कल्याण के गांव से रिपोर्ट: कल्याण सिंह की पत्नी आज भी गांव में ही रहती हैं, लोग कहते हैं कि बाबूजी हमारे हर सुख-दुख में शामिल होते थे… समय कम होने पर सीधे हेलिकॉप्टर से आ जाते थे

अलीगढ़26 मिनट पहले

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उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह नहीं रहे। दैनिक भास्कर की टीम अलीगढ़ के उनके पैतृक गांव मढ़ौली पहुंची, जहां उनका घर है। परिवार में उनकी पत्नी गांव में ही रहती हैं। हालांकि कल्याण सिंह के आखिरी समय में वो भी उनके पास लखनऊ चली गईं थीं। गांव में हमें उनके पड़ोसी और गांव के लोग मिले। कल्याण सिंह के प्रति सभी में अपार प्रेम देखने को मिला। पढ़िए, उनके गांव से यह रिपोर्ट…

अलीगढ़ के छोटे से गांव मढ़ौली और यहां के लोगों के कल्याण की हमेशा चाह रखने वाले कल्याण सिंह हर दिल अजीज रहे। गांव के लोग बताते हैं कि उनका यहां बचपन बीता, तो राजनीतिक जीवन शुरू होते ही गांव की काया पलट का खाका खींचने लगे, जो लगातार चलता रहा। हर वर्ग के लोगों के बीच रहकर उनके सुख-दुख में साथ देना वह अपना सौभाग्य समझते थे। विकास में दखल कुछ इस तरह था कि सरकार किसी की भी रही, जिला प्रशासन का मढ़ौली गांव के विकास की ओर हमेशा ध्यान रहा।

यह गांव का प्रवेश द्वार है। कल्याण सिंह का गांव होने की वजह से इसका नाम कल्याण द्वार रखा गया है।

यह गांव का प्रवेश द्वार है। कल्याण सिंह का गांव होने की वजह से इसका नाम कल्याण द्वार रखा गया है।

आखिरी बार 7 साल पहले गांव आए थे
बीमार होने के कारण कल्याण सिंह का गांव आना-जाना कम हो गया था। आखिरी बार वह लगभग 7 साल पहले गए थे। दूर भले हो गए थे, फिर भी गांव के हर एक परिवार के साथ किसी न किसी तरह से जुड़े रहते थे। फोन से या अपने करीबियों को गांव भेजकर सबका हालचाल लेते रहते थे। वह अपने गांव के लोगों को कभी भुला नहीं पाए।

गांव मढ़ौली में बना कल्याण सिंह का घर अब कुछ इस हाल में है। कल्याण सिंह की व्यस्तता होने के बावजूद गांव के लोगों के स्नेह की वजह से उनकी पत्नी ने गांव का घर नहीं छोड़ा और लोगों से मेल मिलाप करती रहीं। लोगों की समस्याओं और हालचाल को कल्याण सिंह तक पहुंचाती रहीं।

गांव मढ़ौली में बना कल्याण सिंह का घर अब कुछ इस हाल में है। कल्याण सिंह की व्यस्तता होने के बावजूद गांव के लोगों के स्नेह की वजह से उनकी पत्नी ने गांव का घर नहीं छोड़ा और लोगों से मेल मिलाप करती रहीं। लोगों की समस्याओं और हालचाल को कल्याण सिंह तक पहुंचाती रहीं।

गांव के लोगों ने हमेशा बाबूजी कहकर पुकारा
पूर्व सीएम कल्याण सिंह के गांव उनके पैतृक मकान से कुछ ही दूरी पर रहने वाले किसान दीनू ने बताया कि कल्याण सिंह अपने गांव के हर एक व्यक्ति को उसके उपनाम से ही बुलाते थे। इसके पीछे उनका मानना है कि इससे अपनेपन का अहसास होता है। वहीं, गांव के लोगों ने उनको बाबूजी कहकर पुकारा। भले ही वह अपनी राजनैतिक व्यस्तताओं के कारण गांव नही आ पाते थे, लेकिन किसी से दूर भी नही हुए। दीनू ने बताया कि गांव का बच्चा-बच्चा उन्हें अपने बाबा के रूप में जानता है।

राजस्थान के गवर्नर रहने के दौरान साल 2015 में कल्याण सिंह अपने पैतृक गांव मढ़ौली पहुंचे थे। कल्याण सिंह ने गांव में पहुंचते ही घर के बाहर चबूतरे में कुर्सी डालकर ग्रामीणों का हालचाल जाना। इस दौरान उनकी पत्नी भी मौजूद रहीं। इस दौरान वह दो घंटे तक रुके थे। लोगों से उनके काम के बारे में भी पूछा था।

राजस्थान के गवर्नर रहने के दौरान साल 2015 में कल्याण सिंह अपने पैतृक गांव मढ़ौली पहुंचे थे। कल्याण सिंह ने गांव में पहुंचते ही घर के बाहर चबूतरे में कुर्सी डालकर ग्रामीणों का हालचाल जाना। इस दौरान उनकी पत्नी भी मौजूद रहीं। इस दौरान वह दो घंटे तक रुके थे। लोगों से उनके काम के बारे में भी पूछा था।

