ओडिशा सीएम के लिए अचानक आया माझी का नाम: लोग बोले-लोकप्रिय हैं, कोई बात उनके खिलाफ नहीं थी, पटनायक के घोटालों की आवाज उठाई

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नई दिल्ली2 घंटे पहलेलेखक: संध्या द्विवेदी

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मोहन चरण माझी ने 12 जून को ओडिशा के 15वें मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली।

ओडिशा में नवीन पटनायक की 25 साल की सत्ता खत्म और भाजपा का शासन शुरू हो चुका है। जीत-हार का फैसला 4 जून को आ चुका था। पूर्व के इस राज्य में पहली बार भाजपा सरकार बनाने जा रही थी। जनमत इतना बड़ा था कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी नतीजों के बाद अपनी नई आर्मी से मिलने खुद वहां पहुंचे।

उसी दिन से ब्रेन स्टॉर्मिंग शुरू हुई कि इस राज्य का मुख्यमंत्री कौन होगा। कई नाम आए। पश्चिमी ओडिशा के संभलपुर लोकसभा में आने वाली विधानसभा सीट ब्रजनगर के विधायक सुरेश पुजारी का नाम सबसे आगे था। भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष मनमोहन सामल भी कतार में थे। और भी नाम थे, लेकिन तीसरे और चौथे नंबर पर।

भाजपा कार्यालय रायरंगपुर, शाम करीब 5.30 बजे मांझी का नाम अचानक उछला

ओडिशा के मुख्यमंत्री मोहन चरण माझी बुधवार 12 जून को उत्कलमणि गोपबंधु दास की मूर्ति पर माल्यार्पण करने पहुंचे थे।

ओडिशा के मुख्यमंत्री मोहन चरण माझी बुधवार 12 जून को उत्कलमणि गोपबंधु दास की मूर्ति पर माल्यार्पण करने पहुंचे थे।

मुख्यमंत्री के चुनाव से एक दिन पहले (10 जून) शाम 5 बजे के पहले तक सुरेश पुजारी और मनमोहन सामल के नामों की चर्चा थी, रायरंगपुर में ही नहीं, बल्कि पूरे ओडिशा में थी। रायरंगपुर द्रौपदी मुर्मू की कर्मभूमि रही है। मुर्मू ने टीचिंग और फिर राजनीतिक करियर की शुरुआत यहीं से की।

एक आधिकारिक सोर्स ने बताया, ‘भाजपा कार्यालय में भीड़ थी। सीएम के नाम को लेकर चर्चा जोरों पर थी। पुजारी और मनमोहन सामल के नाम चल रहे थे। पुजारी का नाम सबसे आगे था, लेकिन करीब 5.30 बजे अचानक माझी का नाम सामने आया। नतीजे आने के बाद पहली बार माझी का नाम आया था।’

‘उनका नाम किसने लिया? ये तो मैंने ध्यान ही नहीं दिया। पर नाम अचानक आया, क्योंकि पहले उनका नाम रेस में नहीं था। फिर चर्चा हुई कि इस पद पर उनकी दावेदारी क्यों सही है। मोहन चरण माझी के नाम पर किसी को ऐतराज नहीं था।’ सूत्र ने आगे बताया कि रात 8-8.30 बजे तक हम सब लोग कार्यालय में थे।

करीब 3 घंटे की चर्चा में माझी के नाम पर सब लोग राजी थे। जब उनके गुणों पर चर्चा हो रही थी तो एक भी बात उनके खिलाफ नहीं जा रही थी। वे पहली बार साल 2000 में विधायक बने। तब से लेकर अब तक वे पटनायक के घोटालों पर आवाज उठाते रहे हैं। उनका स्वभाव से सबसे मिलकर रहने का है। वे सारे विधायकों के बीच लोकप्रिय हैं।

भुवनेश्वर में पुजारी का नाम अब भी तय था
ओडिशा में पार्टी कार्यकर्ताओं के बीच से निकला ये नाम नेशनल मीडिया की सुर्खियों में छा गया। सुरेश पुजारी ही नए सीएम होंगे, ओडिशा में लगभग ये तय था। भाजपा के एक पुराने कार्यकर्ता से जब माझी के चुनाव के बारे में पूछा गया तो उनका कहना था, ‘मीटिंग शुरू होने से पहले तक हमारे पास यही सूचना थी कि पुजारी ही सीएम बनेंगे। दिल्ली की लीडरशिप से मेरी बात हुई थी, पुजारी सीएम के पद के सबसे ज्यादा करीब थे। मध्य प्रदेश, राजस्थान और उत्तराखंड की तरह भाजपा ने ओडिशा को भी सरप्राइज किया। माझी अच्छे नेता हैं, लेकिन उनका नाम था ही नहीं। मैं तो खुद नहीं समझ पा रहा कि क्या हुआ? शायद बाद में पता चले। क्या हुआ।’

