इलेक्टोरल बॉन्ड मामला, SC में आज दूसरे दिन की सुनवाई: प्रशांत भूषण बोले- यह शेल कंपनियों के जरिए राजनीतिक दलों को मिलने वाला काला धन

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नई दिल्ली2 घंटे पहले

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चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अगुआई वाली 5 जजों की बेंच इलेक्टोरल बॉन्ड मामले की सुनवाई कर कर रही है।

इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम मामले में सुप्रीम कोर्ट में बुधवार 1 नवंबर को दूसरे दिन की सुनवाई होगी। 31 अक्टूबर को पहले दिन की सुनवाई में वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण ने कहा कहा कि इलेक्टोरल बॉन्ड सिर्फ शेल कंपनियों के जरिए राजनीतिक दलों को मिलने वाला काला धन है।

अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी केंद्र सरकार की ओर से सुप्रीम कोर्ट में पेश हुए, जबकि सीनियर एडवोकेट कपिल सिब्बल, प्रशांत भूषण और विजय हंसारिया ने याचिकाकर्ताओं की तरफ से पैरवी की।

चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की बेंच मामले की सुनवाई कर रही है। सुनवाई से पहले अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी ने कहा था कि नागरिकों को पार्टियों का इनकम सोर्स जानने का अधिकार नहीं है।

इस मामले में चार याचिकाएं दायर की गई हैं। इनमें कांग्रेस नेता जया ठाकुर और सीपीएम की पिटीशंस भी हैं।

पढ़ें, 31 अक्टूबर को पहले दिन की सुनवाई में कोर्ट रूम में दी गईं दलीलें…

प्रशांत भूषण: केंद्रीय सत्तारूढ़ दल को कुल योगदान का 60 प्रतिशत से ज्यादा मिला। अगर किसी नागरिक को उम्मीदवारों, उनकी संपत्ति, उनके आपराधिक इतिहास के बारे में जानने का अधिकार है तो उन्हें यह भी पता होना चाहिए कि राजनीतिक दलों को कौन फंडिंग कर रहा है?

प्रशांत भूषण: बॉन्ड स्कीम कहती है कि अगर ED को पैसों के बारे में जानकारी चाहिए तो SBI खुलासा कर सकता है, लेकिन सभी एजेंसियां सरकार के नियंत्रण में हैं और SBI भी। ऐसे में किसी को इसके बारे में पता ही नहीं चल सकेगा।

प्रशांत भूषण: ये बॉन्ड सत्ता में पार्टियों को रिश्वत के रूप में दिए जाते हैं। इससे सरकारी फैसले प्रभावित होते हैं। करीब-करीब सभी बॉन्ड केवल सत्ताधारी पार्टियों को ही मिले। 50% से ज्यादा केवल केंद्र में सत्तारूढ़ पार्टी और बाकी केवल राज्य में सत्तारूढ़ पार्टी को मिले। यहां तक ​​कि 1% भी विपक्षी दलों को नहीं मिला है।

जस्टिस खन्ना: पहले के शासनकाल में भी सत्ताधारी पार्टी को मिलने वाला चंदा, हमेशा गैर-सत्तारूढ़ पार्टियों की तुलना में ज्यादा होता था।

भूषण: हां, ये तो रिश्वत हुई न।

जस्टिस गवई: उम्मीदवार द्वारा अधिकतम कितना खर्च किया जाना है?

सिब्बल: संसदीय स्थायी समिति की रिपोर्ट के मुताबिक, यह केवल 70 लाख रुपए है।

भूषण: लेकिन कई उम्मीदवार सीमा से 100 गुना ज्यादा भी खर्च कर रहे हैं। चुनाव आयोग का कहना है कि यह एक भ्रष्ट आचरण है।

भूषण: एक आम आदमी को कैसे पता चलेगा कि 23 लाख कंपनियों में से किसने कितना दान दिया? लेकिन अगर केंद्र SBI पर दबाव डालेगा तो उन्हें इसके बारे में पता चल जाएगा, लेकिन नागरिकों को यह जानने का अधिकार खत्म हो जाता है कि इन राजनीतिक दलों को कौन फंडिंग कर रहा है?

