एआई की मदद से कृषि उत्पादन बढ़ाने की कावायद: माइक्रोसॉफ्ट, सिस्को और अमेजन से करार, लेकिन विदेशी कंपनियों की पहुंच में होगा देश के किसानों और जमीनों का डेटा

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5 घंटे पहलेलेखक: श्रुति श्रीवास्तव

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देश में फसल उत्पादन बढ़ाने सरका

देश में फसल उत्पादन बढ़ाने में मदद के बहाने विदेशी कंपनियों की भारतीय बाजार में पैठ बढ़ने लगी है। अमेजन, माइक्रोसॉफ्ट और सिस्को सिस्टम्स जैसे विदेशी टेक्नोलॉजी दिग्गजों और जियो प्लेटफॉर्म्स व आईटीसी जैसी देशी कंपनियों ने सरकार से हाथ मिलाया है। हालांकि इससे किसानों के साथ तनाव बढ़ सकता है। दरअसल, सरकार देश में खाद्यान्न की बर्बादी रोकना चाहती है। इसके लिए देश में 2014 से एकत्र किया जा रहा डेटा अगले साल अप्रैल से इन कंपनियों से साझा किया जाएगा।

हालांकि आशंका है कि कंपनियां भविष्य में डेटा का इस्तेमाल अपने फायदे के लिए कर सकती हैं। देश में अब तक 12 करोड़ किसानों में से 5 करोड़ से अधिक के सार्वजनिक रूप से उपलब्ध डेटा को एकत्र किया गया है। इस काम से अब तक स्टार एग्रीबाजार टेक्नोलॉजी, ईएसआरआई इंडिया टेक्नोलॉजीज, पतंजलि ऑर्गेनिक रिसर्च इंस्टीट्यूट और निंजाकार्ट जैसी स्थानीय कंपनियां जुड़ चुकी हैं।

दरअसल, सरकार 36.11 लाख करोड़ रुपए के कृषि क्षेत्र में लंबित सुधार को आगे बढ़ाना चाहती है। इसके लिए ग्रामीण आमदनी बढ़ाना, आयात में कटौती करना, अनाज की बर्बादी रोकना सरकार की प्राथमिकता है। अर्न्स्ट एंड यंग का अनुमान है कि 2025 तक देश के कृषि-टेक्नोलॉजी इंडस्ट्री का आकार 1.77 लाख करोड़ रुपए तक पहुंचने की क्षमता रखता है, जिसकी मौजूदा पैठ महज 1% है।

100 गांवों में पायलट प्रोजेक्ट पूरा हो चुका
माइक्रोसॉफ्ट ने एआई और मशीन लर्निंग की परख के लिए 100 गांवों का चयन किया है। अमेजन पहले से मोबाइल एप से किसानों को रियल-टाइम सलाह और सूचना दे रही है। स्टार एग्रीबाजार जमीन की प्रोफाइलिंग, फसल अनुमान, मिट्टी और मौसम के पैटर्न पर डेटा जुटा रही है। ऐसी ही डेटा संचालित प्रणाली पिछले साल कर्नाटक में शुरू की गई थी। राज्य के मुख्य सचिव राजीव चावला के मुताबिक, इससे सरकारी लाभों का वितरण पारदर्शी हुआ है। केंद्रीकृत डेटा के जरिए किसानों को ऋण दिए। इससे लीकेज बंद करने और धोखाधड़ी रोकने में मदद मिली है।

छोटे और कमजोर किसानों को नुकसान की आशंका
ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड बैंकिंग ग्रुप में आसियान और भारत के मुख्य अर्थशास्त्री संजय माथुर के मुताबिक, ‘इस डेटाबेस से कृषि उत्पादों की मार्केटिंग, सब्सिडी का लक्ष्य जैसे काम आसान होंगे।’ हालांकि पंजाब के किसान सुखविंदर सिंह सभरा बताते हैं, ‘यह छोटे और कमजोर किसानों को नुकसान पहुंचा सकता है। कंपनियों को पता चल जाएगा कि उपज कहां अच्छी नहीं है। वे वहां के किसानों से सस्ते में खरीदेंगी। फिर ऊंचे दामों पर बेचेंगी।

इस डेटा से क्या करेंगी विदेशी कंपनियां
देश का कृषि क्षेत्र कम पैदावार, पानी की कमी, मिट्‌टी के घटते पोषण और तापमान नियंत्रित गोदामों और रेफ्रिजेरेटेड ट्रकों सहित बुनियादी ढांचे की कमी से जूझ रहा है। विदेशी कंपनियां फसल पैटर्न, मिट्‌टी की सेहत, बीमा, क्रेडिट और मौसम के पैटर्न जैसी सूचनाओं का डेटाबेस जुटाएंगी। फिर आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और डेटा एनालिटिक्स से इसका विश्लेषण करेंगी। हर किसान को उसके खेत, मौसम और पानी की व्यक्तिगत जानकारी दी जाएगी।

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