9 जून से मांझी का फोन स्विच ऑफ था…
मयूरभंज के सांसद बिस्वेस्वर टुडू के करीबी सूत्रों ने बताया, ‘मोहन माझी उन नेताओं में से हैं, जिनका फोन सातों दिन 24 घंटे खुला रहता है। लेकिन 9 जून की शाम से उनका फोन स्विच ऑफ जा रहा था। हमारे सांसद साहब उन्हें फोन कर रहे थे, नहीं लगा तो उन्होंने हमसे कोशिश करने के लिए कहा। वो झल्लाए भी कि फोन क्यों नहीं लग रहा। कहां व्यस्त हैं।’

सूत्र ने बताया कि अब समझ में आ रहा है कि शायद दिल्ली से उन्हें किसी से बात करने के लिए मना किया गया हो। इसलिए वे फोन बंद किए हुए थे। एक और बात कि हमारे सांसद तक को ये नहीं पता था कि माझी सीएम बनेंगे। वे तो हमेशा की तरह किसी और बात के लिए माझी को फोन कर रहे थे।

भुवनेश्वर में 1 घंटा 40 मिनट की बैठक और आखिर में माझी बने सीएम
दिल्ली से रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव को इस काम के लिए चुना गया। 11 जून को दोनों वरिष्ठ नेता ओडिशा के लिए रवाना हुए। मीटिंग 4 बजे से थी, लेकिन 4 बजकर 35 मिनट पर शुरू हुई और 6.15 बजे खत्म हुई। अंदर केवल दोनों कैबिनेट मंत्री और ओडिशा के विधायक थे। बाहर भीड़ खड़ी थी। भाजपा के कार्यकर्ता और स्टेट और नेशनल एग्जीक्यूटिव कमेटी के लोग थे। मीटिंग के भीतर मौजूद एक विधायक ने बताया कि पहले कुछ नामों की चर्चा हुई। पुजारी का नाम सबसे पहले आया।

‘दिल्ली की टीम ने हमें बताया, कुछ नाम हमारे पास हैं। लेकिन हम चाहते हैं कि नाम आपके बीच से आए। आप बताएं कि सीएम कैसा चाहिए? सूत्र के मुताबिक, हमने करीब 30 मिनट का ब्रेक लिया। विधायकों ने आपस में चर्चा की। चर्चा के बाद मोहन चरण माझी के नाम पर सहमति बनी। हमारे वरिष्ठ नेता और अब उपमुख्यमंत्री केवी सिंहदेव ने उनके नाम को प्रस्तावित किया। और बस मोहन जी के नाम पर राजनाथ जी और भूपेंद्र यादव जी ने भी मुहर लगा दी।’

माझी ही क्यों चुने गए
मीटिंग में मौजूद सूत्र ने बताया, ‘माझी उस वक्त से पटनायक के खिलाफ मोर्चा खोले हुए थे, जब हम (BJP) माइनॉरिटी में थे। अवैध खनन को लेकर सबसे बड़ा घोटाला क्योंझर और मयूरभंज में हुआ। उस उन्होंने लगातार मोर्चा खोला।’ सूत्र ने ये भी बताया, उनकी दूसरी खासियत है कि वे विधायकों के बीच लोकप्रिय हैं। सबकी सुनते हैं। विधायक रहते हुए उन्होंने पूरा ओडिशा घूमा है।

पुजारी सीएम बनते बनते क्यों रह गए
ब्रजनगर के विधायक सुरेश पुजारी का नाम जिस वजह से सीएम की पोस्ट के लिए आया था, वही वजह उनके सीएम बनने के रास्ते में रोड़ा बन गई। हिंदुत्व का बड़ा चेहरा और कंधमाल जैसे दंगों में उनका नाम होना उनके खिलाफ साबित हुआ। पुजारी आदिवासी समुदाय से हैं।

ओडिशा में आदिवासी समुदाय को मिशनरीज द्वारा धर्म परिवर्तन (कन्वर्जन) करने का आरोप लगता रहता है। कन्वर्ट हो चुके आदिवासी समुदाय के बीच पुजारी को लेकर मिली-जुली राय है। ओडिशा में लोगों से बात करने के बाद जो निकलकर आया, वो ये कि भाजपा आलाकमान ओडिशा में किसी हार्डलाइनर को नहीं चुनना चाहता था।