CJI: हो सकता है दान देने वाला व्यक्ति खुद ही अपनी पहचान छिपाना चाहता हो, क्योंकि वो बिजनेस करता है। अगर नाम का खुलासा हुआ तो उसे दिक्कत हो सकती है।

भूषण: यह सिर्फ शेल कंपनियों के माध्यम से राजनीतिक दलों के पास आने वाला काला धन है। इस मामले में मैं आरबीआई का एक लेटर दिखाना चाहूंगा।

भूषण: मैंने आरबीआई के कई पत्रों का हवाला दिया है। चुनौती का पहला आधार यह है कि राजनीतिक दलों का पैसे के सोर्स के बारे में न बताना सूचना के अधिकार का उल्लंघन है।

CJI: मामले में कल 1 नवंबर को फिर से सुनवाई शुरू करेंगे।

अब इस मामले में नेताओं के बयान पढ़िए …

चिदंबरम का भाजपा पर आरोप
कांग्रेस नेता पी चिदंबरम ने 30 अक्टूबर को भाजपा पर आरोप लगाया कि सत्तारूढ़ भाजपा ने अपने इरादे साफ कर दिए हैं कि वह बड़े कॉर्पोरेट्स से अपारदर्शी, गुप्त और षड्यंत्रकारी तरीके से अपना धन जुटाएगी। कांग्रेस ऐसे किसी भी विचार का विरोध करती है। हम पारदर्शी और लोकतांत्रिक तरीके से फंडिंग में यकीन रखते हैं।

स्कीम से किसी के मौजूदा अधिकारों का उल्लंघन नहीं
वेंकटरमनी ने 29 अक्टूबर को सुप्रीम कोर्ट से कहा कि संविधान ने नागरिकों को इन फंड्स का सोर्स जानने का मौलिक अधिकार नहीं दिया है। उन्होंने कोर्ट को चेतावनी दी कि इलेक्टोरल बॉन्ड को रेगुलेट करने के लिए पॉलिसी डोमेन में न आए। ये स्कीम किसी भी व्यक्ति के मौजूदा अधिकारों का उल्लंघन नहीं करती है। साथ ही यह स्कीम डोनर्स को पहचान उजागर न करने की सुविधा भी देती है। ये क्लीन मनी के डोनेशन को बढ़ावा देता है। इससे डोनर अपने टैक्स देने के दायित्व जानेगा।

उन्होंने कहा कि ये स्कीम किसी भी प्रकार के अधिकारों का उल्लंघन नहीं करती। अटॉर्नी ने कहा कि कोर्ट राज्य की कार्रवाई की समीक्षा केवल तब ही करता है जब मौजूदा अधिकारों का टकराव हो।

वेंकटरमणी के मुताबिक, नागरिकों को ये अधिकार तो है कि वे उम्मीदवारों की क्रिमिनल हिस्ट्री जानें, लेकिन इसका ये मतलब नहीं है कि उन्हें पार्टियों की इनकम और पैसों के सोर्स जानने का अधिकार है।

मामले में कांग्रेस-बीजेपी की ओर से बयानबाजी
कांग्रेस नेता पी चिदंबरम ने बीजेपी पर निशाने साधा। उन्होंने ‘X’ पर पोस्ट करते हुए लिखा कि बीजेपी चोरी-छिपे, गलत तरीके से और साजिश के तहत बड़े-बड़े कॉर्पोरेट से कमाए हुए पैसों की फंडिंग करेगी। देखते हैं, कौन जीतता है, बड़े कॉर्पोरेट या छोटे नागरिक जो पार्टियों को डोनेशन देने में गर्व महसूस करते हैं।

