहा है, वह ‘ब्रांड कैप्टन’ के आगे फेल है। हाईकमान की नजर में अभी भी कैप्टन अमरिंदर सिंह ही ऐसे नेता हैं जो पंजाब में कांग्रेस की सरकार रिपीट करवाने की क्षमता रखते हैं। बागी धड़े ने साढ़े 4 बरसों में किसी भी मुद्दे पर कोई काम न होने का ठीकरा कैप्टन के सिर फोड़ना चाहा लेकिन हाईकमान ने उस पर ध्यान नहीं दिया। साफ है कि हाईकमान की नज़र में कैप्टन ही ऐसे नेता हैं जो पंजाब में विधानसभा चुनाव में शिरोमणि अकाली दल और आम आदमी पार्टी को सही मायनों में टक्कर दे सकते हैं। प्रदेश कांग्रेस का एक बड़ा वर्ग अभी भी कैप्टन के साथ है

सिद्धू को प्रधान बनवाने वाली ‘माझा ब्रिगेड’ भी बेअसर

पंजाब कांग्रेस में ‘माझा ब्रिगेड’ के नाम से मशहूर तृप्त राजिंदर बाजवा, सुखजिंदर रंधावा और सुखविंदर सिंह सुख सरकारिया ने कैप्टन अमरिंदर सिंह से अपने रिश्ते बिगड़ने के बाद नवजोत सिद्धू को प्रदेश कांग्रेस प्रधान बनवाने के लिए पूरा जोर लगा दिया और इसमें कामयाब भी रहे। गौरतलब है कि नवंबर 2015 में पंजाब कांग्रेस के प्रधान प्रताप बाजवा की कुर्सी छीनने और उनकी जगह कैप्टन अमरिंदर सिंह को PPCC प्रधान बनवाने में भी इसी ‘माझा ब्रिगेड’ ने अहम रोल निभाया था। तब बाजवा की कुर्सी चली गई थी मगर इस बार कैप्टन अमरिंदर सिंह को CM की कुर्सी से हटवाने में इस ब्रिगेड को कामयाबी नहीं मिल पाई।

2017 में ही पड़ गई थी बगावत की नींव, दिल्ली से पहले देहरादून में ही निकला दम

कैप्टन अमरिंदर सिंह के खिलाफ सीधी बगावत भले ही अब हुई हो लेकिन इसकी नींव वर्ष 2017 में पंजाब में कांग्रेस की सरकार बनते ही पड़ गई थी। 2017 में कैप्टन अमरिंदर सिंह के CM बनने के बाद उनकी कैबिनेट में शामिल नवजोत सिद्धू और सुखजिंदर सिंह रंधावा में नजदीकियां बढ़ गईं। तब सिद्धू और रंधावा चाहते थे कि सरकार पंजाब में केबल माफिया और उसे फायदा पहुंचाने वाले पूर्व डिप्टी सीएम सुखबीर बादल पर सीधी कार्रवाई करे। सिद्धू ने ये मामला विधानसभा में भी उठाया मगर कैप्टन ने रिपोर्ट मंगवाने की बात कहकर मामला ठंडे बस्ते में डाल दिया।

उस समय सिद्धू ने लोकल बॉडीज मिनिस्टर होने के नाते अपने महकमे के तहत आने वाले कर्मचारियों को लगाकर केबल पर एक सर्वे भी करवाया था। उसी बीच 2019 के लोकसभा चुनाव प्रचार के दौरान कैप्टन अमरिंदर सिंह से हुए मतभेदों के बाद सिद्धू को ही कैबिनेट से इस्तीफा देना पड़ गया। PPCC प्रधान बनते ही सिद्धू ने CM से नाराज मंत्रियों-विधायकों को अपने साथ मिलाते हुए कैप्टन की घेराबंदी की मगर इसे देहरादून में हरीश रावत ने नाकाम कर दिया।

सियासी समझ: कैप्टन का झुकना ही उनकी ताकत बन गया

नवजोत सिद्धू ने पंजाब कांग्रेस प्रधान बनने से पहले पंजाब सरकार के साथ-साथ कैप्टन अमरिंदर सिंह पर सार्वजनिक रूप से कई व्यक्तिगत आरोप लगाए थे जिससे कैप्टन बेहद नाराज थे। उन्होंने अपनी नाराजगी खुलकर जाहिर भी की थी। जब सिद्धू को कांग्रेस प्रधान बनाने की बात आई तो कैप्टन ने शर्त रखी थी कि वह सिद्धू से तभी मिलेंगे जब वह अपने आरोपों के लिए सार्वजनिक रूप से माफी मांगें मगर सिद्धू ने माफी नहीं मांगी। इसके बावजूद कैप्टन अमरिंदर सिंह बड़प्पन दिखाते हुए सिद्धू के पंजाब कांग्रेस प्रधान का कार्यभार संभालने के मौके पर आयोजित समारोह में पहुंचे थे। उस दिन स्टेज पर भी सिद्धू ने कैप्टन को इग्नोर किया मगर कैप्टन शांत रहे। कांग्रेस हाईकमान की नजर में कैप्टन का शांत रवैया ही उनकी ताकत बन गया और बागी धड़े को मुंह की खानी पड़ी।

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