नवीन पटनायक सेकुलर छवि वाले नेता थे। अगर उन्होंने जगन्नाथ मंदिर और दूसरे मंदिरों के लिए फंड दिया तो चर्च और मस्जिदों के लिए भी दिया। हर धर्म के त्योहार पर बधाई और फंड पटनायक के खजाने से जारी होता था।

पुजारी हिंदुत्व का बड़ा चेहरा, कंधमाल दंगों को लीड करने का आरोप
ओडिशा की राजनीति में सुरेश पुजारी हिंदुत्व का बड़ा चेहरा हैं। राज्य में हिंदू मुस्लिम नहीं, बल्कि हिंदू-ईसाई के बीच धर्म की लड़ाई है। यहां धर्म परिवर्तन का मुद्दा बड़ा है। धर्म परिवर्तन कराने का आरोप मुसलमानों नहीं, बल्कि ईसाइयों पर है। सुरेश पुजारी पश्चिम ओडिशा के संबलपुर से आते हैं। पश्चिम ओडिशा के कंधमाल में भीषण दंगे हुए थे।

2008 में कंधमाल में हुए दंगे हिंदू और ईसाइयों के बीच हुए थे। उस वक्त सुरेश पुजारी भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष थे। पुजारी ने 1997 में भाजपा जॉइन की थी। उससे पहले वे छात्र राजनीति में रहे थे। पुजारी ने संघ के प्रचारक के तौर पर भी करीब एक दशक तक काम किया। यानी पुजारी संघ की सेवा के बाद भाजपा में आए। 2008 में कंधमाल दंगों के दौरान पुजारी का नाम सबसे ज्यादा चर्चा में आया। उन पर दंगों को भड़काने का आरोप लगा।

कंधमाल दंगों में कैसे आया था पुजारी का नाम
23 अगस्त 2008 की रात कंधमाल में दंगे भड़के थे। वजह थी- विश्व हिंदू परिषद के स्वामी लक्ष्मणानंद सरस्वती की हत्या। पुलिस ने इसे माओवादियों की हरकत कहा, लेकिन हिंदू संगठनों ने इसे मिशनरीज की साजिश बताया। स्वामी लक्ष्मणानंद सरस्वती के शव की कई किलोमीटर तक यात्रा निकालने के बाद बजरंग दल, विश्व हिंदू परिषद और राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के लोग श्मशान घाट पहुंचे। इस यात्रा में सुरेश पुजारी सबसे आगे की कतार में थे।

दंगों में 39 ईसाइयों की हत्या हुई और कई हजार घर जला दिए गए। 20 से ज्यादा चर्च चलाए गए। ये सरकारी रिपोर्ट के आंकड़े हैं, लेकिन अनौपचारिक आंकड़े इससे कहीं ज्यादा हैं। दंगों की जांच रिपोर्ट अब तक सामने नहीं आई है।

शाह की हिंदू वोट एकजुट करने की वाली टीम का हिस्सा रहे
2014 में अमित शाह ने एक टीम बनाई थी। इस टीम में 5 लोग थे। इनका काम था देश के अलग-अलग हिस्सों हिंदू वोटों को एकजुट करना। हिंदुत्व के मुद्दों को लोगों तक पहुंचाना। इस टीम में 5 लोग थे- गोरधन जदाफिया (उत्तर प्रदेश), सुरेश पुजारी (ओडिशा), सुनील देवधर (आंध्र प्रदेश), अरविंद मेनन (पश्चिम बंगाल) और हिमंता बिस्व सरमा (असम)।

सुरेश पुजारी उस वक्त भले ही ओडिशा के लिए लोकसभा की एक सीट और विधानसभा में केवल 10 सीट लाए हों, लेकिन 2024 में 1 को 20 और 10 को 75 करने का श्रेय पुजारी को ही जाता है। पुजारी प. बंगाल की उस टीम में भी शामिल थे, जिसे हिंदू वोट को एकजुट करने का जिम्मा मिला था।

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ओडिशा के 15वें CM बने मोहन चरण माझी:भाजपा के पहले; केवी सिंहदेव और प्रभाती परिदा डिप्टी CM बने

ओडिशा में पहली बार भाजपा की सरकार बन गई है। मोहन चरण माझी ने बुधवार 12 जून को राज्य के 15वें मुख्यमंत्री के तौर पर शपथ ली। उनके साथ दो डिप्टी CM कनक वर्धन सिंहदेव और प्रभाती परिदा ने भी शपथ ली। शपथ ग्रहण समारोह में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह, नितिन गडकरी, जेपी नड्डा, अमित शाह के अलावा उत्तर प्रदेश, गुजरात, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, असम, हरियाणा, गोवा और उत्तराखंड के CM भी मौजूद रहे। पूरी खबर पढ़ें…

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