कुल्लू दशहरा से जुड़ी रोचक बातें: बुंगड़ू महादेव ने बताया था मिट्‌टी से सोना निकालने का तरीका, देवता की सेवा में चलते हैं 250 भक्त

कुल्लू11 घंटे पहले

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कोठी गोपालपुर के देवता श्री बुंगड़ू महादेव हर साल आते हैं कुल्लू दशहरा।

बंजार विकास खंड के तहत गोशाला गांव कोठी गोपालपुर के देवता श्री बुंगड़ू महादेव जब से अंतरराष्ट्रीय कुल्लू दशहरा की शुरूआत हुई, तब से निरंतर कुल्लू दशहरा में आ रहे हैं। इस संबंध में गोशाला गांव कोठी गोपालपुर के कारदार नरोत्तम नेगी ने जानकारी दी। उन्होंने बताया कि देवता श्री बुंगड़ू महादेव लगातार दशहरे पर भगवान रघुनाथ जी के दर्शन करने आते हैं।

दशहरा पर्व से 3 दिन पहले अपने देवता को लेकर लोग देवलुओं समेत अपने घरों से चलते हैं तथा पहली रात को औट में ठहराव करने के बाद दूसरी रात को नगवाईं, भुटठी, शमशी में रुकते हैं। तीसरे दिन अंतरराष्ट्रीय कुल्लू दशहरा के प्रथम दिन कुल्लू के ढालपुर मैदान में भगवान रघुनाथ जी के दर्शनार्थ पहुंचते हैं।

40 गांवों के लोग मानते हैं महादेव को
वर्तमान में उपरोक्त चार हारों के लगभग 40 गांवों के 3500 से भी अधिक लोग श्री बुंगड़ू महादेव जी की पूजा अर्चना करते हैं। चनौन, देउठा व मंगलौर तीन पंचायतों के लगभग 500 परिवार देवता में अपनी पूर्ण आस्था रखते हुए निरंतर सहयोग प्रदान करते हैं। जब भी देवता अपने मूल स्थान से बाहर आते हैं तो कम से कम 250 व्यक्ति उनकी सेवा में हमेशा साथ चलते हैं।

लोगों को बताया मिट्‌टी से सोना निकालने का तरीका।

लोगों को बताया मिट्‌टी से सोना निकालने का तरीका।

16वीं शताब्दी में बूंग में प्रकट हुए थे महादेव
देवता श्री बुंगड़ू महादेव के बारे में विस्तार से जानकारी देते हुए कारदार नरोत्तम नेगी ने बताया कि देवता को महादेव के नाम से ही माना जाता हैं। इनकी उत्पत्ति 16वीं शताब्दी में बूंग पर्वत से हुई थी और सैंज होते हुए देवता तलाड़ा पहुंचे तथा वहां के लोगों से बातचीत करके रोजगार के लिए मिट्टी खोदकर लोगों को सोना निकालने की युक्ति बताई।

लोगों ने इस युक्ति को समझा तथा वहां जितना भी सोना निकलता था। उसका आधा हिस्सा राजकोष में और आधा हिस्सा देवता के खजाने में जमा होता था। इसमें से एक सेर सोना उन ब्राह्मणों को दिया जाता था, जो देवता के चारों ओर उनकी साफ-सफाई तथा चौका लगाते थे। एक बार ब्राह्मण परिवार की एक औरत चौका करने आई, जो अस्वच्छ (माहवारी) थी। इससे देवता नाराज हुए।

परिणामस्वरूप तलाड़ा में बादल फटा और आसमानी बिजली गिरने से मंदिर भी खंडित हो गया और शिवलिंग पानी में बहता हुआ लारजी पहुंच गया। उस वक्त गांव के लोग नमक लाने सरी कोटा द्रंग जाते थे। यह लोग अपने किल्टे में नमक भरकर लाते थे और लारजी में अपने किल्टे रखकर आराम करते थे। एक दिन जब कुछ लोग वहां आराम कर रहे थे तो निर्मल नाम के एक व्यक्ति को नदी में कुछ चमकती हुई चीज दिखाई दी।

जैसे ही निर्मल वहां पहुंचा तो देवता ने उससे कहा कि आप अपना नमक मेरी जगह रख कर मुझे अपने किल्टे में डाल कर ले चलो। निर्मल ने वैसा ही किया और उस शिवलिंग को गोशाला गांव पहुंचाया और गांव में एक पवित्र स्थान पर उसकी पूजा-अर्चना के साथ पूरे विधि-विधान के साथ स्थापित कर दिया। देवता ने स्थापना के बाद लोगों को अपनी चमत्कारी शक्तियों का प्रमाण दिया और इसके बाद उपरोक्त चारों हारों के लोगों ने मिलकर देवता के लिए सुंदर मंदिर का निर्माण करावाया। समय बीतने के साथ वहां पर सोने की मूर्ति का निर्माण किया गया।

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