वहीं, चिदंबरम के बयान पर पलटवार करते हुए बीजेपी के आईटी सेल हेड अमित मालवीय ने कहा कि कांग्रेस ज्यादा पारदर्शी और लोकतांत्रिक पॉलिटिकल फंडिंग सिस्टम को लागू करने की कोशिशों का विरोध करती है। सच्चा लोकतंत्र तब है, जब छोटे व्यापारी और बड़े कॉर्पोरेट किसी भी पार्टी को डोनेशन दे सकें और अगर कोई अलग पार्टी सत्ता में आती है तो उन्हें अपने से बदला लिए जाने का डर न हो।

मामले की अहमियत समझते हुए संविधान बेंच के पास भेजा
CJI डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की बेंच ने इस केस में 16 अक्टूबर को सुनवाई की थी। तब उन्होंने कहा था कि इस याचिका की अहमियत समझते हुए इस मामले को कम से कम पांच जजों की बेंच के सामने रखा जाना चाहिए। मामले की सुनवाई के लिए 31 अक्टूबर की तारीख तय की गई। साथ ही 5 जजों की संविधान बेंच का गठन किया गया।

याचिकाकर्ताओं के वकील की मांग
याचिका दाखिल करने वाली संस्था ADR (एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स) की तरफ से एडवोकेट प्रशांत भूषण ने दलील दी कि इस प्रकार की चुनावी फंडिंग भ्रष्टाचार को बढ़ावा देगी। कुछ कंपनियां उन पार्टियों में अज्ञात तरीकों से फंडिंग करेंगी, जिन पार्टियों की सरकार से उन्हें फायदा होता है।

पहले भी एडवोकेट भूषण ने SC को बताया था कि 2024 के आम चुनावों के लिए चुनावी बॉन्ड योजना शुरू होने से पहले इस मामले पर फैसला किया जाना जरूरी है, जिसके बाद कोर्ट ने इस पर अंतिम सुनवाई करने का फैसला किया था।

इस मामले पर चार जनहित याचिकाएं लंबित हैं। इनमें से एक याचिकाकर्ता ने मार्च में सुप्रीम कोर्ट को बताया था कि चुनावी बॉन्ड से पार्टियों को अब तक 12 हजार करोड़ की फंडिंग हुई है और इसका दो-तिहाई हिस्सा एक खास पार्टी को मिला है।

क्या है पूरा मामला
इस योजना को 2017 में ही चुनौती दी गई थी, लेकिन सुनवाई 2019 में शुरू हुई। 12 अप्रैल, 2019 को सुप्रीम कोर्ट ने सभी पॉलिटिकल पार्टियों को निर्देश दिया कि वे 30 मई, 2019 तक में एक लिफाफे में चुनावी बॉन्ड से जुड़ी सभी जानकारी चुनाव आयोग को दें। हालांकि, कोर्ट ने इस योजना पर रोक नहीं लगाई।

बाद में दिसंबर, 2019 में याचिकाकर्ता एसोसिएशन फॉर डेमोक्रटिक रिफॉर्म्स (ADR) ने इस योजना पर रोक लगाने के लिए एक आवेदन दिया। इसमें मीडिया रिपोर्ट्स के हवाले से बताया गया कि किस तरह चुनावी बॉन्ड योजना पर चुनाव आयोग और रिजर्व बैंक की चिंताओं को केंद्र सरकार ने दरकिनार किया था।

इस पर सुनवाई के दौरान पूर्व CJI एसए बोबडे ने कहा कि मामले की सुनवाई जनवरी 2020 में होगी। चुनाव आयोग की ओर से जवाब दाखिल करने के लिए सुनवाई को फिर से स्थगित कर दिया गया। इसके बाद से अभी तक इस मामले को कोई सुनवाई नहीं हुई है।

चुनावी बॉन्ड क्या है?
2017 के बजट में उस वक्त के वित्त मंत्री अरुण जेटली ने चुनावी या इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम को पेश किया था। 29 जनवरी 2018 को केंद्र सरकार ने इसे नोटिफाई किया। ये एक तरह का प्रोमिसरी नोट होता है। जिसे बैंक नोट भी कहते हैं। इसे कोई भी भारतीय नागरिक या कंपनी खरीद सकती है।