पत्नी ने नहीं छोड़ा गांव, देती रहीं खबर
कल्याण सिंह की पत्नी रामवती देवी को सारा गांव माताजी कहकर बुलाता है। राजनीतिक बुलंदियों को छूने के बाद कल्याण सिंह को देश-विदेश के दौरे के लिए बाहर रहना पड़ा और अलीगढ़ भी वह कभी-कभी आते थे। लेकिन उनकी पत्नी ने ग्रामीणों के प्रेम और स्नेह के कारण गांव को कभी नही छोड़ा। मुख्यमंत्री और राज्यपाल की पत्नी होने के बावजूद भी उन्होंने कभी प्रोटोकॉल नहीं अपनाया। वह बिना किसी प्रोटोकॉल के हमेशा गांव वालों के बीच ही रहीं और हर दिन शाम को सभी के साथ मिलती जुलती भी रहीं। कभी उन्हें किसी ने कोई परेशानी बताई तो उसका समाधान तुरंत कराया। इससे ग्रामीणों को हमेशा यह विश्वास रहा कि बाबूजी व्यस्त कार्यक्रमों के कारण भले ही गांव से दूर थे, लेकिन अपनी पत्नी के माध्यम से हमेशा वह ग्रामीणों के बीच में ही रहते थे। फिलहाल, कल्याण के अंतिम समय में वह लखनऊ में उनके साथ ही थीं।

गांव की गलियां कच्ची नहीं बल्कि साफ और पक्की हैं। इतना ही नहीं, बकाया पानी के निकासी की भी व्यवस्था है। कहीं से शिकायत आने पर उसे तुरंत दूर किया जाता है।

गांव की गलियां कच्ची नहीं बल्कि साफ और पक्की हैं। इतना ही नहीं, बकाया पानी के निकासी की भी व्यवस्था है। कहीं से शिकायत आने पर उसे तुरंत दूर किया जाता है।

मढ़ौली गांव का विकास

  • इस गांव में सड़क, सफाई और पानी की कोई विशेष दिक्कत नहीं है।
  • जब से मढ़ौली नगर पालिका क्षेत्र में शामिल हुआ, शहरी सभी योजनाओं का लाभ मिलने लगा।
  • गांव में गली सीसी रोड वाली हैं और पानी निकासी के लिए पक्के नाले बने हैं।
  • गांव में बारात घर बेहतर स्थिति है।
  • प्राथमिक, जूनियर व कस्तूरबा गांधी छात्रा आवासीय स्कूल की हालत काफी अच्छी है।
साल 1997 का एक वाकया कल्याण सिंह का उनके गांव से मोह को बताता है। उनके एक कार्यकर्ता के निधन पर वह मुख्यमंत्री होते हुए भी गांव पहुंचे और अर्थी को कंधा भी दिया।

साल 1997 का एक वाकया कल्याण सिंह का उनके गांव से मोह को बताता है। उनके एक कार्यकर्ता के निधन पर वह मुख्यमंत्री होते हुए भी गांव पहुंचे और अर्थी को कंधा भी दिया।

गांव आकर लोगों के सुख-दुख में शामिल रहना कल्याण सिंह के स्वभाव में ही था। यही कारण है कि वह हर वर्ग के चहेते रहे। वह हर छोटी-बड़ी बात पर गांव पहुंचकर लोगों से मिलते थे।

गांव आकर लोगों के सुख-दुख में शामिल रहना कल्याण सिंह के स्वभाव में ही था। यही कारण है कि वह हर वर्ग के चहेते रहे। वह हर छोटी-बड़ी बात पर गांव पहुंचकर लोगों से मिलते थे।

मुख्यमंत्री होते हुए कार्यकर्ता को कंधा देने पहुंचे
कल्याण सिंह के करीबी रहे कृपाल सिंह बताते हैं कि वह दोबारा मुख्यमंत्री बन चुके थे और प्रदेश की कमान उनके हाथ में थी। तभी कार्यकर्ता प्रकाश गुप्ता की मौत हो गई। जब उन्हें इस बात का पता चला तो वह लखनऊ से सीधे अपने गांव आ पहुंचे और कार्यकर्ता की शव यात्रा में शामिल हुए। न सिर्फ उन्होंने उनके परिजनों से मिलकर उन्हें सांत्वना दी बल्कि कार्यकर्ता की अर्थी को कंधा भी दिया। इस दौरान उनके पुत्र राजवीर सिंह उर्फ राजू भैया भी साथ में मौजूद रहे और अपने पिता के साथ शव यात्रा को कंधा दिया। गांव के बुजुर्गों ने बताया कि उस समय कल्याण सिंह भावुक हो पड़े थे और अपने कार्यकर्ता की मौत पर उन्हें काफी दुख हुआ था। क्योंकि उनके गांव उनके विधानसभा क्षेत्र से जुड़ा हर एक व्यक्ति उनके दिल के काफी करीब रहता है और हर किसी से उनका स्नेह रहा है।

अगर गांव के आसपास भी कहीं कल्याण सिंह हैं तो वह गांव के हर छोटे-बड़े कार्यक्रम में शामिल जरूर होते थे। फिर चाहे वो गोष्ठी ही क्यों न हो। गांव में इसी तरह के एक कार्यक्रम में कल्याण सिंह शामिल हुए थे।

अगर गांव के आसपास भी कहीं कल्याण सिंह हैं तो वह गांव के हर छोटे-बड़े कार्यक्रम में शामिल जरूर होते थे। फिर चाहे वो गोष्ठी ही क्यों न हो। गांव में इसी तरह के एक कार्यक्रम में कल्याण सिंह शामिल हुए थे।

प्राथमिक विद्यालय में लग रहे 40 लाख
गांव मढ़ौली के प्राथमिक विद्यालय में सौंदर्यीकरण का काम चल रहा है। 40 लाख रुपए से इस कायापलट होगा। इतना ही नहीं, मढ़ौली के मजरे जनकपुर में विकास जारी है। पिछले चार सालों की बात करें तो नगर पालिका की ओर से गांव मढ़ौली व जनकपुर में 5 करोड़ से अधिक की राशि विकास कार्यों के लिए खर्च की जा चुकी है।

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