अगर आप इसे खरीदना चाहते हैं तो आपको ये स्टेट बैंक ऑफ इंडिया की चुनी हुई ब्रांच में मिल जाएगा। इसे खरीदने वाला इस बॉन्ड को अपनी पसंद की पार्टी को डोनेट कर सकता है। बस वो पार्टी इसके लिए एलिजिबल होनी चाहिए।

जिस पार्टी को डोनेट कर रहे हैं वो एलिजिबल है, ये कैसे पता चलेगा?
बॉन्ड खरीदने वाला 1 हजार से लेकर 1 करोड़ रुपए तक का बॉन्ड खरीद सकता है। खरीदने वाले को बैंक को अपनी पूरी KYC डीटेल में देनी होती है। खरीदने वाला जिस पार्टी को ये बॉन्ड डोनेट करना चाहता है, उसे पिछले लोकसभा या विधानसभा चुनाव में कम से कम 1% वोट मिला होना चाहिए। डोनर के बॉन्ड डोनेट करने के 15 दिन के अंदर इसे उस पार्टी को चुनाव आयोग से वैरिफाइड बैंक अकाउंट से कैश करवाना होता है।

इस पर विवाद क्यों…
2017 में अरुण जेटली ने इसे पेश करते वक्त दावा किया कि इससे राजनीतिक पार्टियों को मिलने वाली फंडिंग और चुनाव व्यवस्था में पारदर्शिता आएगी। ब्लैक मनी पर अंकुश लगेगा। दूसरी ओर इसका विरोध करने वालों का कहना है कि इलेक्टोरल बॉन्ड खरीदने वाले की पहचान जाहिर नहीं की जाती है, इससे ये चुनावों में काले धन के इस्तेमाल का जरिया बन सकते हैं।

कुछ लोगों का आरोप है कि इस स्कीम को बड़े कॉर्पोरेट घरानों को ध्यान में रखकर लाया गया है। इससे ये घराने बिना पहचान उजागर हुए जितना मर्जी उतना चंदा राजनीतिक पार्टियों को दे सकते हैं।

चुनावी बॉन्ड से जुड़ी जानकारी…

  • कोई भी भारतीय इसे खरीद सकता है।
  • बैंक को KYC डीटेल देकर 1 हजार से 1 करोड़ रुपए तक के बॉन्ड खरीदे जा सकते हैं।
  • बॉन्ड खरीदने वाले की पहचान गुप्त रहती है।
  • इसे खरीदने वाले व्यक्ति को टैक्स में रिबेट भी मिलती है।
  • ये बॉन्ड जारी करने के बाद 15 दिन तक वैलिड रहते हैं।

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इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम पर SC में पहले दिन की सुनवाई: प्रशांत भूषण बोले- ये बॉन्ड केवल रिश्वत है, जो सरकारी फैसलों को प्रभावित करता है

इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम मामले में 31 अक्टूबर को सुप्रीम कोर्ट में पहले दिन की सुनवाई हुई। प्रशांत भूषण ने कहा कि ये बॉन्ड केवल रिश्वत हैं, जो सरकारी फैसलों को प्रभावित करते हैं। नागरिकों को जानने का हक है कि किस पार्टी को कहां से पैसा मिला। दरअसल, केंद्र सरकार ने 2 जनवरी 2018 को बॉन्ड स्कीम को नोटिफाई किया था। स्कीम के प्रावधानों के मुताबिक, इलेक्टोरल बॉन्ड को कोई भी नागरिक अकेले या किसी के साथ मिलकर खरीद सकता है। सुनवाई से पहले अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी ने कहा था कि नागरिकों को पार्टियों का इनकम सोर्स जानने का अधिकार नहीं है। पूरी खबर पढ़ें…

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